हम अपनी आत्मा को मित्र बनाने का अवश्य प्रयास करें: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

हम अपनी आत्मा को मित्र बनाने का अवश्य प्रयास करें: आचार्यश्री महाश्रमण

गंगाशहर, 14 जून, 2022
गंगाणै के नाम से सुप्रसिद्ध गंगाशहर जहाँ श्रद्धा के अनेक परिवार हैं। गंगाशहर वह पावन धरा है, जहाँ आचार्यश्री तुलसी का धवल समारोह आयोजित हुआ था। आठवीं साध्वीप्रमुखा साध्वी कनकप्रभाजी का चयन यहीं हुआ था तो मुनि नथमल (आचार्यश्री महाप्रज्ञजी) को महाप्रज्ञ अलंकरण से यहीं नवाजा गया था। गंगाशहर में गणाधिपति गुरुदेवश्री तुलसी का महाप्रयाण होने से यह धरा जन-जन की आस्था का केंद्र बन गई थी, तो आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने अपने युवाचार्य की धवल चद्दर मुनि महाश्रमण को ओढ़ाई थी। यहाँ अनेक वर्षों से साध्वी सेवा केंद्र भी चल रहा है।
गंगाशहर पर पूर्वाचार्यों की असीम कृपा रही है। आचार्यों के आठ चतुर्मास गंगाशहर-बीकानेर में हो चुके हैं। भैक्षव शासन के एकादशम् अधिशास्ता का विशाल जनमेदिनी के साथ आज गंगाशहर के तेरापंथ भवन में प्रवास हेतु पधारना हुआ। मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए भगवान महावीर के प्रतिनिधि ने फरमाया कि शास्त्र में कहा गया है कि हे! पुरुष, तुम ही तुम्हारे मित्र हो, फिर क्या बाहर मित्र खोज रहे हो। बाहर के मित्र की क्या जरूरत है।
दुनिया में मित्र तो होते हैं, मित्र बनाए जाते हैं। तुम ही तुम्हारे मित्र हो यह बात कैसे संयत बैठ सकती है। अनेक बातों को नय की दृष्टि से सापेक्षता के आधार पर समझा जा सकता है। निश्चय नय की दृष्टि एक बात सही होती है, वो व्यवहार नय से अलग बात हो सकती है। व्यवहार नय में जो सही बात होती है, वह निश्चय नय की दृष्टि से सही बात न भी हो। आत्मा-प्राणी जैसा कर्म करता है, उसके अनुसार उसको फल भोगना पड़ता है। आत्मा मित्र है और आत्मा ही अमित्र-शत्रु है। दुष्प्रवृत्ति में लगी हुई आत्मा अमित्र होती है, सद्प्रवृत्ति में लगी आत्मा मित्र होती है। आत्मा ने सात वेदनीय का बंध किया है, तो आत्मा शरीर की दृष्टि से सुख में रहती है।
मित्र कोई कल्याण-मित्र हो, ऐसा मित्र अच्छा होता है, जो धर्म की दिशा में आगे बढ़ा दे। धर्म से गिरते हुए को बचा ले। जो आदमी गुस्सा-हिंसा करता है, वह अपनी आत्मा को दुश्मन बनाने का प्रयास कर रहा है। मान, छल-कपट करने वाला अपना अमित्र बन जाता है। अधर्म करने वाला दुश्मन बन जाता है। हम अपनी आत्मा को मित्र बनाने का अवश्य प्रयास करें। दूसरों के प्रति मैत्री भाव, मंगलभावना रखने वाला अपना मित्र हो जाता है। यह एक प्रसंग से समझाया कि मैत्री भाव रखने वाला दूसरों को भी अपना मित्र बना लेता है।
आज गंगाशहर चतुर्दिवसीय प्रवास हेतु आना हुआ है। यह तेरापंथ न्यास का भवन जहाँ गुरुदेव तुलसी ने महाप्रयाण किया था। थोड़े ही समय बाद भाद्रव शुक्ला चतुर्दशी को आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने मुझे अपने करकमलों से उत्तराधिकार की चद्दर ओढ़ाई थी। आचार्यश्री तुलसी ने साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी का चयन एवं मुनि नथमल जी को महाप्रज्ञ अलंकरण प्रदान करवाया था। अनेक प्रसंग यहाँ आयोजित हुए थे।
17 जून को गुरुदेव तुलसी के महाप्रयाण को 25 वर्ष पूर्ण होने जा रहे हैं, वो कार्यक्रम भी यहाँ आयोजित होने वाला है। पूज्यप्रवर को बीकानेर की महापौर सुशीला तंवर एवं उनके पार्षदों ने बीकानेर नगर की चाबी अर्पित की। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। पूज्यप्रवर ने दिवंगत मुनि राजकरण जी, मुनि पानमल जी, मुनि नगराज जी एवं मुनि बालचंद जी की भी स्मृति की। बीकानेर में सभी में सद्भावना, नैतिकता, नशामुक्ति की भावना रहे, मंगलकामना। साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि तेरापंथ के गौरव का इतिहास गंगाशहर के इतिहास के साथ जुड़ा है। मुझे यहाँ आकर गुरुदेव तुलसी एवं आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी की स्मृति हो रही है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने यहीं तेरापंथ भवन में युवाचार्य मनोनयन पत्र लिखा था एवं चौपड़ा स्कूल में भरी परिषद में मुनि मुदित कुमार जी को दायित्व की चद्दर ओढ़ाई थी। मुनि पृथ्वीराज जी एवं साध्वी गंगाजी ने नए बसते हुए गंगाशहर में बहुत पुरुषार्थ कर श्रावकों को तेरापंथ की गुरुधारणा करवाई।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में मुनि शांति कुमार जी, मुनि श्रेयांस कुमार जी, सेवा केंद्र व्यवस्थापिका साध्वी कीर्तिलता जी ने अपनी भावना श्रीचरणों में अर्पित की। साध्वीवृंद ने गीत से पूज्यप्रवर की अभिवंदना की। पूज्यप्रवर के स्वागत-अभिनंदन में स्थानीय सभा अध्यक्ष अमरचंद सोनी, अंजु मालू, तेरापंथ महिला मंडल, सूर्यप्रकाश सामसुखा, तेरापंथ युवक परिषद, अणुव्रत समिति से राजेंद्र बोथरा, स्थानीय पार्षद सुमन छाजेड़, महापौर सुशीला तंवर, तेरापंथ न्यास से कन्हैयालाल फलोदिया, मिलापचंद चौपड़ा (टीपीएफ) ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि श्रावक के जीवन में सद्-संस्कारों का बड़ा महत्त्व है। उसके बिना वह सम्यक्त्व और श्रावकत्व से शून्य हो जाता है।