अर्हम्

अर्हम्

अर्हम्

डॉ0 समणी ज्योतिप्रज्ञा

भिक्षु गण है गौरवशाली, जयाचार्य की देन निराली।
महासती का किया प्रवर्तन, साध्वीगण पाए संरक्षण।
सरदारांजी पहला नंबर, विश्रुतविभाजी नवमें पद पर।
सद्संस्कारी अनुपम क्षमता, विनय समर्पण ममता समता।
ग्रहणशीलता कार्यकुशलता, सहनशील व्यवहारकुशलता।
पापभीरूता हृदय सरलता, निर्झर सम गति है शीतलता।
भोजन संयम निद्रा संयम, वाणी संयम इंद्रिय संयम।
भाग्य और पौरुष का संगम, पावनता मृदुता है अनुपम।
प्रातः उठकर नित स्वाध्यायी, अकथ परिश्रम अलख जगाई।
गुरु आज्ञा से पाट संभाला छाया गण में दिव्य उजाला।
अजब गजब प्रगटी पुण्याई, साध्वी गण सरताज कहाई।
महाप्रज्ञ वाङ्मय संपादन, आज बना जन-जन आकर्षण।
ऊँचा कद है ऊँचा पद है, दर्शन ज्ञान चरण संपद है।
उत्तम है व्यक्तित्व तुम्हारा, उत्तम है कर्तृत्व तुम्हारा।
उत्तम है नेतृत्व तुम्हारा, उत्तम है वक्तृत्व तुम्हारा।
रहो निरामय करूँ कामना, युग-युग जीओ यही भावना।