अर्हम्

अर्हम्

अर्हम्

समणी मलयप्रज्ञा, समणी नीतिप्रज्ञा

शक्ति स्रोत तुम शक्तिदायिनी, परम शांति शीतल शुभ चंदन।
वीतराग की प्रतिमूर्ति का, करती हूँ मैं निज अभिनंदन।।

धन्य-धन्य बना चंदेरी प्रांगण, धन्य तेरा उदितोदित शासन।
महक उठी ये गण फुलवारी, पा विश्रुत विभा का अनुशासन।
पंचशताधिक साध्वीप्रमुखा का करते हैं नित अभिवादन।
मयतामयी माँ श्रुतदेवी का, करती हूँ मैं नित अभिनंदन।।

चंदन सौरभ सुरभित बनकर, महक रहे तुम गण गगनांगण।
सरल शासना करण नजर से, करते आस्वासित सबका मन।
निरामय चरणों में रहकर, छूटे भव भय भटकन।
वीतराग की प्रतिमूर्ति का, करती हूँ मैं नित अभिनंदन।।

उपदेश तुम्हारा पावन है, संदेश बड़ा ही मनभावन।
जीवन का हर पहलू कहता, वैभवशाली हो तुम भिक्षु चमन।
शौर्य वीर्य पुण्यवान प्रतिमा को, आज बधाता है कण-कण।
परम प्रकृष्ट समता स्तातस्विनी का, करती हूँ मैं नित अभिनंदन।।

दिल में रहता आगम चिंतन, समय बीतता करते मंथन।
चिंतन मनन क्रियान्विति संयुत, तेरा है शुभ अनुशासन।
रत्नत्रयी आराधक साधक, बरसाती ज्ञान धन सावन।
साहस शौर्य सृजन की रागिनी का, करती हूँ मैं नित अभिनंदन।।

भावों की नभ में उड़ान भर, भक्तिगीत करते अनुगुंजन।
जीवनदात्री संस्कार प्रदात्री को, अर्पित करती भाव सुमन।
अभिनंदन का अवसर पावन, श्रद्धा समर्पित तव चरणन।
निर्मल निश्च्छल निर्विकार सतिशेखरे को, मलय नीति करती है वंदन।।