जीवन में शुद्धता बनाए रखने के लिए रहे निश्च्छल: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जीवन में शुद्धता बनाए रखने के लिए रहे निश्च्छल: आचार्यश्री महाश्रमण

रतनगढ़, 4 जुलाई, 2022
रतनगढ़ के गोलछा ज्ञान मंदिर में सम्यक् ज्ञान के प्रदाता आचार्यश्री महाश्रमण जी का दूसरे दिन का प्रवास। मंगल देशना प्रदान करते हुए वीतराग कल्प ने फरमाया कि हमारे जीवन में सरलता और सच्चाई का बहुत महत्त्व है। शास्त्र में कहा गया है कि निर्वाण-मोक्ष को वह प्राप्त हो सकता है, जिसके भीतर धर्म होता है। दूसरा प्रश्न है कि धर्म किसके जीवन में होता है। जो शुद्ध होता है, उस आदमी के जीवन में धर्म होता है। तीसरा प्रश्न होता है कि शुद्ध कौन होता है? जो ऋजुभूत-सरल होता है, वह शुद्ध होता है। शुद्धता का एक बड़ा आधार है-सरलता, निश्च्छलता का होना।
जीवन में शुद्धता रखने के लिए निश्च्छलता का प्रयास करना चाहिए। कथनी-करणी समान हो। मन और वाणी में विषमता न हो। आदमी को सरल रहने का प्रयास करना चाहिए। जो बच्चे की तरह सरल होता है, वो मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। बच्चा नादान भी होता है, पर हमारे में नादानता न हो। ज्ञानयुक्त सरलता हो।
सच्चाई और सरलता का गहरा संबंध है। भीतर में छल-कपट है, तो भाषा में भी अपवित्रता-कुटिलता हो सकती है। चोर-चोर मौसेरे भाई होते हैं। ठगी आत्मा की दृष्टि से भी बढ़िया नहीं और समाज की दृष्टि से भी बढ़िया नहीं होती है। ईमानदारीपूर्ण व्यवहार शुद्ध समाज का लक्षण होता है। Honesty is the Best Policy व्यवसाय में लेन-देन में शुद्धता हो। जीवन की शुद्धता से व्यवहार की शुद्धता जुड़ी हुई है। हमारे भाव शुद्ध हैं, तो व्यवहार भी शुद्ध हो सकेगा। कुंड में जैसा पानी है, वैसा पानी ही बाल्टी से बाहर आएगा। अणुव्रत गृहस्थ जीवन में शुद्धता रखने का एक उपाय है। समाज भी स्वस्थ हो जाता है। ईमानदारी, शांत सहवास, नशामुक्ति, शिक्षा, आधारहीन कुरूढ़ियाँ जहाँ नहीं हैं, वो स्वस्थ समाज हो सकता है। व्यक्ति अच्छा हो तो समाज, राष्ट्र और विश्व अच्छे-स्वस्थ हो सकते हैं। भारत में कितने संत हुए हैं, वर्तमान में भी हैं। जहाँ संत हो वह राष्ट्र भाग्यशाली होता है। साधु अहिंसामूर्ति, दयामूर्ति, क्षमामूर्ति और समतामूर्ति होते हैं।
गृहस्थ भी कई-कई बड़े सरल-दयावान होते हैं, जिनके जीवन में सादगी, संयम, मन में दया, वाणी में अमृत, परोपकार की भावना, सरलता और संतों के प्रति भक्ति भाव रखने वाले हैं। राजनीति भी एक उच्च कोटि की सेवा होती है। सत्ता सेवा देने के लिए मिलती है। राजनीति में शुद्धता रहे। जीवन में सरलता-शुद्धता रहे तो जीवन अच्छा रह सकता  है। रतनगढ़ के इस मकान से धर्मसंघ के कई संस्मरण जुड़े हुए हैं। गोलछा परिवार का है, सभी में अच्छी धार्मिकता रहे। साध्वीवर्या जी ने कहा कि जो जागरूक जीवन जीता है, वह अपने जीवन को सफल बना सकता है। हम शरीर पर ध्यान देते हैं, पर हमें अपनी आत्मा पर भी ध्यान देना होगा। हमारे धर्मसंघ में अनेक श्रावक ऐसे हुए हैं, जिन्होंने जागरूक जीवन जीया है। हमें शरीर प्राप्त है, पर हम पुद्गलों के प्रति आसक्त न हो। हमारा लक्ष्य ऊँचा हो। हमें पूर्वकृत कर्मों को क्षय कर मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ना है।
पूजयप्रवर ने साध्वी उदितयशाजी को अग्रगण्य की वंदना करवाकर उनके सिंघाड़े का आगामी चातुर्मास रतनगढ़ के लिए फरमाया। साध्वीवृंद ने पूज्यप्रवर की अभिवंदना में गीत की प्रस्तुति दी। पूज्यप्रवर के स्वागत-अभिवंदना में रेखा बोथरा, प्रतिभा दुगड़, सुमन कुंडलिया, अंजली बैद, लक्ष्य बैद, व्यवस्था समिति मंत्री डालमचंद बैद, कमल बैद, ज्ञानशाला संयोजिका संतोष आंचलिया, उपासिका बबिता तातेड़, अणुव्रत समिति से तेजपाल गुर्जर, देवेंद्र आंचलिया, जैन परिषद से हुलास दुगड़, हीरालाल दुगड़, ज्ञानशाला रतनगढ़ विधायक अविनेष महर्षि, राजस्थान के पूर्व मंत्री राजकुमार रिणवा, चुरु जिला कांग्रेस अध्यक्ष भंवरलाल पुजारी, अखंड अधिकारी विरेंद्र, आयुर्वेदाचार्य बालकिशन, डीवाईएसपी हिमांशु शर्मा, दिनेश गोलछा, तेयुप अध्यक्ष विनीत भुतोड़िया ने अपनी भावनाएँ अभिव्यक्त की, चतुर्मास की अर्ज भी हुई। दीपक कुंडलिया, निधि कुंडलिया ने भी अपनी भावना व्यक्त की। ललित सिपानी, जोधराज बैद ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की एवं आभार प्रकट किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।