गुरु पूर्णिमा - 262वाँ तेरापंथ स्थापना दिवस - मंत्र दीक्षा  संवैधानिक मर्यादाओं के अनुपालन से बना तेरापंथ महान : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

गुरु पूर्णिमा - 262वाँ तेरापंथ स्थापना दिवस - मंत्र दीक्षा संवैधानिक मर्यादाओं के अनुपालन से बना तेरापंथ महान : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 24 जुलाई, 2021
आषाढ़ी पूर्णिमा। आज गुरु पूर्णिमा है। आज के दिन जैन एवं समस्त हिंदु संप्रदायों में गुरु की पूजा की जाती है। वि0सं0 1817 आषाढ़ी पूर्णिमा को ही तेरापंथ धर्मसंघ की स्थापना केलवा में हमारे आद्य प्रवर्तक आचार्यश्री भिक्षु ने भाव-दीक्षा ग्रहण कर की थी। वो दिन शनिवार का था। आज भी शनिवार है। साथ में आज ही के दिन प्राय: सभी क्षेत्रों की ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों को मंत्र दीक्षा प्रदान की जाती है।
भैक्षव शासन के एकादशम महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि ‘हमारे भाग्य बड़े बलवान, मिला यह तेरापंथ महान’। गीत की ये पंक्‍तियाँ हैं। तेरापंथ महान ये दो शब्द हैं। एक प्रश्‍न होता है कि तेरापंथ महान कैसे है?
इस प्रश्‍न के आलोक में मैं कुछ बोलना चाहता हूँ। तेरापंथ धर्मसंघ एक संगठन है। हमारा धर्मसंघ यह जैन श्‍वेतांबर तेरापंथ कोई राजनैतिक या सामाजिक संगठन नहीं है। इसका मुख्य स्वरूप एक धार्मिक संगठन के रूप में है।
हमारे संगठन का जन्म आज के दिन आषाढ़ी पूर्णिमा को 261 पूर्व हुआ था। सीधे-साधे रूप में स्थापना हो गई, कोई प्रदर्शन नहीं था।
संत भीखणजी और उनके साथी संतों ने आज के दिन चारित्र ग्रहण नए रूप से किया था, बस उसी को हमने तेरापंथ की स्थापना मान लिया। संगठन का एक प्राण-तत्त्व उसका संविधान होता है। संगठन का संचालन संविधान के आधार पर भी होता है।
हमारे धर्मसंघ में भी संविधान-मर्यादाएँ बनाई गईं। संविधान अगर सशक्‍त और स्पष्ट होता है, तो कोई संगठन महान बन सकता है। संविधान स्पष्ट और स्वच्छ हो। संविधान का पालन कर सके, वो चेतना भी जगाई जाती रहे। लिखा हुआ तो जड़ होता है। संविधान की जो भावना-चेतना है, संगठन के सदस्यों में भरी जाती है, कूट-कूटकर भरी जाती है, संस्कार रूप में वो बन जाती है, तो संविधान वास्तव में प्राणवान बन सकता है।
संविधान के पालन की भी एक सीमा तक अच्छी व्यवस्था है। हमारे संविधान की एक मुख्य धारा है‘सर्व साधु-साध्वियाँ एक आचार्य की आज्ञा में रहें।’ यह धारा आज तक चलती आ रही है। हमारा संविधान कहता है कि विहार चतुर्मास आचार्य की आज्ञा से करें। प्राय: इसका भी ठीक पालन होता आ रहा है।
हमारा संविधान कहता हैअपना-अपना शिष्य-शिष्याएँ नहीं बनाएँ तो आज भी देख लो संविधान की इस धारा पर बखूबी पालन हो रहा है। भावी आचार्य का निर्णय वर्तमान आचार्य करे, इस धारा का पालन भी सामान्य रूपेण-एक प्रसंग को छोड़ दें तो यथावत होता आया है। आशा करें आगे भी ये सुव्यवस्थित चलता रहे।
