युग-युग जीओ साध्वी प्रमुखा

युग-युग जीओ साध्वी प्रमुखा

साध्वी अणिमाश्री

युग-युग जीओ साध्वीप्रमुखा, संघ समूचा गाए।
वर्धापन की मंगल घड़ियां, तुमको आज बधाएं।।

श्रमणीगण सिरमोर बनाया, गुरुवर महाश्रमण ने।
साध्वीप्रमुखा मिली संघ को, खुशियां गण-प्रांगण में।
गुरु-चरणों में विनत-भाव से, हम आभार जताएं।

नव युग की निर्मात्री तुमसे, नई दृष्टि हम पाएं।
शुभ-भविष्य हो श्रमणीगण का, तुमसे मंजिल पाएं।
सृजनशील इन हाथों से तुम, लिखना नई ऋचाएं।

हिमगिरि-सा है उन्नत चिंतन, सागर-सी गहाराई।
चंदा-सी शीतलता मुख पर, सूरज-सी अरुणाई।
वात्सल्य-वारिधि सतिशेखरे! स्नेह-मेघ बरसाएं।।

ज्योति किरण उतरी है भू पर, नव आलोक बिछाए।
फैले चिंहुदिशी यश-परिमल, हम मन के भाव सुनाएं।
सरस्वती-तनया साध्वी प्रमुखा, पाकर मोद मनाएं।।

श्रमणीगण महासतिवर तेरा, चाहता एक इशारा।
उधर मुड़ेगें कदम हमारे, जो आदेश तुम्हारा।
तेरे युग का श्रमणीगण अब, नव पहचान बनाए।।

करते वंदन, लो अभिनंदन, हर्षित कण-कण सारा।
ममतामयी-मां साध्वी प्रमुखा, गूंज रहा जयनारा।
जय-जय नंदा, जय-जय भद्दा, गाए दशों-दिशाएं।।

लय: जनम-जनम का---