चातुर्मास का समय धर्माराधना के लिए महत्त्वपूर्ण होता है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

चातुर्मास का समय धर्माराधना के लिए महत्त्वपूर्ण होता है: आचार्यश्री महाश्रमण

छापर, 10 जुलाई, 2022
संत शिरोमणी परम वंदनीय आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि शास्त्रकार ने त्राण और शरण इन शब्दों का इस श्लोक में प्रयोग किया है। हमारी दुनिया में निश्चय नय में देखा जाए तो अपनी आत्मा ही त्राण है। अपनी आत्मा ही शरण है। व्यवहार में दूसरा आदमी किसी का त्राण-शरण बन सकता है। निश्चय नय में बात है कि तुम्हारे स्वजन त्राणदाता-शरण दाता नहीं बन सकेंगे। तुम भी उनके लिए त्राणदाता और शरणदाता नहीं बन सकते। मंगलपाठ हमारे यहाँ प्रसिद्ध भी है और श्रद्धा प्राप्त भी है। मंगलपाठ में एक लाइन है-केवली प्रज्ञप्त धर्म की शरण स्वीकार करता हूँ। धर्म हमारे लिए त्राण बनता है।
अनाथी मुनि का प्रसंग समझाते हुए फरमाया कि कोई जिम्मेदारी नहीं ले सकता कि किसी के जीवन में बीमारी, बुढ़ापा या मृत्यु नहीं आएगी। कोई किसी का नाथ नहीं बन सकता। संसार में सब अनाथ हैं। धर्म ही हमारे लिए त्राण है, शरण है। अत्राणता संसार में है, मौत को कोई बचा नहीं सकता। छापर के अष्टमाचार्य परम पूज्य कालूगणी को भी कोई बचा नहीं सका, शरीर में व्याधि हुई और आखिर वे महाप्रयाण को प्राप्त हो गए। बड़े-बड़े राजे-महाराजे, चक्रवर्ती होते हैं, उनको भी कोई मौत से बचा नहीं सकता। एकमात्र धर्म-अध्यात्म ऐसा तत्त्व है, जो हमें दुःखों से छुटकारा दिला सकता है। ऐसी अवस्था को प्राप्त करा सकता है, जहाँ पहुँचने के बाद न मृत्यु है, न बुढ़ापा है, न बीमारी है।
परमपूज्य कालूगणी ने वह रास्ता लिया था, जिस रास्ते पर चलने से हमेशा के लिए दुःखमुक्ति प्राप्त हो जाए। बालावस्था में मघवागणी से दीक्षा ले उनके सान्निध्य में रहने का उनको मौका मिला। वे संत भी थे, संतों के अधिनेता भी थे। लगभग 27 वर्षों का उनका आचार्यकाल रहा। डालगणी के वे उत्तराधिकारी बने। संस्कृत भाषा का विकास किया। उनके सुशिष्य मुनि तुलसी और मुनि नथमल के पास कितना संस्कृत का ज्ञान था। बाद में दोनों भी आचार्य बने।
दुनिया का ये सौभाग्य है कि त्राण पाने वाले संत लोग धरती पर रहते हैं। तीर्थंकर भी हमारी दुनिया में रहते हैं। कम से कम 20 तीर्थंकर तो हमेशा रहते हैं। उत्कृष्ट 170 तीर्थंकर एक साथ एक समय में हो सकते हैं। तीर्थंकर अध्यात्म के परम प्रवक्ता होते हैं। आचार्य कालूगणी तीर्थंकर के प्रतिनिधि थे, उन्होंने धर्म का उद्योत किया। कालूगणी युग के साधु-साध्वी वर्तमान में कोई नहीं रहे। श्रावकों में तो हो सकते हैं। चतुर्मास का समय जो धर्माराधना की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होता है। तीन दिनों में तेले भी किए जा सकते हैं। 11, 12, 13 जुलाई को हो सकते हैं। ज्ञानाराधना भी विशेषतया की जा सकती है। दीक्षा भी होने वाली है। कितने-कितने लोग चतुर्मास में सेवा, उपासना का लाभ लेते हैं। सबकी अच्छी साधना चले। चतुर्मास अध्यात्म की दृष्टि से अच्छा रहे।
छापर चाकरी में नियुक्त मुनि पृथ्वीराज जी ने श्रावकों को दिलाए व्रत के फार्म पूज्यप्रवर को अर्पित किए। मुनि विजयकुमार जी, साध्वी काव्यप्रभाजी, साध्वी मंजुलप्रभाजी, साध्वी संघप्रभाजी ने पूज्यप्रवर की अभिवंदना में अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। मुनि पृथ्वीराज जी ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर के स्वागत में भिक्षु पुरुषायी मंडल चेन्नई, तेरापंथ महिला मंडल मंत्री अल्का बैद, नरेंद्र नाहटा, सुमन बैद, तेयुप अध्यक्ष सौरभ भूतोड़िया, तेरापंथ महिला मंडल अध्यक्षा सरिता सुराणा, छाजेड़ परिवार, ज्ञानशाला ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।
साध्वीवर्या जी ने कहा कि गुरु हमारे जीवन को दिशा-दर्शन देते हैं। सही राह पर चलाते हैं। गुरु दो प्रकार के होते हैं-सांसारिक गुरु और आध्यात्मिक गुरु। लौकिक गुरु की भी जीवन में जरूरत होती है। आध्यात्मिक जीवन को चलाने के लिए आध्यात्मिक गुरु की जरूरत होती है, जो हमारा सम्यक् मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।