संविधान स्पष्ट, स्वच्छ और उपयोगी अच्छा हो तो संगठन महान बन सकता है। संगठन के जो सदस्य हैं, वे भी महान हो। एक-एक ईंट के टुकड़े से मकान बनता है। सदस्यों के लिए पाँच बातें मैं बताना चाहता हूँ(1) श्रुत संपदा-ज्ञान का विकास हो। श्रुत की आराधना संगठन में चलती रहे। श्रुत का विकास होने से आलोक मिलता है।


दूसरी बातसाधु-साध्वी, समणी, श्रावक-श्राविका की आचार-शील की निर्मलता रहे। आचार और शील की प्रगतिमत्ता रहनी चाहिए। तीसरी बात हैबुद्धि का विकास होना चाहिए। श्रुत अलग चीज है, बुद्धि मुझे अलग चीज लगती है। जैसे कटोरे में दूध है। कटोरे के समान बुद्धि है। दूध के समान श्रुत है। कटोरा है, तो दूध रखा जाएगा। इसी तरह बुद्धि है, तो श्रुत टिक सकेगा। बुद्धि का वैभव संगठन के सदस्यों में होना चाहिए। बुद्धि से काम अच्छा हो सकता है।
चौथी बातविनयशीलता हो, उद्दंडता, उच्छृंखलता नहीं। बड़ों का सम्मान करो। आचार्य भिक्षु ने दो संतों को बड़ा रखा। आदमी उम्र से, दीक्षा में, पद में या ज्ञान से बड़ा होता है। पाँचवीं बात हैसेवा, संगठन में सेवा अच्छी होती है, तो संगठन महान होता है। ये पाँच बातें और एक संविधान कुल छ: बातें बता दी। इनके आधार पर हम कह सकते हैं कि संगठन महान कैसे होता है।
तेरापंथ का संविधान तो विशिष्ट है ही। साथ उपरोक्‍त पाँच बातों के कारण तेरापंथ महान है। पूर्वाचार्यों ने इस संगठन की महानता को बनाए रखने में, आगे बढ़ाने में अपने ढंग से योगदान दिया। और भी साधु-साध्वियों, समण-समणियों व श्रावक-श्राविकाओं का भी अपने-अपने ढंग से संघ को महान बनाए रखने में या महानता को और वृद्धिगंत करने में योगदान रहा हो सकता है।
यह तेरापंथ महान धर्मसंघ हमें मिला है, इसके साथ हमारे भाग्य का भी योग मान लें। हमारा यह संगठन जिसका आज स्थापना दिवस है, हम और कैसे श्रुत, शील, बुद्धि, विनय, सेवा व संविधान की सुरक्षा इन चीजों में हमारा संगठन गतिमान रहे। हम इनके प्रति जागरूक रहें।
श्रुत-ज्ञान विकास के अनेक आयाम हैं। विनय का और विकास करें। कमियों को कम करने का, गुणों को और अधिक बढ़ाने का प्रयास चलता रहता है, परिष्कार का प्रयास चलता रहता है, तो संगठन की महानता बनी रह सकती है और विकास हो सकता है। छोटे विशेष ध्यान दें कि कैसे महानता में आगे बढ़ें।
आचार्य भिक्षु के प्रति मैं श्रद्धा अर्पित करता हूँ। उनके निमित्त से हमें यह धर्मसंघ मिला है। भीलवाड़ा का चतुर्मास शुरू हो गया है। एक बड़े स्तर पर चतुर्मास हो रहा है। संघ की नींवों को और गहराई में ले जाने के लिए चतुर्मास में तपस्या-विनय भावना हो।
हम इस संगठन के सदस्य हैं। इसकी सदस्यता के प्रति हम जागरूक रहें। ये हमारा संघ है। हम इसकी जितनी सेवा कर सकें, इसकी सुषमा को बढ़ा सकें, जितना हो प्रयास होता रहे।
