चित्त की प्रसन्नता को पाना जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

चित्त की प्रसन्नता को पाना जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि: आचार्यश्री महाश्रमण

आडसर, 27 जून, 2022
तेरापंथ धर्मसंघ के सरताज आचार्यश्री महाश्रमणजी ठुकरियासर से 12 किलोमीटर का विहार कर आडसर स्थित तेरापंथ भवन पधारे। हाजरी के पावन दिवस पर तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी के भीतर काम भी होता है, कामना भी होती है। कामना जब कुछ अतिरेक की स्थिति में चली जाती है, तो वे अहितकर हो सकती है। तीन शब्द हैं-महेच्छ, अल्पेच्छ और अनिच्छ। महेच्छ यानी वह व्यक्ति जिसमें बहुत ज्यादा इच्छाएँ होती हैं। महेच्छ का एक अर्थ उदार भी हो सकता है। इच्छाएँ दो प्रकार की होती हैं-एक प्रशस्त इच्छाएँ, दूसरी अप्रशस्त इच्छाएँ। प्रशस्त इच्छाएँ तो अच्छी भी होती हैं। संतोष करना अच्छा है, पर किसी संदर्भ में संतोष न करना भी अच्छा है।
तीन विषयों-स्वदार, भोजन और धन में संतोष रखें। अनेक रूपों में इच्छा-परिमाण और भोगोपभोग परिमाण किया जा सकता है। तीन चीजों में संतोष नहीं करना चाहिए-अध्ययन, जप और दान में। अनेक रूपों में सेवा भी की जा सकती है। बीमार को शारीरिक, मानसिक चित्त समाधि देनी चाहिए। ब्राह्मण असंतोष में रहता है, तो उसका भी नुकसान हो सकता है। पर राजा अगर संतोष कर ले तो नुकसान हो सकता है।विकास करना है तो कुछ असंतोष करना होगा। आकाश व अवकाश है, तो विकास करो। आदमी अपनी अवांछनीय कामनाओं को कम करें। प्रशस्त इच्छाओं की कामना करें, विकास करें। आदमी को ज्यादा ऐश-आराम वाली लालसा का नहीं बनना चाहिए। हमारा कठोरता का जीवन जीने का प्रयास होता है, तो हम अच्छा विकास कर सकते हैं। हम समय का बढ़िया उपयोग करें। अच्छे कार्यक्षेत्र में विकास करें।
साधना में, ज्ञान में नया-नया विकास हो। जीवन में कुछ करते रहना चाहिए। चलते रहोगे तो कुछ पा लोगे। सोए रहोगे तो भाग्य भी सो सकता है। भीषण गर्मी में भी यात्रा करना बड़ी तपस्या है। कठिनाई और कठोरता में भी चित्त प्रसन्न रहे। चित्त की प्रसन्नता जीवन की एक बहुत बड़ी उपलब्धि होती है। आज चतुर्दशी है, साधु-साध्वियों की उपस्थिति है। पूज्यप्रवर ने हाजरी का वाचन कर प्रेरणाएँ प्रदान करवाई। मर्यादाएँ हमारे धर्मसंघ के स्तंभ हैं। लेखपत्र का वाचन साध्वी नमनप्रभाजी, साध्वी सिद्धांतप्रभाजी ने किया। पूज्यप्रवर ने साध्वी नमनप्रभाजी को 9 कल्याणक व साध्वी सिद्धांतप्रभाजी को 5 कल्याणक बख्शीष कराए। सामुहिक लेख-पत्र का वाचन चारित्रात्माओं द्वारा किया गया। हम सभी अच्छी आराधना-साधना करते रहें।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि हाजरी का अर्थ हैµउपस्थिति। चतुर्दर्शी को प्रायः साधु-साध्वियाँ पूज्य सन्निधि में पहुँच जाते हैं। तेरापंथ एक भव्य प्रासाद है, इसके शिल्पकार थेµआचार्य भिक्षु। इस प्रासाद के चार महत्त्वपूर्ण स्तंभ हैं, जिनके आधार पर यह प्रासाद खड़ा है। वे स्तंभ हैंµसमर्पण, सेवा, साधना और श्रम। पूज्यप्रवर के स्वागत-अभिनंदन में मोक्ष बरड़िया, तेरापंथ महिला मंडल गीत, राजेश छाजेड़, कन्या मंडल गीत, मनफूलसिंह राजपूत, अजयराज छाजेड़, तातेड़ परिवार, नाहर परिवार, नीलम सुराणा, मनीषा तातेड़, लक्ष्मीकांत बरड़िया ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि संगत से भाग्य बदलता है। मनुष्य जन्म दुर्लभ है, तो धर्म श्रवण भी दुर्लभ है।