पूज्यप्रवर के सान्‍निध्य में आचार्य महाश्रमण सेतु का लोकार्पण  - ज्ञान से आचार की यात्रा में महत्त्वपूर्ण सेतु है अच्छे संस्कार : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

पूज्यप्रवर के सान्‍निध्य में आचार्य महाश्रमण सेतु का लोकार्पण - ज्ञान से आचार की यात्रा में महत्त्वपूर्ण सेतु है अच्छे संस्कार : आचार्यश्री महाश्रमण

कुथौली, 13 जुलाई, 2021
तीर्थंकर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण जी की सन्‍निधि में आज प्रात: आचार्यश्री महाश्रमण सेतु का उद्घाटन चित्तौड़गढ़ में हुआ। मोक्ष मार्ग के सेतु आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देषणा प्रदान करते हुए फरमाया कि दो शब्द हैंज्ञान और आचार। ज्ञान के द्वारा आदमी यथार्थ को जान लेता है।
दूसरी बात हैआचार। आचार में ज्ञान परिणित कैसे हो? जान लिया। हिंसा बुरी है। हिंसा न करने की बात आचार में कैसे आए? नदी के दो किनारे हैं। एक किनारे से दूसरे किनारे के पार पहुँचना है, उसका एक उपाय हैसेतु बंध। पुल बना दो, नदी पार हो जाएगी। नौका से या चलकर भी पार जाया जा सकता है। ज्ञान से आचार तक की यात्रा करनी है, उसके लिए एक सेतु चाहिए, वह सेतु हैदर्शन या संस्कार। उत्तराध्ययन में बताया गया हैज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप ये चार मोक्ष मार्ग बताए गए हैं।
यह दर्शन है, यह एक सेतु है। दर्शन पुष्ट नहीं होगा या संस्कार नहीं बनेगा तो वह जानी हुई बात आचार में न भी आ पाए। बच्चे को ज्ञान तो दे दिया कि ये-ये काम खराब है, नहीं करना, पर ये बातें उसके दिमाग में वो श्रद्धा-निष्ठापूर्वक बैठ हो जाए तो वो ज्ञान आचार में आ सकता है। बार-बार समझाने से, परिणाम को जान लेने से उसे समझ में आ जाएगा, वह नहीं करेगा।
सम्यक्दर्शी पाप से बच सकता है। निष्ठा जाग जाए, जिस कार्य के प्रति श्रद्धा हो जाए, भीतर का प्रेम हो जाए तो कठिन काम करना भी आसान हो सकता है। नियम के प्रति ज्ञान के प्रति प्रेम जाग जाए, निष्ठा जाग जाए तो फिर वे ज्ञान की अच्छी बातें हैं, वो आचार में परिणित हो सकती है। संस्कार सेतु है, वो पुष्ट हो गया तो जानी हुई बातें आचरण में आ सकती है।
ज्ञान के समान मानो पवित्र चीज नहीं है। विद्यालयों में विद्यार्थियों को अनेक विषयों का ज्ञान दिया जाता है। अज्ञान तो अभिशाप है। अज्ञान आवृत्त चेतना वाला व्यक्‍ति हित-अहित का भी बोध नहीं कर सकता। ज्ञान एक तलवार है, अज्ञान रूपी अंधकार को नष्ट करने के लिए। ज्ञान अग्नि के समान है, जो अज्ञान रूपी ईंधन को जला डालती है। ज्ञान एक दीपक है, जो अज्ञान रूपी अंधकार को नष्ट कर देता है।
ज्ञान अथाह है, ज्ञान ग्रहण का प्रयास करो। सूर्य नहीं बन सकते तो दीपक तो बनो। ज्ञान एक सूर्य है, फिर अज्ञान का अंधकार नहीं रहता। ज्ञान से हमें प्रकाश मिल जाता है। संस्कार निर्माण का काम है, वो एक तरह से सेतु निर्माण का काम है। सेतु से मार्ग आसान हो जाता है। एक कहानी से समझाया कि संस्कार देने से छोटों का स्वभाव बदल सकता है। बड़ों का स्वभाव बदलना मुश्किल हो सकता है। विद्यालयों में भी बच्चों में अच्छे संस्कार आ जाएँ तो एक ओर ज्ञान बढ़े और दूसरी ओर अच्छे संस्कार आ जाएँ तो विद्यार्थियों का जीवन कितना बढ़िया हो सकता है।
भारत देश के पास अनेक ग्रंथ, पंथ और संत संपदाएँ हैं। बच्चे अच्छे होंगे तो देश भी अच्छा हो सकेगा। जीवन-विज्ञान से भी बच्चों में अच्छे संस्कार निर्माण का प्रयास है। बच्चों में ज्ञान और आचार अच्छे हैं, तो उनमें एक तरह से परिपूर्णता आ सकती है। कोरा ज्ञान अधूरा है।
हमारे धर्मसंघ में ज्ञानशाला एक महत्त्वपूर्ण उपक्रम है। ज्ञानशाला में संस्कार निर्माण का कार्य अच्छा हो सकता है। अच्छे आचार का निर्माण भी ज्ञानशाला के माध्यम से हो सकता है। जगह-जगह ज्ञानशाला के माध्यम से श्रम किया जा रहा है। स्कूल के ज्ञान के साथ धर्म का ज्ञान भी बच्चों को मिलता रहता है। ऐसे उपक्रम उपयोगी हैं, इनसे सीधा लाभ मिलता है। ज्ञानशाला प्रयास भी है और परिणाम भी है।

ज्ञानशालाओं में दो बातों पर और ध्यान दिया जा सकता है। एक तो ज्ञानार्थियों की संख्या बढ़ाई जाएँ, दूसरी जहाँ ज्ञानशाला खुलने की संभावना है वहाँ ज्ञानशाला खुलवाई जाए। बाल पीढ़ी के संस्कार निर्माण का काम ज्ञानशाला से हो रहा है। निष्पत्तिमत्ता भी है।
पूज्यप्रवर के स्वागत में पडहोली के सरपंच महीपालसिंह सप्तावत ने अपनी भावना रखी। महासभा द्वारा सरपंच का सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि हमें भी मोक्ष सेतु का निर्माण करना है।