हमारे धर्मसंघ ने विकास किया है और विकास करता रहे: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

हमारे धर्मसंघ ने विकास किया है और विकास करता रहे: आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ स्थापना दिवस एवं दीक्षा समारोह का भव्य आयोजन

छापर, 13 जुलाई, 2022
आषाढ़ी पूर्णिमा-तेरापंथ स्थापना दिवस एवं गुरु पूर्णिमा। आज के दिन को भारतीय संस्कृति में गुरु पूर्णिमा के रूप में मान्यता प्राप्त है। संसार में सद्गुरु ही कल्याण का मार्ग बताने वाले होते हैं, इस कारण व्यक्ति के जीवन में गुरु का महत्त्व है। सद्गुरु अपने शिष्य को सद्मार्ग रूपी राजमार्ग पर चलना सिखाते हैं। आज ही के दिन 262 वर्ष पूर्व मेवाड़ के केलवा नगर में जैन श्वेतांबर तेरापंथ की स्थापना हुई थी। आचार्य भिक्षु आदि पाँच संतों ने केलवा में व शेष आठ संतों ने अन्यत्र आज ही के दिन सायंकाल लगभग 7ः30 बजे भाव दीक्षा ग्रहण की थी। वह दिन था सन् 1760, 19 जून शनिवार, विक्रम संवत् 1817 आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा। तेरापंथ वर्तमान में विशाल वटवृक्ष बनकर जैन धर्म की प्रभावना कर रहा है। तेरापंथ के एकादशम् अधिशास्ता, वर्तमान के भिक्षु आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में ईमानदारी, सच्चाई प्रामाणिकता का बहुत महत्त्व है।
सच्चाई की खोज के लिए पुरुषार्थ भी अपेक्षित होता है। वैज्ञानिक जगत में सच्चाई की खोज की जाती है। आध्यात्मिक जगत में भी सच्चाई की प्राप्ति की जाती है। हमारे पास केवल ज्ञान हो तो सच्चाई कृत्य-कृत्य हो जाती है। सारी सच्चाई सामने आ जाती है। सच्चाई खोजने का प्रयास उन्हीं के लिए उपयोगी हो सकता है, जो अकेवल ज्ञानी है, छद्मस्थ है। जहाँ मति श्रुत ज्ञान है, वहाँ अपने बौद्धिक बल पर सच्चाई के अन्वेषण का प्रयास किया जा सकता है। सच्चाई को खोजना कोई सामान्य बात नहीं है। सच्चाई के प्रति श्रद्धा हो, समर्पण हो। सच्चाई को पाने के लिए व्यक्ति अपने संप्रदाय से भी संबंध तोड़ लेता है। साधना या कार्य की दृष्टि से संप्रदाय एक सहायक तत्त्व हो सकता
है। वह साधन बन सकता है, पर साध्य नहीं है।
सच्चाई को पाने के लिए कुछ बलिदान-कुर्बानी की भी क्षमता हो वह सच्चाई की प्राप्ति और सच्चाईपूर्ण व्यवहार को प्राप्त कर सकता है। आज आषाढ़ी पूर्णिमा है। शेषकाल का अंतिम दिन है। आज सायंकाल से चारित्रात्माओं को चतुर्मास से आबद्ध भी होना है। आषाढ़ी पूर्णिमा आचार्य भिक्षु का दीक्षा दिवस है। भाव दीक्षा के साथ तेरापंथ की स्थापना होने का दिवस है। हमारे धर्मसंघ के संगठन से जुड़ा हुआ आज का दिन है। तेरापंथ नाम मिला है। नामकरण जोधपुर में हुआ और स्थापना केलवा में हुई। हे! प्रभो यह तेरापंथ। हम तो चलने वाले पथिक हैं।
आचार्य भिक्षु ने पहला चतुर्मास केलवा में किया था। अँधेरी ओरी का स्थान मिला, तो वहाँ उपसर्ग भी हुआ पर आचार्य भिक्षु संकल्प बली थे, उपसर्ग शांत भी हो गए। उसे देवता भी नमस्कार करते हैं, जिसका मन सदा धर्म में बना रहता है। केलवा के लोगों ने धर्म स्वीकार कर लिया। स्वामीजी ने तपस्या-साधना की थी। क्रांति के पीछे लक्ष्य क्या है? वो महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। जहाँ लक्ष्य पवित्र है, वहाँ कठिनाई आए तो आए। क्रांति भी समक्रांति हो। क्रांति करने वाले में त्याग की चेतना होनी चाहिए। अनेक साथी उन्हें मिले, कई चले भी गए।

