हमारा जीवन तप की ज्योति से ज्योतित रहे: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

हमारा जीवन तप की ज्योति से ज्योतित रहे: आचार्यश्री महाश्रमण

चाड़वास, 8 जुलाई, 2022
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ अपने चातुर्मासिक क्षेत्र छापर से मात्र एक पड़ाव दूर चाड़वास पधारे। परम पावन आचार्यश्री महाश्रमण जी का आज चाड़वास पदार्पण हुआ। चाड़वास श्रद्धा का अच्छा क्षेत्र है, भले वो संख्या में कम हो। करुणा सिंधु ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि चार समाधियों का निर्देशन आगम में प्राप्त होता है-विनय समाधि, श्रुत समाधि, तपः समाधि और आचार समाधि। आदमी विनय के द्वारा समाधि-शांति को प्राप्त कर सकता है। अनुशासनहीनता, उच्छृंखलता से समाधि दूर हो सकती है। ज्ञान की आराधना, स्वाध्याय करने से समाधान मिल सकता है, शांति मिल सकती है। तपस्या से भी समाधि मिल सकती है। जो जीवन में विविध प्रकार के तप का समाचरण करता है, वह भी समाधि को प्राप्त हो सकता है। आचार, चारित्र निर्मल अच्छा है, आचरण अच्छा है, वह व्यक्ति भी समाधि को प्राप्त हो सकता है।
हमारे जीवन में हम विनयपूर्वक व्यवहार करने का प्रयास करें, श्रुत की आराधना, स्वाध्याय करें, जिज्ञासा होने पर पूछने का प्रयास करें। तप और आचार की आराधना करें। चतुर्मास में तपस्या की विशेष आराधना होती है। सावण-भादवा में तो कितनी लंबी तपस्या कर लेता है। तपस्या के और भी कई प्रकार हैं। मूल चीज है कि आदमी का कषाय कमजोर पड़े। अनाहार की तपस्या कषाय कमजोर करने में सहायक बने। गुरुदेव तुलसी ने सुदूर यात्राएँ की थीं। यात्रा करना भी एक तपस्या है। इतने बड़े संघ का दायित्व संभालना भी एक तरह की तपस्या है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी भी कितनी श्रुत की आराधना करते थे। आचार्य भिक्षु ने कितनी ज्ञान की आराधना, साहित्य की रचना की थी। कितना उनको सहन करना पड़ा होगा। विरोधों में शांति रखना भी तपस्या है। धैर्य और समाधि रखना भी तपस्या है।
आलोचना का जवाब जबान से न देकर अच्छे कार्यों से दिया जा सकता है। तो आज जो आलोचक-निंदक हैं, कल वो हमारे समर्थक और अच्छे प्रशंसक बन सकते हैं। सहन करना भी एक अच्छी साधना है। अनुकूलता-प्रतिकूलता में भी शांति रखें। सबके प्रति मंगलभावना रखें। चतुर्मास के प्रारंभ में तेले की तपस्या भी होती है। एक-एक कदम आगे बढ़े। पुरुषार्थ-प्रयत्न करें। सफलता जीवन में न मिले तो निराश न हो, प्रयत्न करते रहो, पुरुषार्थ का दीपक जीवन में जलता रहे। सत्पुरुषार्थ करना भी अपने आपमें एक तपस्या होती है। हमारा जीवन तप की ज्योति से ज्योतित रहना चाहिए। हमारे जीवन में तप-ज्ञान की ज्योतियाँ जलती रहें। कभी हम परम स्थान मोक्ष को भी प्राप्त कर लें। छोटे-छोटे तप भी कर सकते हैं। ज्ञान-ध्यान की साधना के रूप में तपस्या की जा सकती है। तपस्या के बारह प्रकार बताए हुए हैं। तपस्या, साधना, ज्ञानाराधना का एक परिणाम यह आना चाहिए कि हमारे कषाय पतले पड़ें। राग-द्वेष कमजोर पड़ें। मन में समता का विकास हो।
गृहस्थ जीवन में भी तप की ज्योति, समता की साधना की ज्योति जलती रहनी चाहिए। आत्म कल्याण की दिशा में आगे बढ़ें। धन तो अधिक से अधिक इस जीवन तक है। धर्म है, वो आगे भी काम आ सकता है, धर्म असीम है। धन संचय के साथ धर्म का भी संचय होता रहे। आदमी को धर्म संचय करने का प्रयास करना चाहिए। हमारे धर्म की संपदा बढ़ती रहे। पैसे की कमाई के साथ धर्म की कमाई कितनी की, वह भी ध्यान दें। व्यापार में भी शुद्धता रहे। तपस्या धर्म के द्वारा हम आध्यात्मिक संपदा बढ़ाने का प्रयास करते रहें, यह काम्य है। आज चाड़वास सन् 2022 में तीसरी बार आना हुआ है। योग है, छापर निकट है। आगे एक दिन मुझे भी आना है। आचार्य महाप्रज्ञ जी का पहला मर्यादा महोत्सव अलग से यहाँ हुआ था। अनेक चारित्रात्माएँ चाड़वास से हैं, हुए हैं। मुनि सोहनलालजी चाड़वास से मुझे भी तत्त्व ज्ञान सीखने का मौका मिला था। बड़े निर्मल थे। वे उच्च कोटि के कलाकार थे। चाड़वास की जनता में खूब धार्मिकता रहे, मंगलकामना।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि जैन दर्शन में द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को महत्त्व दिया जाता है। किसी चीज की व्याख्या करने के लिए हम अनेक कोणों से सोचते हैं। चाड़वास एक पुण्यवान क्षेत्र है। गुरु कितना ध्यान रखते हैं। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में साध्वी विवेकश्री जी, साध्वी मनीषाश्री जी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। स्वागत की कड़ी में स्थानीय सभाध्यक्ष गजराज भंडारी, महिला मंडल, सुरेंद्र चोरड़िया, पन्नालाल बैद, प्रेम बच्छावत, कमल भंडारी, विनोद बच्छावत ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर ने फरमाया कि यथासंभवतया भविष्य में कभी चाड़वास में अक्षय तृतीया समारोह करने का भाव है, साथ-साथ 11 दिन का प्रवास भी उस समय करने का भाव है तथा वैशाख शुक्ला नवमी, दशमी एवं चतुर्दशी के कार्यक्रम भी उस प्रवास में यथासंभव चाड़वास में करने का भाव है। अभिवंदना की कड़ी में विनोद लुणिया, स्थानीय सरपंच गोदारा, रतनगढ़ विधायक अभिनेष महर्षि, मनोज लुणिया, रौनक लुणिया, चोरड़िया परिवार बहनें राजश्री दुगड़, मौनिका चोरड़िया, अशोक दुगड़ आदि ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।