सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन और चारित्र युक्त हो हमारी जीवनशैली: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन और चारित्र युक्त हो हमारी जीवनशैली: आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ भवन, गंगाशहर, 16 जून, 2022
तेरापंथ के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमण जी का गंगाशहर प्रवास तीसरा दिन। महामनीषी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी जीवन जीता है, आदमी ही नहीं, सृष्टि का हर प्राणी जीवन जीता है। जीवन जीना एक सामान्य बात है। एक लक्ष्य के साथ सम्यक् तरीके से जीवन जीना विशेष बात हो जाती है।
कलापूर्ण जीवन जीना अच्छा जीवन हो सकता है। प्राचीन साहित्य में 72 कलाओं का नामोल्लेख मिलता है। 72 कलाओं में कोई कुशल निष्णात हो गया, पंडित बन गया फिर भी सभी कलाओं में श्रेष्ठ कला धर्म की कला को नहीं सीखा है, तो वे पंडित अपंडित रह जाते हैं। आज जैन जीवन शैली का विषय रखा गया है। साध्वीवर्याजी ने जीवनशैली के बारे में बहुत संक्षेप में अच्छी बातें बताई हैं। जीवनशैली किस प्रकार की होनी चाहिए? जीवनशैली से पहले लक्ष्य का निर्धारण होना चाहिए। मुझे जीवन क्यों जीना है। इसका समाधान हमें जैन आगम में मिलता है। संक्षेप में बताया गया है। इस देह को धारण करें, जीवन जीएँ क्यों? पूर्व कर्मों का क्षय करने के लिए, मोक्ष प्राप्ति के लिए जीवन जीएँ। गुणस्थानों की दृष्टि से देखें तो चौदहवाँ गुणस्थान मनुष्य के सिवाय किसी भी प्राणी में नहीं आ सकता। सिद्धांत के अनुसार तो छठा गुणस्थान से लेकर चौदहवें तक के गुणस्थान मनुष्य में ही प्राप्त हो सकते हैं।
पाँचवाँ गुणस्थान तो मनुष्यों के अलावा तिर्यंचों में संज्ञी पंचेंद्रिय कई श्रावक बन सकते हैं। देवों में तो पाँचवाँ, गुणस्थान भी नहीं आ सकता। इसलिए मनुष्य एक ऐसा प्राणी है, जो मोक्ष की उत्तम साधना कर सकता है। जीवन का लक्ष्य बने कि मैं पूर्व कर्म क्षय करूँ, मोक्ष प्राप्ति की दिशा में इस जीवन में आगे बढ़ूँ। जीवनशैली का निर्धारण लक्ष्य निर्धारण के बाद बढ़िया हो सकता है। दर्शन हमारा शुद्ध हो। शुद्ध देव, शुद्धगुरु और शुद्ध धर्म के प्रति आस्था हो। यह जैन जीवनशैली का एक सूत्र हैं वही सत्य है, जो जिन केवली ने फरमाया है। कौन से धर्म-संप्रदाय पर श्रद्धा हो। श्रद्धा के लिए एक मुख्य बात है, जो जिनेश्वर भगवान ने प्रवेदित किया है, वही सत्य है। व्यवहार में तत्त्वज्ञान को समझकर जो ठीक लगे उसे स्वीकार करूँ। सम्यक्त्व के लिए कषायमंदता की साधना हो।
परमपूज्य आचार्यश्री तुलसी ने नव आयामी जैन जीवनशैली की प्ररुपणा की है। सम्यक् दर्शन के साथ नमस्कार मंत्र जुड़ा हो। जैन वही है, जो णमोकार धार हो। नव तत्त्व को समझें। सम्यक् ज्ञान के लिए हमारे ग्रंथ, जैन आगम हैं, उनका स्वाध्याय होता रहे। सम्यक् चारित्र के लिए आचार ठीक हो। श्रावकों का आचार भी अच्छा हो। खान-पान की शुद्धि हो, नशामुक्ति जीवन में रहे।
हमारे शादी में धर्म का प्रभाव हो, जैन संस्कार पुष्ट रहें। हमारा तत्त्वज्ञान का विकास आत्महत्या, भ्रूण हत्या से बचने का प्रयास हो। जैन-अजैन कोई हो जीवनशैली लक्ष्य के अनुरूप हो। मोक्ष हमारा लक्ष्य है, उसके अनुसार सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चारित्र पर आधारित जीवनशैली हो। साध्वीवर्या जी ने कहा कि मनुष्य के पास कला हो तो उसे कोई छीन नहीं सकता। आदमी के पास अनेक कलाएँ हैं। पर सर्वश्रेष्ठ कला हैµजैन जीवनशैली। जीवन जीने की कला आ गई तो सब कुछ आ गया। जीवन सुखमय बन सकता है। जैन जीवनशैली के नौ सूत्र हैं, जिनको सूक्ष्मता से समझाया। पूज्यप्रवर के स्वागत में मुनि राजकुमार जी, समणी जयंतप्रज्ञा जी, समणी सन्मतिप्रज्ञा जी ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।
पूज्यप्रवर के अभिवंदन स्वागत में मूर्तिपूजक संघ से सुरेंद्र जैन, स्थानकवासी संघ से मोहनलाल सुराणा, दिगंबर समाज से एडवोकेट विनोद जैन, जैन सभा अध्यक्ष जैन लूणकरण छाजेड़, आचार्य तुलसी शांति प्रतिष्ठान से हंसराज डागा, पूनमचंद छाजेड़, ज्ञानशाला, मूलचंद सामसुखा परिवार एवं सभा मंत्री रतन छल्लाणी ने अपने भावों की अभिव्यति दी। गवरादेवी सेठिया ने 34वाँ वर्षीतप का प्रत्याख्यान पूज्यप्रवर से लिया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि आदर्श पुरुष वीतराग होता है। जैन धर्म में तीन रत्नµसम्यक् दर्शन, ज्ञान, चारित्र की आराधना होती है।