अनासक्त भावना बना सकती है आत्मा को निर्मल: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अनासक्त भावना बना सकती है आत्मा को निर्मल: आचार्यश्री महाश्रमण

राजलदेसर, 1 जुलाई, 2022
राजलदेसर प्रवास के द्वितीय दिवस पर महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में आत्मा का अस्तित्व भी माना गया है। शरीर तो हमारे सामने प्रत्यक्ष है ही। आत्मा चैतन्यमय है, शरीर अपने आप में जड़ है, निर्जीव है, पुद्गल है। आत्मा और शरीर का मिक्स स्वरूप हमारा जीवन है। शरीर है और आत्मा है, तो मैं कौन हूँ? मैं आत्मा हूँ। शरीर में नहीं हूँ। यह तो मेरे साथ है। मृत्यु होती है, शरीर यहीं रह जाता है। सिद्धांत के अनुसार आत्मा अन्यत्र चली जाती है। चिंतन आता है कि शरीर स्थायी नहीं है, संबंध टूटने वाला है, फिर शरीर के प्रति मोह क्यों करें? शास्त्रकार ने कहा कि जो साधु लोग हैं, बुद्ध पुरुष हैं, वे अपने शरीर में भी मोह नहीं करते।
पदार्थों का उपयोग किया जाता है पर इनके प्रति भी मैं मोह भाव न रखूँ। ऐसा चिंतन अध्यात्म की साधना में रहना चाहिए। जहाँ ममत्व होता है, वहाँ दुःख उत्पन्न हो सकता है। जहाँ आसक्त नहीं, वहा दुःख नहीं। आदमी में मोह होता है, तो वह दूसरों की वस्तु भी लेना चाहता है। जो अनासक्त प्रिय है, उदारता वाला है, पर सहयोग भावना भी है, वह बोलता है, तेरा सो भी तेरा, मेरा सो भी तेरा। साधक आदमी सोचता है मोह ममत्व नहीं करना चाहिए। यह प्रसंग से समझाया कि धर्मशाला वह होती है, जहाँ आदमी कुुछ समय रहता है, फिर वह चला जाता है। यहाँ मेरा किसी का नहीं है। इस संसार में कुछ भी स्थायी नहीं हैं। पदार्थ के प्रति मोह न हो। अनित्यता की चिंतन करें, अनुप्रेक्षा करें। आगम में कहा गया हैµयह शरीर अनित्य है।
मोह ममता क्षीण या कम हो जाते हैं, तो दुःख भी विनाश की ओर अग्रसर हो जाता है, क्षीण हो सकता है। संसार में रहते हुए भी पद्म-पत्र की तरह निर्लेप रहना। गृहस्थ की जीवनशैली में धर्म-साधना चले, चिंतन में निर्मलता हो। आसक्ति का भाव कम हो। आत्मा निर्मल रह सकती है। जीवन में इच्छाओं का सीमाकरण हो, संयम-सादगी हो। आत्मा अच्छी हो तो आगे सद्गति हो सकती है। जीवन में निर्मोहता बढ़े। भगवान महावीर और आचार्य भिक्षु के जीवन के बहुत से प्रसंगों में समानता है। जीवन में राग-द्वेष मुक्तता हो तो चेतना में शांति रह सकती है। दुःख मुक्ति की दिशा में आत्मा अग्रसर हो सकती है। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में साध्वी मंगलप्रभा जी ने अपनी भावना अभिव्यत की। तेरापंथ युवक परिषद ने समुह गीत, महासभा के उपाध्यक्ष अजीत बैद, अमृतवाणी उपाध्यक्ष ललित दुगड़, प्रेमा देवी विनायकिया (महिला मंडल), पन्नालाल बैद, भैरूदान भूरा, डॉ0 चेतना विनीत बैद, गुलाब बांठिया, नाहर परिवार, प्रेम पांडे, अर्जुन विनायिका, खुशबू कुंडलिया, धर्मेश नाहर, दीपक कुंडलिया, भरत बेंगवानी, मंगला कुंडलिया, दिलीप दुगड़, सुषमा बैद, कुलदीप बैद, अशोक दुगड़ ने भी पूज्यप्रवर के स्वागत में अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।