साँसों का इकतारा

साँसों का इकतारा

साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा

(4)

मानवता के उदय! अभ्युदय! जीवन का हर पल उत्सवमय
रहो निरामय ज्योतिवलय तुम नूतन संस्कृति के सूर्योदय!

चमक रहे हैं सौ-सौ सूरज उगे हजारों आज सुधाकर
मधु ॠतु देह धारकर उतरी मुदित दिशाएँ गीत सुनाकर
बिछी रश्मियाँ अगवानी में उजल रहीं जोतें श्रद्धामय॥

जन-जीवन को जागृत करने कदम बढ़ाए तुमने जब से
युगधारा को गति देने की सघन तमन्‍ना मन में तब से
नयन खोल प्रज्ञा के तुमने दूर कर दिए सारे संशय॥

अक्षय सुधा-कलश हाथों में बूँद-बूँद क्या वितरण करते
भर-भर चषक पिलाओ सबको जनम-जनम की पीड़ा हरते
मर्त्यों को अमरत्व बाँटकर पग-पग विजय वरो मृत्युंजय!॥

अर्थवान हर भोर मुबारक नई कीर्ति के हस्ताक्षर को
चंदन-चर्चित नए स्वप्न सब अर्पित हैं इस ज्योतिर्धर को
मन के नभ पर आज उकेरें आस्था के स्वस्तिक मंगलमय॥

(5)

तुम्हारा रूप हो जिसमें मुझे दे दो वही दरपन।
तुम्हारे स्वर जहाँ गूंजे मुझे दे दो वही मधुवन॥

तुम्हें नभ की बिजलियों ने उजालों से सजाया है
नदी की कलकलाहट ने तुम्हारा गीत गाया है
समंदर दे गया तुमको स्वयं ही अतल गहराई
हिमालय के शिखर ने भी सौंप दी अमित ऊँचाई
बाँटते झोलियाँ भर-भर महक तुमको सुमन सारे
निछावर कर रही मैं भी अबोला हृदय का स्पंदन॥

पहाड़ों ने दिया तुमको हृदय चट्टान-सा द‍ृढ़तर
बहारें धन्य अपने में खुशी मस्ती तुम्हें देकर
सितारों ने चमक भर दी तुम्हारे नयन-तारों में
पवन-सा वेग चरणों में जगत चलता इशारों में
गले की मधुरिमा तुमको समर्पित कर गई कोयल
मिली है जो सुधाकर से सुधा बरसा रही चितवन॥

प्रमादी है मनुज इतना कि जीना हो गया भारी
बिना मरघट जला डाली निजी हर कामना क्वांरी
लिए टूटन विवशता से घुटन में ले रहा साँसें
कफन भी है नहीं इतना ढकी जो जा सकें लाशें
सिखाओ गणित जीवन का दिखाओ राह मंजिल की
स्वयं को समझ ले मानव सहज ही दूर हो बचपन॥

जगा आक्रोश जन-जन में हवा विद्रोह की फैली
तमन्‍ना शांति की फिर भी नए युग की नई शैली
विषमता के झरोखों में विषैला धूम आता है
मुंदी पलकें मनुजता की नहीं कुछ भी सुहाता है
अधूरे रह गए सारे पले जो स्वप्न नयनों में
तिमिर आलोक बन जाए मिले यदि तेज का दर्शन॥

अधर के बोल सब जूठे तुम्हें कैसे मनाऊँगी
नहीं हैं शब्द भी कैसे तुम्हारे गीत गाऊँगी
विचारों की चपल लहरें नहीं खामोश होती हैं
झाँकलो देवते! दिल में सृजन की रात सोती है
करों में थाम बैसाखी सबल विश्‍वास की चलती
तुम्हारे हर इशारे पर सदा रहता समर्पित मन॥