महातपस्वी महाश्रमणजी का दीर्घ तपस्विनी साध्वी पन्नांजी की साधना भूमि में पदार्पण

गुरुवाणी/ केन्द्र

महातपस्वी महाश्रमणजी का दीर्घ तपस्विनी साध्वी पन्नांजी की साधना भूमि में पदार्पण

देराजसर, 21 जून, 2022
21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस। अतिवृष्टि की विषम परिस्थिति में महापरिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने गुसांईसर से 18 किलोमीटर का विहार कर दीर्घ तपस्विनी के नाम से विख्यात साध्वी पन्नांजी की साधना भूमि स्थित साध्वी पन्नांजी साधना केंद्र पधारें। मुख्य प्रवचन में आध्यात्मिक योग के साधक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि शक्ति का गोपन नहीं करना चाहिए। आदमी को अपनी शक्ति का सदुपयोग करना चाहिए। शक्ति का विकास भी हो, शक्ति का एहसास भी हो और शक्ति को काम में लेने का प्रयास भी हो। ये तीनों शक्ति के साथ जुड़ जाते हैं, तो अच्छे रूप में शक्ति का उपयोग करना अच्छी बात होती है। आज योग दिवस है। अध्यात्म जगत में योग साधना की बात चलती है। ध्यान, स्वाध्याय योग होता है। अनेक रूपों में योग हो सकता है। योग का मतलब क्या है? प्राचीन साहित्य में बताया गया है कि योग यानी जोड़ने वाला। जो हमें मोक्ष के साथ जोड़ दे, वह योग होता है। संस्कृत भाषा में हेमचंद्राचार्य ने कहा है-मोक्ष का उपाय योग है। सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन, सम्यक् चारित्र इसके उपाय हैं।
अष्टांग योग में यम-नियम, आसन, प्राणायाम आदि बताए गए हैं। अहिंसा, सत्य, नियम आदि योग हैं। हमारा हर कार्य योग बन जाए। गमन करना, खाना, स्वाध्याय करना, ध्यान करना भी योग साधना है। प्रेक्षाध्यान भी योग है, तपस्या करना भी योग है। आज हम देराजसर आए हैं। देराजसर से हमारे धर्मसंघ की विशिष्ट साध्वी दीर्घ तपस्विनी साध्वी पन्नाजी जुड़ी हुई हैं। हमारे धर्मसंघ में अनेक तपस्वी संत हुए हैं। आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञजी के समय पन्नाजी ने कितनी दीर्घ तपस्याएँ की थीं। अंतिम समय भी तपस्या में लगी हुई थी। मैंने भी उनको देखा, जाना है। तपस्या के साथ सेवा भावना और विनय की भावना उनमें थी। साध्वी पन्नाजी तो योगिनी थी। विशिष्ट जोगण थी। आज भी विश्व में कितने ऋषि मुनि हुए हैं, कितनी ध्यान-योग साधना की प्रणालियाँ प्रचलित हैं। अनेक आसन हैं, मुद्राएँ हैं। आसन करना एक अंग है, योग साधना का। राग-द्वेष मुक्ति की साधना में आगे बढ़ें, वो मुख्य साधना है। हमारा मन रूपी पानी है, उसमें राग-द्वेष की तरंगें नहीं उठती हैं, वह व्यक्ति आत्मा का साक्षात्कार कर सकता है। जैसे पानी से भरा तालाब है, उसमे तरंगें उठ रही हैं, तो नीचे का भाग साफ नहीं दिखाई देता है। तरंगें नहीं हैं, पानी स्थिर हैं निर्मल है, तो नीचे का भाग दिख सकता है।
समय मिले तो स्थिर होकर ध्यान लगाना चाहिए। अपने भीतर के प्रभु को देखना विशेष योग साधना हो सकती है। यह एक प्रसंग से समझाया कि मिट्टी का पुतला मिट्टी से ही खेलेगा। मेरा प्रभु 24 घंटे मेरे साथ रहता है। स्थिर योग में रहने वाले का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। हम योग साधना को जीवन के साथ जोड़ने का प्रयास करें। अध्यात्म योग की साधना कर आत्मा का कल्याण करें। पूज्यप्रवर योग का प्रयोग कराते हुए ध्यान का प्रयोग अर्हम की ध्वनि के साथ करवाया। प्रेक्षाध्यान का प्रयोग करवाया। कायोत्सर्ग व दीर्घ श्वास का भी प्रयोग करवाया। पूज्यप्रवर के स्वागत में स्थानीय पूर्व सरपंच दानाराम, बुच्चा परिवार की बहनों ने गीत, विजयराज बुच्चा, चौपड़ा परिवार व गाँव की महिलाओं ने गीत से, अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।