संगठन बनना विशेष बात हो सकती है, पर संगठन आगे बढ़ना और विशेष बात होती है। तेरापंथ को शुरू हुए आज 262 वर्ष पूरे हो रहे हैं। आचार्य भिक्षु ने संगठन को उत्पन्न ही नहीं किया, उसे निष्पन्न करने का भी प्रयास किया। तेरापंथ रूपी संतान को पैदा कर उसका पालन-पोषण का भी प्रयास किया। वे तेरापंथ के जनक थे। आचार्य भिक्षु की उत्तरवर्ती आचार्य परंपरा चली, उन्होंने भी योगदान दिया है। संगठन के प्रत्येक सदस्य का योगदान होता है। तेरापंथ के विकास के योगदान में पूज्य जयाचार्य का विशेष योगदान रहा। आचार्य तुलसी के समय में तेरापंथ ने तीसरी शताब्दी में प्रवेश किया था। आचार्य तुलसी ने धर्मसंघ का भी विकास किया। साहित्य विकास के क्षेत्र में आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का एक विशेष नाम प्रस्तुत किया जा सकता है। प्रेक्षाध्यान, जीवन-विज्ञान उनके अवदान हैं। हमारे धर्मसंघ ने विकास किया है और विकास करता रहे, यह काम्य है। हमारा संगठन मजबूत रहे, जागरूक रहे। अच्छा काम करते रहें। हम हमारे धर्मसंघ की सुष्मा को बढ़ाने का प्रयास करते रहें। मुमुक्षु संख्या बढ़े, ऐसा प्रयास वांछनीय है। अतीत में दस आचार्य हो गया है। वर्तमान में भी आचार्यों का, संतों का योगदान मिल रहा है। संघ में सेवाभावी, ज्ञानी, ध्यानी, तपस्वी आदि कई प्रकार के लोग हो तो धर्मसंघ रूपी रथ अच्छे ढंग से आगे बढ़ सकता है। तेरापंथ के तपस्वी संत एवं तपस्वी साध्वियों का भी एक ग्रंथ तैयार हो। योगदान देना जीवन की पूँजी है।
साध्वीप्रमुखाजी, मुख्य मुनिजी, साध्वीवर्याजी कितना सहयोग कर रही हैं। साधु-साध्वियों, समणियों एवं श्रावक-श्राविकाएँ भी अपने-अपने से योगदान दे रहे हैं। अनेक रूपों में सहयोग दिया जा सकता है, यह अपने आपमें कल्याणकारी बात हो सकती है।
साध्वीवर्या जी ने कहा कि आज का दिन एक अविस्मरणीय दिन है। आज के दिन हमें नया पंथ और नया संत मिला था। आचार्य भिक्षु तेरापंथ धर्मसंघ के प्रणेता थे, भाग्यविधाता थे, हमारे आराध्य थे। वे एक विलक्षण आचार्य थे। आचार्य भिक्षु की तीन विशेषताएँ थींµवे क्रांतिकारी आचार्य थे, तो शीतदर्शी भी थे, वे शासक थे तो साधक भी थे। वे आचार आराधक थे तो महान सुधारक भी थे। मुख्य मुनिप्रवर ने कहा कि व्यक्ति के जीवन में गुरु का बड़ा महत्त्व होता है। साधक गुरु प्रसाद की ओर निरंतर अभिमुख रहे। सही गुरु की प्राप्ति होना व्यक्ति के जीवन की एक बहुत बड़ी उपलब्धि होती है। मुनिवृंद ने समुह गीत की प्रस्तुति दी। संघगान से कार्यक्रम समापन हुआ।दीक्षा समारोह का आयोजन संयम दीप प्रज्ज्वलन करते हुए संयमप्रदाता ने मुमुक्षु नेकता के परिवार वालों से मौखिक आज्ञा ली बाद में मुमुक्षु से मौखिक सहमति ली। आर्षवाणी का उच्चारण करते हुए पूर्वाचार्यों का स्मरण करते हुए नमस्कार महामंत्र के उच्चारण के साथ सामायिक पाठ से दोनों को यावज्जीवन के लिए तीन करण तीन योग से सर्व सावद्य योग का त्याग करवाया।


साध्वीप्रमुखाश्री जी ने दोनों नवदीक्षित का केश लूंचन कर एवं रजोहरण प्रदान करवाया। नामकरण संस्कार करते हुए महामनीषी ने समणी अर्हतप्रज्ञा को नया नाम साध्वी मुक्तिप्रभा एवं मुमुक्षु नेकता को साध्वी प्राचीप्रभा प्रदान करवाया। श्रावक-श्राविकाओं को नवदीक्षित साध्वियों को वंदना करने का निर्देश फरमाया। दोनों नवदीक्षित साध्वियों को प्रेरणा प्रदान करते हुए अच्छे विकास एवं अच्छी साधना करने की प्रेरणा दी। इस प्रसंग पर साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि भारतीय परंपरा में दीक्षा को बहुत महत्त्व दिया गया है। दीक्षा का अर्थ हैµव्रतों को ग्रहण करना, असंयमित जीवन से संयममय जीवन में स्थापित होना, सुख-सुविधाएँ छोड़ साधना के मार्ग में प्रविष्ट होना। जो व्रत में स्थित होते हैं, उसे सत्य उपलब्ध होता है। दीक्षा से व्यक्ति निपुण हो श्रद्धा को प्राप्त करता है। श्रद्धा से सत्य की प्राप्ति होती है। जो दीक्षा को स्वीकार कर लेता है, वह सुख के राजमार्ग पर प्रस्थान कर देता है।
मुमुक्षु दीक्षिता ने मुमुक्षु एकता का एवं समणी स्वर्णप्रज्ञा ने समणी अर्हत्प्रज्ञा का परिचय दिया। आज्ञा पत्र का वाचन बजरंग जैन ने किया। मुमुक्षु नेकता के माता-पिता ने आज्ञा पत्र पूज्यप्रवर को समर्पित किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।