अर्हम्

अर्हम्

समणी संचितप्रज्ञा

तेरापंथ धर्मसंघ का योगक्षेम करने में आचार्यों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। साथ ही साथ साध्वी समाज के विकास एवं व्यवस्थाओं के दायित्व की डोर को ऊँची उड़ान देने में साध्वी प्रमुखाओं की प्रशस्त भूमिका है। नवम् साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी, आचार्यश्री महाप्रज्ञ के हाथों गढ़ी हुई विशेषताओं की विरल विभूति है। नेतृत्व की क्षमताओं से भरपूर, श्रमनिष्ठा की स्याही से रेखांकित, शौर्य-वीर्य की उजली नजर साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी! जिनके जीवन में भाग्य एवं पुरुषार्थ का योग है। जिन्होंने संयम एवं तप में पुरुषार्थ कर अपनी तकदीर को सजाया है, संवारा है एवं निखारा है।
अद्भुत है जिनकी संयम-चेतना,
अनुपम है जिनकी तप-चेतना,
अद्वितीय है जिनकी चिंतनशैली,
अनुकरणीय है जिनका आहार-संयम।
कई वर्षों से आप समय-समय पर आहार संयम, ऊनोदरी, रस-परित्याग, तप की साधना करती हुई सात्त्विक, अनासक्त एवं साधनामय जीवन जीती है। उपवास, बेला, तेला चलते-फिरते करना आपकी तपः रुचि का प्रतीक है। आपका कहना है जब तक मेरे कार्य में बाधा नहीं आएगी तब तक तप संकल्प का दीप जलता रहेगा। अनुत्तर संयमी औरअनुशासन प्रिय साध्वीप्रमुखा को पाकर तेरापंथ धर्मसंघ गौरव की अनुभूति कर रहा है। मौनी, ध्यानी, ज्ञानी, गढ़ी गढ़ाई प्रमुखाश्री, आचार्यश्री महाश्रमण के प्रताप से हमें मिली है। आप धर्मसंघ को अपनी सेवाएँ देती रहें। हम सबकी सार-संभाल करती हुई नए इतिहास के पृष्ठ लिखें। पूरा साध्वी समाज एवं समणी वर्ग, आपको प्रमुखा पद पर सुशोभित देखकर खुशियाँ मना रहा है। आपके भावी जीवन के प्रति शुभकामनाएँ।
मंगलभाव सजाएँ मिलजुल मंगल बेला आई है,
मनमोहक साध्वीप्रमुखा पा, देते आज बधाई है,
समण श्रेणी की करो सारणा, संस्कारों का बीजारोपण,
विजय हार पहनाएँ तुमको, स्वागत घड़ियाँ मनभाई है।।