गणमाली ने गण को उपहार दिया है

गणमाली ने गण को उपहार दिया है

साध्वी सुधाप्रभा

साध्वी प्रमुखा विश्रुतविभा की, गौरव-गाथा गाएं।
कर अभिनंदन हरसाएं।।

युवा-दिवस पर गणमाली ने, गण को उपहार दिया है।
नौंवी साध्वी-प्रमुखा का, गुरुवर ने चयन किया है।
शासनमाता के पट पर अब, विश्रुतविभाजी आए।।

है अनुबंध हमारा तुमसे, सीप और मोती-सा
संबंध हमारा रहे हमेशा, दीप और ज्योति-सा।
प्रज्ञा की हे शुभ्र ज्योत्सना, ज्योति रश्मियां पाएं।।

आगम की विज्ञाता हो तुम, दर्शन की व्याख्याता।
तेरापंथ दर्शन की ज्ञाता, तत्व ज्ञान आख्याता।
योगसाधिका साध्वी प्रमुखा, की गुण गरिमा हम गाएं।।

योगक्षेम करो सतियों का, आगे खूब बढ़ाओ।
दो दृष्टि तुम श्रमणीगण को, नूतन राह दिखाओ।
तेरे इंगित आदेशों पर, हम सब प्राण चढ़ाएं।।

पल-पल हो अरुणोदय तेरा, यही भावना भाए।
गुरुवर की अरु तव सन्निधि में, प्रतिपल बढ़ते जाए।
आरोग्यलक्ष्मी का वरण करो नित, मंगल भाव सुनाए।
क्रोड-दीवाली राज करो हम, मिलकर तुम्हें बधाएं।

लय: जहां डाल-डाल पर---