साध्वीप्रमुखाश्री जी का भी पुरुषार्थ-पराक्रम खूब अच्छा चलता रहे। 80वें वर्ष में भी अच्छी सक्रियता है। सक्रियता आपकी लंबे काल तक पुष्ट बनी रहे। इतनी सेवा आप दे रहे हैं। खूब चित्त समाधि बनी रह सके। साध्वियाँ भी सावधानी रखती है और जागरूकता रहे।
मुनि रवींद्र कुमार जी भी आज ही के दिन साध्वीप्रमुखाश्री जी के संग दीक्षित हैं। आप 84वें वर्ष में पधार गए हैं। फिर भी स्वास्थ्य अच्छा रहे। आपकी योग साधना, आत्म-चिंतन अच्छा चलता रहे। आपके प्रति मंगलकामना है।
साध्वी साधनाश्री जी भी आज ही के दिन दीक्षित है। लंबे काल के बाद हमारा मिलना हुआ। एक कीर्तिमान सा हो गया। जैसा नाम हैसाधना, वैसे साधना पुष्ट रहे और भी न्यारा में दीक्षित होंगे, वे भी खूब अच्छी साधना करते रहें। 61 वर्ष पूर्व दीक्षित सभी के प्रति मेरी मंगलकामना। संघगान के साथ कार्यक्रम संपन्‍न हुआ।
शासनश्री मुनि रवींद्र कुमार जी की आत्मकथा-रोशन से रवींद्र तक आध्यात्मिक यात्रा का प्रकाशन जैविभा द्वारा हुआ है। पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में यह ग्रंथ समर्पित किया गया।
पूज्यप्रवर ने फरमाया कि आत्मकथा जो मुनि रवींद्र कुमार जी की सामने आई हैं। थोड़े में मुनिश्री का जीवन है। मैंने भी देखा है, मुनिश्री का जीवन, संयम के प्रति निष्ठा देखी है। अच्छी अपनी योग साधना, ध्यान साधना, स्वाध्याय साधना चलती रहे। पुस्तक से औरों को अध्यात्म की प्रेरणा मिलती रहे, मंगलकामना।
ष्म्चपेवकपब च्वमजतलष् जो मुनि हेमराज जी के न्यातिलों ने प्रकाशित की पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में अर्पित की गई। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया।

मंत्र दीक्षा के कार्यक्रम में आचार्यप्रवर ने नन्हे बच्चों पर करुणा बरसाते हुए नमस्कार महामंत्र का उच्चारण करवाया। मंत्र दीक्षा बच्चों को ग्रहण करवाई, संकल्प स्वीकार करवाए।
पूज्यप्रवर ने तेले व तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। सम्यक् दीक्षा ग्रहण करवाई।
साध्वीप्रमुखाश्री जी जिनका आज दीक्षा दिवस है। तेरापंथ स्थापना पर आपश्री ने कहा कि बचपन जापान का अच्छा होता है। कारण वहाँ बच्चों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। यौवन अमेरिका का अच्छा होता है, कारण युवाओं में भौतिक सुख-सुविधाओं पर विशेष आकर्षण होता है। बुढ़ापा भारत का अच्छा होता है, कारण यहाँ वृद्धों की सेवा अच्छी होती है।
तेरापंथ में ये तीनों अच्छे होते हैं। यहाँ बाल साधुओं का विशेष ध्यान रखा जाता है। अनेक युवा साधु-साध्वियों ने साधना के अनेक क्षेत्रों में आरोहण किया है। यहाँ बुढ़ापे की किसी को चिंता करने की अपेक्षा नहीं कि बुढ़ापे में सेवा कौन करेगा। हमारे आचार्य सबको चित्त समाधि पहुँचाते हैं।
