अर्हतों के अनुभवों का सार होते हैं जैन आगम: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अर्हतों के अनुभवों का सार होते हैं जैन आगम: आचार्यश्री महाश्रमण

छापर, 11 जुलाई, 2022
युगप्रधान महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन आगमों में अनेक विषयों से संबंधित वर्णन प्राप्त होते हैं। जैन आगमों की भाषा आम आदमी के समझ में न भी आए, परंतु उसको समझने का प्रयास हिंदी भाषा आदि भाषाओं के अनुवाद से किया जा सकता है। टिप्पणों के माध्यम से विशेष जानकारी प्राप्त की जा सकती है। हमारे यहाँ जैन आगमों के संपादन का कार्य भी परमपूज्य आचार्य तुलसी के सान्निध्य में शुरू हुआ था। परमपूज्य आचार्य महाप्रज्ञ जी, जिनका बहुत योगदान आगमों के संपादन आदि कार्य में हुआ है, लगा है। 32 आगम हमारी परंपरा में मान्य हैं। इन बत्तीस आगमों का मूलपाठ सभी आगमों का संपादित हो गया है। वह प्रकाशित रूप में बहुत वर्षों पहले सामने आ गया है। हिंदी भाषा में अनुवाद और व्याख्या यह दूसरी सीरीज है, इसके अंतर्गत भी अनेक-अनेक आगम आ गए हैं। अभी भी कार्य चल रहा है। आगमों में अनेक विषय वर्णित हैं। जहाँ सृष्टि के बारे में इनमें वर्णन मिलता है। अध्यात्म की साधना में भी क्या करना, क्या नहीं करना इस विषय का भी सुंदर संदेश-पथदर्शन मिलता है।
दशवेंआलियं एक आगम है, जिसे हमारी चारित्रात्माएँ बहुलतया याद करते हैं। नवदीक्षित साधु-साध्वियाँ इसे विशेषतया याद करते हैं। साधु चर्या के बारे में एक प्रशस्त पथदर्शन-निर्देश इसमें प्राप्त हो जाता है। कैसे बोलना, गोचरी करना, विनयपूर्ण व्यवहार कैसे करना, महाव्रत क्या है, हिंसा से बचना, षट् जीवनिकाय की जानकारी, भिक्षु के लक्षण क्या आदि इस आगम के अध्यायों में प्राप्त होता है। तत्त्वज्ञान की जानकारी पन्नवणा सूत्र में भरी पड़ी है। बत्तीस आगमों में सबसे बड़ा आगम भगवती सूत्र है-इसमें भी कितना तत्त्वज्ञान भरा पड़ा है। बहुलांश कार्य भगवती सूत्र का हो गया है, जैन विश्व भारती ने प्रकाशन भी कर दिया है। नया धम्म कहावतों में दृष्टांत, उवासग्ग दसाओं में श्रावकों की जानकारी रखने वाला सिद्ध हो सकता है। उत्तराध्ययन में भी अनेक विषयों की जानकारी दी। ज्ञान के संदर्भ में प्रकाश डालने वाला नंदी सूत्र है। साध्वाचार में गलतियों के प्रायश्चित के रूप में छेद सूत्र-निशीथ आगम पठनीय है। ‘अर्हतों के अनुभवों का आगमों में सार है।’ आयारो सूत्र जिसका भाष्य आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने संस्कृत भाषा में लिखा है, विद्वतजनों में वह बहुत प्रशंसनीय है। उत्तराध्ययन के एक श्लोक में कहा गया है कि ये संसार अनित्य है, अध्रुव है। साथ में दुःख भी बहुत है। अनेक रूपों में दुःख आ सकते हैं। शारीरिक, मानसिक दुःख हो सकता है। यहाँ तो दुःख है ही, आगे के जीवन में क्या होगा, यह चिंतनीय है। इस जीवन के बाद में दुर्गति में न जाऊँ।
इस संसार में एक चिंता दूर होती है, तो दूसरी चिंता खड़ी हो जाती है। दुःख में समस्याएँ हो सकती हैं, पर मन में शांति रखें। समस्या का हल खोजा जा सकता है। पूज्य कालूगणी के भी समस्या आई थी, पर उन्होंने भी लगता है, कितना मनोबल रखा था। गंगापुर पधार गए और अपने सुशिष्य मुनि तुलसी को दायित्व सौंपकर विदा हो गए। समस्या आने पर भी समता रहे, वो खास बात है। शास्त्रकार ने कहा है कि अध्रुव, अशाश्वत और दुःख बहुल संसार में हमें आगे दुर्गति में न जाना पड़े इसके लिए अध्यात्म की साधना करें। सत्संग, साधुओं का समागम भी बहुत अच्छी बात है। इतनी बड़ी संख्या में चतुर्मास करने के लिए साधुओं का इकट्ठा होना अच्छी बात है। दुःख बहुल संसार में हम परम सुख की ओर गति कर सकें, ऐसा हमें ध्यान देना चाहिए, प्रयत्न करना चाहिए।
साध्वीवर्या जी ने कहा कि कष्टों को सहन करने के लिए शक्ति की जरूरत होती है। हमारे भीतर अनंत शक्ति है, अपेक्षा है, उसको जागृत करने की। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने कुछ ऐसे प्रयोग बताए है।, जिनसे हम अपनी शक्ति को उजागर कर सकते हैं। दीर्घ श्वास प्रेक्षा, क्रोध पर नियंत्रण, वाणी का संयम, आहार का संयम और कायोत्सर्ग-ये पाँच उपाय हैं, जिनसे शक्ति को उजागर किया जा सकता है। साध्वी साधनाश्री जी एवं साध्वी अमितप्रभाजी को गुरुदेव ने छापर गुरुकुल में चतुर्मास करने की कृपा करवाई है। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में दोनों साध्वियों ने गीत के माध्यम से अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। पूज्यप्रवर के स्वागत में नरेंद्र सुरेंद्र नाहटा, धनराज दुधेड़िया, तेयुप मंत्री दिलीप मालू, महिला मंडल, छापर-गुवाहाटी, उपासिका तारामणी दुधोड़िया, अणुव्रत समिति महिला टीम, राहुल बैद, इंद्रराज नाहटा ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि प्रमाद आदमी को नीचे धकेलने वाला बन सकता है।