नव मनोनीत साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी के प्रति हृदयोद्गार

नव मनोनीत साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी के प्रति हृदयोद्गार

‘शासनश्री’ साध्वी सत्यप्रभा

हे सतिशेखरे! भाल पर किया गया तिलक अर्चनीय है, वन्दनीय है। आपश्री श्रमणी वर्ग के भाल का मंगल तिलक है। धन्य हैं, सौभागी हैं हम सब कि हमें भैक्षव शासन मिला व महायशस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की कुशल शासना में साधना करने का सुअवसर मिला। वैशाख शुक्ला चर्तुदशी के पावन दिवस पर पूज्यप्रवर की असीम कृपा आपश्री पर हुई, पर अभिस्नात हमारा साध्वी समुदाय हुआ उस अनहद कृपा से। गणाधिपति तुलसी से समण श्रेणी में, आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी व आचार्यश्री महाश्रमणजी की अनूठी व अद्वितीय कृपा आपश्री को प्राप्त हुई है। आप गुरु त्रय की कृति है। आपश्री ज्ञान, ध्यान, तप की तेजस्विता लिए हुए हैं, हम भी उन रश्मियों से दीप्तिमान बनें। आपश्री स्वस्थ, निरामय व चिरायु हो व आपकी कुशल शासना में हम सब साधना में प्रगतिमान बनें।