तेरापंथ धर्मसंघ विकासशील धर्मसंघ है। कारण तेरापंथ का रथ हाँकने वाले ताकतवर है। सपने वे होते हैं, जिनको देखकर पूरा किया जाता है। आचार्य तुलसी ने कहा था कि हमारा धर्मसंघ तेजस्वी और जीवंत हो। हमारे सभी आचार्यों ने इसके लिए नए-नए सपने देखें हैं, वर्तमान में आचार्यप्रवर देख रहे हैं।
तेरापंथ की यात्रा 261 वर्षों की है। इन 261 वर्षों में हमारा धर्मसंघ कहाँ से कहाँ पहुँच गया है। तेरापंथ की पहली शताब्दी में तो पगडंडी ही नहीं थी, सिर्फ काँटे और कंकर भरे थे। दूसरी शताब्दी में उबड़-खाबड़ रास्ता साफ हुआ और तीसरी शताब्दी में तो यह राजमार्ग बन गया है।
तेरापंथ के विकास का कारण है, एक आचार्य का अनुशासन। आचार्य भिक्षु ने तेरापंथ का नामकरण नहीं किया वो तो हो गया। पर उन्होंने उस नाम का विशेष विश्‍लेषण कियाहे प्रभो! यह तेरापंथ। आचार्य भिक्षु को केलवा की अंधेरी ओरी में एक आलोक मिला। वे भावित्मा अणगार थे। आचार्य भिक्षु का लक्ष्य था कि मुझे आगम सम्मत साधना करनी है। एक द‍ृष्टांत से समझाया कि भगवान हमारे में नहीं समा सकते पर हम तो भगवान में समा सकते हैं।
मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि आचार्य भिक्षु ने तिमिर को आलोक में बदलने का प्रयास किया। उनमें आस्था का बल था। उनका लक्ष्य था जिनवाणी। उनका उद्देश्य था, आत्मा का उन्‍नयन। आगम के आधार पर उन्होंने यथार्थता को प्रस्तुत किया। आगम के प्रति उनकी अगाढ़ और अटूट आस्था थी। वही आस्था निरंतर हमारे आचार्यों में प्रवर्द्धमान है। वे शाश्‍वत सत्य के उद्गाता थे।
साध्वीवर्या जी ने कहा कि आषाढ़ी पूर्णिमा का विशेष महत्त्व है। जैन धर्म में आज से चतुर्मास प्रारंभ होता है। हमारे लिए तो यह आज तेरापंथ स्थापना दिवस है। आज गुरु पूर्णिमा है। जिसके जीवन में गुरु नहीं, उसका जीवन शुरू नहीं। गुरु पथदर्शक होते हैं। गुरु तीन प्रकार के बताए गए हैंलौकिक गुरु (माता-पिता), शैक्षणिक गुरु (शिक्षक) और आध्यात्मिक गुरु जो आत्मा का उपदेश देते हैं, शिष्यों को सत्यपथ पर लाने वाले होते हैं।
मुख्य मुनिप्रवर ने कहा कि आज का दिन विशिष्ट दिन गुरु पूर्णिमा है। आज के दिन हमें ऐसे गुरु प्राप्त हुए जो गुरु के गुरुत्व से युक्‍त थे। उनका संयम अनुत्तर था। गुरु की गरिमा हैसंयम, तितिक्षा सहनशीलता की शक्‍ति और सत्य के प्रति समर्पण। ‘पंथ चलाणो लक्ष्य नहीं हो, चल्या स्वयं जद पंथ बण्यो।’ गीत के पद्य का सुमधुर संगान किया।
संतों की ओर से मुनि प्रसन्‍न कुमार जी ने तेरापंथ के निर्माता श्री भिखु का गुण गाते हैं। गीत का सुमधुर संगान किया।
तेयुप मंत्री पीयूष रांका ने अपने भावों की अभिव्यक्‍ति मंत्र दीक्षा कार्यक्रम के उपलक्ष्य पर दी। ज्ञानशाला ज्ञानार्थियों ने गीत की प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि समय का सदुपयोग हो।