अक्षय तृतीया के विविध आयोजन अक्षय तृतीया सुपात्र दान की अमर गाथा है

अक्षय तृतीया के विविध आयोजन अक्षय तृतीया सुपात्र दान की अमर गाथा है

राजाजीनगर

शासनश्री साध्वी कंचनप्रभा जी ने कहा कि वैशाख शुक्ल तृतीया का मंगल प्रभात भारत की कई आध्यात्मिक संस्कृति से जुड़ा हुआ है। जैन परंपरा के अनुसार प्रथम तीर्थंकर भगवान ॠषभदेव की साधिक 13 मास के तप से जुड़ा हुआ है। दीक्षा ग्रहण करने के बाद आज के दिन ॠषभ प्रभु के तप का पारणा हुआ। तपस्या सुरभित फूलों का गुलदस्ता है, जिससे स्वयं की आत्मा तो सुवासित होती ही है परंतु परिपार्श्‍व में रहने वाले को भी अध्यात्म के सन्मुख ले जाती है। बशर्ते तपस्वी की कषाय विजय की साधना प्रभावी हो। जीवन व्यवहार में शांति, समता तथा सहिष्णुता वर्धमान रहे।
हमारे सामने उपस्थित हैं कांतादेवी धारीवाल, जिनके वर्षीतप साधना के 22 वर्ष संपन्‍न हो गए आज उन्होंने 23वें वर्षीतप का प्रत्याख्यान किया। चंपादेवी देरासरिया 12 वर्षीतप संपन्‍न कर चुकी हैं। इसी प्रकार मीना सेठिया तथा वर्षा जैन ने एक-एक वर्षीतप संपन्‍न किया।
शासनश्री साध्वी मंजुरेखा जी ने कहा कि हम साध्वीवृंद सबसे पहले अक्षय तृतीया के मंगलप्रभात में संपूर्ण प्राणी जगत को अध्यात्मपूर्ण आशीर्वाद देते हुए कहना चाहते हैं कि भगवान ॠषभ की तप ऊर्जा से हर व्यक्‍ति का मनोबल, संयमबल तथा तपोबल बढ़ता रहे। साध्वी मंजूरेखा जी, साध्वी उदितप्रभा जी, साध्वी निर्भयप्रभा जी तथा साध्वी चेलनाश्री जी ने ॠषभ स्तुति में एक सुमधुर गीत का संगान किया।