सुखी बनने का महत्त्वपूर्ण सूत्र है स्वयं पर संयम : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सुखी बनने का महत्त्वपूर्ण सूत्र है स्वयं पर संयम : आचार्यश्री महाश्रमण

गंगरार, 14 जुलाई, 2021
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रात: लगभग 13 किमी का विहार कर गंगरार पधारे। आचार्यप्रवर ने मंगल प्रवचन में फरमाया कि भगवान महावीर ने गौतम आदि संतों से प्रश्‍न किया कि बताओ साधुओ, आयुष्मन श्रमणो! प्राणियों को भय किस चीज का लगता है। संत उत्तर नहीं दे सके। भगवान ने समाधान देते हुए फरमाया कि प्राणी दु:ख से डरते हैं।
फिर प्रश्‍न हुआदु:ख पैदा किसने किया? उत्तर हैइस जीव ने ही अपने प्रमाद से दु:ख पैदा किया है। फिर प्रश्‍न कि ये दु:ख वैदिक कैसे हो जाए? अप्रमाद से दु:ख से छुटकारा मिल सकता है। आगम में ही बताया गया है कि दु:ख-मुक्‍ति का मार्ग हैअपने आपका अभिनिग्रह करो। अपने आप पर संयम, नियंत्रण करो।
उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया हैजो आत्मा दमन-शमन करता है, वो इस लोक में सुखी बनता है, आगे भी सुखी बनता है। दूसरों पर अभिनिग्रह करने से दु:ख से छुटकारा पाने का मूल उपाय नहीं है। तुम्हें सुखी बनना है, तो तुम अपना संयम कर लो। दु:ख से छुटकारा मिल जाएगा।
बात आती है कि चित्त समाधि चाहिए। चित्त समाधि दूसरे से कितनी मिल सकती है और खुद से कितनी मिल सकती है। तुम अपने आपमें शांत हो, गुस्से पर तुम्हारा निग्रह किया हुआ है, समता भाव है, तो दूसरा आदमी कितना ही बोल ले, तुम्हें क्या फर्क पड़ेगा। तुम अपनी समाधि में रह सकते हो। तुम्हारी चित्त समाधि दूसरों के हाथों में नहीं रहनी चाहिए।
अपने आपका जिसने दमन कर लिया वो इस जन्म में भी सुखी है और आगे भी सुखी है। कोरोना महामारी चल रही है, डरो मत, सावधानी रखो, शांत रहो, अभय का भाव रखो। चित्त में शांति रहेगी। चित्त समाधि तो खुद के हाथ में ही होती है, ऐसा मुझे लगता है।
आत्म-निग्रह जो करता है, उसकी चित्त समाधि रह सकती है। दूसरों पर ज्यादा ध्यान मत दो, अपना संयम रखो। दूसरों ने कुछ कहा और तुम अशांति में चले गए तो तुम तो दूसरों के हाथ के खिलौने बन गए। अपनी समाधि दूसरों के हाथ में मत दो, अपने हाथ में रखो।
अपनी साधना इतनी मजबूत रखो कि दूसरा उसे बाधित न कर सके। मेरी चित्त समाधि मेरे पास है। इतने डरो मत कि दूसरे मेरी चित्त समाधि खराब कर देंगे। सेवा का भाव रखो। चाहे फिर कोई प्रकृति से जटिल हो, उसे अपने पास रखो। प्रकृति से जटिल आदमी तो बीमार जैसा ही है, उसकी सेवा करो।
निमित्त से बचाव सामान्यतया कर लें, पर अपेक्षा है तो निमित्त प्रतिकूल भले ही है, उसको भी स्वीकार करें। मैं दूसरों को समाधि दूँगा तो संभव है, मुझे भी समाधि मिल सकेगी।
गृहस्थों का पारिवारिक-सामाजिक जीवन है, इस जीवन में रहते हुए भी अपने आप का निग्रह करो। तो जीवन अच्छा रह सकता है। एक प्रसंग से समझाया कि अपने आप पर निग्रह नहीं तो आदमी खूब बोलता है। एक प्रसंग से और समझाया कि हम सेवा लेने वाले नहीं सेवा देने वाले बनें।
दूसरों पर कंट्रोल करना हर जगह अपने वश की बात नहीं है, स्वयं का ही निग्रह रखो। अपनी शांति अपने पास रहे। हम शास्त्रों के संदेशों को जितना जीवन में उतार सकें, उतारने का प्रयास करें तो हम ऊर्ध्वारोहण कर सकेंगे।
आज कई साध्वियाँ आई हैं। साध्वी जयश्री जी के साथ की साध्वी कमलप्रभा जी, साध्वी विजयश्री जी के साथ की साध्वी उर्मिला जी, साध्वी शुभप्रभा जी, साध्वी कांतयशा जी, साध्वी शुभवति के साथ की साध्वी संपूर्णयशाजी, साध्वी मननयशा, साध्वी अतुलयशा, साध्वी विवेकश्री जी, साध्वी परमप्रभा जी आदि साध्वियाँ आई हैं, सभी अच्छा काम, अच्छा विकास करें।
साध्वी कमलाप्रभा जी, साध्वी उर्मिला कुमारी जी, साध्वी शुभप्रभा जी, साध्वी संपूर्णयशाजी, साध्वी विवेकश्री जी ने अपने भावों की अभिव्यक्‍ति श्रीचरणों में अर्पित की।
पूज्यप्रवर के स्वागत-अभिवंदना में गंगरार से पूनम कर्णावट, मनोहरलाल कर्णावट, डिंपल-पारखी कर्णावट, जीविका चोरड़िया, निष्ठा ने अपने भावों की अभिव्यक्‍ति दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने करते हुए बताया कि पुरुषार्थ करणीय होता है।