राग-द्वेष आदमी को दुःख के गर्त में डाल देते हैं: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

राग-द्वेष आदमी को दुःख के गर्त में डाल देते हैं: आचार्यश्री महाश्रमण

राजलदेसर, 30 जून, 2022
तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी आज राजलदेसर पधारे। मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए परम पावन ने फरमाया कि प्राणी के भीतर जब तक वीतराग न बन जाए तो वृत्तियाँ होती हैं-राग और द्वेष। राग और द्वेष ये दोनों आदमी को दुःख के गर्त में डालने वाले हैं। कर्मों का बंध कराने वाले भी राग और द्वेष हैं। शास्त्र में कहा गया है कि राग और द्वेष कर्म के बीज हैं। जितना-जितना आदमी राग-द्वेष को कमजोर बनाता है, प्रतनू और कृष बनाता है, उतना-उतना वह भीतर से हल्का होता है। पवित्र बनता है। साधु को तो राग-द्वेष, गुस्सा आदि कम करने का प्रयास करना चाहिए। जिस साधु के राग-द्वेष मर गए वह साधु उच्च कोटि का होता है।
गृहस्थ भी अपने अहंकार-गुस्से को कम करने का प्रयास करे। अति लोभ में भी नहीं जाना चाहिए। जीवन हमारा अच्छा बने, यह काम्य है। आज हम राजलदेसर आए हैं। 2050 आचार्य तुलसी के चतुर्मास के समय के प्रसंगों को विस्तार से समझाया। यहाँ 2035 का गुरुदेव का मर्यादा महोत्सव हुआ था जो हमारे धर्मसंघ को भविष्य देने वाला हुआ था। मुनि नथमल महाप्रज्ञ को युवाचार्य घोषित किया था। मैंने भी मर्यादा महोत्सव किया था। यहाँ वर्षों तक सेवा केंद्र भी रहा है। मुनि सुमेरमल जी ‘लाडनूं’ को मंत्री मुनि पद पर स्थापित किया था। राजलदेसर में जैन-अजैन सभी में सद्भावना, नैतिकता, नशामुक्ति बनी रहे। खूब धार्मिक भावना व सामायिक की साधना चलती रहे।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने भी पूज्य कालूगणी के समय के प्रसंग बताए कि किस तरह एक महिला की अर्ज पर मर्यादा महोत्सव फरमा दिया था। हमारे आचार्य योग्यता देखकर अपना निर्णय देते हैं। वर्तमान आचार्यश्री भी करुणा के स्त्रोत हैं। जहाँ राम होते हैं, वहाँ अयोध्या का निर्माण हो जाता है। आचार्यप्रवर का प्रवचन लोगों के जीवन को परिवर्तन करने वाला होता है। जीवन की दिशा और दशा बदलने वाला होता है। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में माणकचंद डागा, तेरापंथ महिला मंडल, कन्या मंडल गीत, तेयुप अध्यक्ष मुकेश श्रीमाल, ज्ञानशाला, गणेशमल नाहर ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।