अध्यात्म की पूंजी को पुष्ट करने के लिए करें तपस्या : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अध्यात्म की पूंजी को पुष्ट करने के लिए करें तपस्या : आचार्यश्री महाश्रमण


भीलवाड़ा, 23 जुलाई, 2021
चातुर्मासिक चौदस के अवसर पर महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि एक प्रश्‍न है कि मार्ग कौन सा है? हमारे जीवन में मार्ग का ज्ञान भी आवश्यक होता है। आदमी पहले मंजिल को निर्धारित करे, मुझे कहाँ जाना है?
दूसरा फिर महत्त्वपूर्ण प्रश्‍न होता है, जो मंजिल मेरे द्वारा निर्धारित है, वहाँ पहुँचने का रास्ता कौन सा है? मार्गदर्शन की भी आवश्यकता होती है। अगली बात हैगति की। चलेंगे नहीं तो मंजिल नहीं मिल सकती। गति कभी मंद भले हो जाए, पर बंद न हो। गतिमत्ता चाहिए, भले कभी विश्राम लेना पड़े।
मंजिल, मार्ग, मार्गदर्शक और गति इन चार चीजों का बहुत महत्त्व होता है कहीं पहुँचने के लिए। अध्यात्म के संदर्भ में हम देखें तो हम जिस साधना के जगत में हैं। जैन दर्शन, जैन आगम के आलोक में जो साधना का क्षेत्र है, हम उसमें आए हुए हैं। उस संदर्भ में हमारी मंजिल मोक्ष है। बहुत ऊँचा लक्ष्य मानो हमने बनाया है।
मोक्ष में पहुँचने का मार्ग क्या है, मार्गदर्शक कौन है। मार्गदर्शक सबसे बड़े तो अरहंत भगवान तीर्थंकर हैं। उनसे बड़ा मार्गदर्शक अध्यात्म के जगत में मिलना मुश्किल है। अरहंत नहीं है, तो फिर निर्ग्रन्थ साधु-साध्वियाँ और उनमें भी गुरु-आचार्य प्रमुखरूपेण मार्गदर्शक बन सकते हैं। आगम भी मार्गदर्शक बन जाते हैं।
जिनेश्‍वरों ने मार्ग बताया है वह हैज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप। चारों का समुच्चय अपने आपमें एक मार्ग है। वही सत्य है, वह सत्य ही है, जो जिनों के द्वारा प्रविदित है। अब गति करो। ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप आराधना करो तो गति हो जाएगी।
चातुर्मासिक चतुर्दशी एक विशिष्ट पहचान लिए हुए है। बड़ी चतुर्दशी के रूप में इसे माना जा सकता है। इस बार चतुर्मास आज ही लग रहा है। चातुर्मासिक पक्खी है। प्रतिक्रमण करें। चतुर्मास शुरू होने वाला है। चतुर्मास चार मास का समय, एक ही क्षेत्र में रहने का समय है। इसमें ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की आराधना योजनाबद्ध और सुगमता से की जा सकती है।
किसी माध्यम से ज्ञान की आराधना होनी चाहिए। गृहस्थों में ज्ञानाराधना हो। दर्शनाराधना-श्रद्धा हमारी निर्मल रहे। सम्यक्-दर्शन के लिए कषाय-मंदता, यथार्थ के प्रति श्रद्धा, तत्त्वबोध हो। इनसे सम्यक्त्व की निर्मलता को और आगे बढ़ाया जा सकता है।
चारित्र की निर्मलता रहे। महाव्रतों की साधना अच्छी चले। दोष की आलोचना होती रहे, वरना चारित्र के लिए खतरा है। प्रायश्‍चित लेने में आलस न करें। प्रायश्‍चित भी पड़ा न रहे, उसे उतारते रहना चाहिए। इसमें प्रमाद न हो। समितियों-गुप्तियों में हमारी सजगता रहे।
चारित्र तो एक पूंजी है ही। संयम या अध्यात्म की पूंजी को और पुष्ट करने के लिए तपस्या करो। उपवास, स्वाध्याय, विनय, सेवा ये सब तप है। चतुर्मास का समय सामने है। इसमें हम सभी को इस चतुष्टयी की आराधना में अपना नियोजन करने का प्रयास करना चाहिए। श्रावक-श्राविकाओं को भी समझना है। उनकी भी विशेषतया तपस्या चले। प्रेरणा से काम आगे बढ़ सकता है।
चतुर्मास में भी श्रावण-भाद्रव धर्म की आराधना के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण है। बहिर्विहारी साधु-साध्वियाँ भी ध्यान दें। प्रवचन से भी एक खुराक मिल सकती है। समय पर काम होना चाहिए। आगम आधारित प्रवचन हो। ज्ञानशालाओं को भी खुराक मिलती रहे। ज्ञानशाला बच्चों के लिए वरदान है। इसमें अध्यात्म ज्ञान के साथ अच्छे संस्कार मिलते हैं।
उपासक श्रेणी के सदस्य हैं, उनका भी ज्ञान बढ़े और वे अपने ज्ञान से दूसरों को उपकृत करने
का प्रयास भी कर सकते हैं। देश-विदेश में चतुर्मास में जितनी ज्ञान की गंगा प्रवाहित हो सके, उसे प्रवाहित रहने का प्रयास रहना चाहिए। भीलवाड़ा में तो साधु-समागम सा हो गया है। कितने साधु-साध्वियाँ यहाँ विराजित हैं। हम समय का सदुपयोग करें। चित्त समाधि में रहें।
जप-स्वाध्याय अच्छा चलता रहे। हम तप और संयम से अपने आपको भावित करते रहें, यह काम्य है।
पूज्यप्रवर ने वर्षावास स्थापना का उपक्रम आध्यात्मिक मंत्रों के उच्चारण से करवाया। हमारा प्रवास क्षेत्र संपूर्ण भीलवाड़ा क्षेत्र है। वस्त्र-दवा आदि की मर्यादा के बारे में समझाया। हाजरी का वाचन करवाया। साधु-साध्वियों एवं समणियों ने लेख पत्र का उच्चारण किया। पूज्यप्रवर ने मर्यादाओं का महत्त्व समझाया।
मुनि दिनेश कुमार जी ने मोक्ष के साधक और बाधक तत्त्वों के बारे में विस्तार से विवेचन किया।