दुख मुक्‍ति का उपाय है राग-द्वेष मुक्‍त होना : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

दुख मुक्‍ति का उपाय है राग-द्वेष मुक्‍त होना : आचार्यश्री महाश्रमण

चित्तौड़गढ़, 11 जुलाई, 2021
तेरापंथ के महाराणा, धर्मोद्योतकर आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रात: महाराणा प्रताप की नगरी चित्तौड़गढ़ पधारे। महाराणा प्रताप का किला यही चित्तौड़गढ़ में अवस्थित है। चित्तौड़गढ़ मेवाड़ का प्रवेश द्वार है। चित्तौड़गढ़ तेरापंथ के इतिहास से जुड़ा है, तो तेरापंथ के आचार्यों से भी जुड़ा है।
अंतर्यामी-शांतिदूत ने मंगल पाथेय प्रदान कराते हुए फरमाया कि एक प्रश्‍न उठाया गया कि ऐसा कौन सा कर्म है, कार्य है, जिसको करके मैं दुर्गति को प्राप्त न होऊँ। क्योंकि मैं संसारी जीव हूँ। संसार में हूँ और संसार भी अध्रुव है, अशाश्‍वत है। एक जीवन कोई शाश्‍वत-ध्रुव नहीं है।
मनुष्य है, हमेशा मनुष्य रहेगा, ऐसा नहीं। चाहे देवता, नरक, तिर्यन्च कोई भी हो, किसी भी प्राणी का जीवन शाश्‍वत नहीं है। त्रैकालिक होना और शाश्‍वत होना, उसी जीवन का बना रहना संभव नहीं और जिस रूप में है, जैसे आदमी बच्चा है, तो हमेशा बच्चा बना रहेगा यह भी नहीं। बचपन के बाद यौवन वार्ध्यक आ सकता है।
यह संसार जिसके लिए शास्त्रकार ने दो शब्दों का प्रयोग किया हैअध्रुव है, अशाश्‍वत है। तीसरा विश्‍लेषण हैदु:ख प्रचुर है। संसार में दु:ख बहुत होते हैं। सुख भी होते हैं। परंतु जीवन में प्रतिकूलता-आपदा की स्थितियाँ भी आ सकती हैं। जीवन का समापन भी सुनिश्‍चित है, ऐसा ये संसार है।
आदमी की मृत्यु होगी यह निश्‍चित है, परंतु कब होगी, कहाँ होगी यह कुछ अनिश्‍चित हमारे लिए हो सकती है। क्या करूँ कि इस जीवन के बाद दुर्गति में न जाना पड़े। उत्तर दिया गयादु:ख मुक्‍ति का उपाय हैराग-मुक्‍त होना, राग को छोड़ वीतराग बन जाना। जो साधु बनता है, वो मानो राग-मुक्‍ति की साधना में अग्रसर हो जाता है।
हर पाप की जड़ में यह राग बैठा है। राग क्षीण हो जाए, कम हो जाए, फिर कोई आदमी पाप नहीं कर सकता है। दु:ख है तो दु:ख मुक्‍ति भी संसार में है। राग है तो शारीरिक, मानसिक कई दु:ख पैदा हो सकते हैं। आचार्य महाप्रज्ञ जी ने फरमाया था कि समस्या और दु:ख एक नहीं है। समस्याएँ हैं, पर आदमी मानसिक स्तर पर प्रसन्‍न रह सकता है। शांति में रह सकता है।
हम समस्या से जितना ज्यादा पलायन करते हैं, समस्या किसी संदर्भ में उतनी ही हावी हो सकती है। भागो मत, समस्या से घबराओ मत। समस्या को देखो, सावधानी रखे, जो करना है, सो करो पर डरो मत। जो समस्या से डरता है, उसको समस्या किसी संदर्भ में डराने वाली बन सकती है। समस्या से मैत्री-प्रसन्‍नता का भाव है तो फिर संभव है, समस्या ज्यादा तकलीफ न दे।
मैत्री बुढ़ापे के साथ, मैत्री बीमारी के साथ और मैत्री और समस्याओं के साथ हो जाती है, फिर आदमी भागता नहींडरता भी नहीं है। समाधान का प्रयास हो सकता है। जब तक समस्या-भय की स्थिति सामने आए नहीं तब तक डरना हो तो डर लो, पर समस्या की स्थिति सामने आ जाए तब मत डरो, प्रतिकार करने पर ध्यान दो।
समस्या कहीं भी किसी तरह आ जाए, किसी समस्या के होने पर अंदर से व्यथित मत बनो। तनाव मत करो, समता-शांति रखो। समस्या को ध्यान से देखो। समस्या का स्तर क्या है, समस्या में गहराई कितनी है? अच्छी तरह जानकर समस्या का समाधान करो।
दो वृत्तियाँ होती हैंसेंहही वृत्ति और श्‍वानी वृत्ति। कुत्ते पर ढेला फैकेंगे तो कुत्ता ढेले को देखेगा, चाटेगा, उसकी सोच उतनी ही है। शेर की ओर कोई बाण फैंको तो शेर बाण को नहीं, बाण फैंकने वाले को देखेगा। वो मूल पर जाने का प्रयास करेगा। जो व्यक्‍ति समस्या को गहराई से देखने की वृत्ति प्राप्त कर लेता है, उसके लिए उस समस्या का समाधान कुछ आसान हो सकता है।
समाधान का आधार है, समस्या का सही ज्ञान होना। शास्त्रकार ने बताया है कि ये संसार दु:ख प्रचुर है, अशाश्‍वत-अध्रुव है। कौन सा कर्म करूँ जिसके द्वारा मैं दुर्गति में जाने से बच जाऊँ। दु:ख है, दु:खमुक्‍ति का उपाय है, यह एक प्रसंग से समझाया। बुढ़ापा, बीमारी, मृत्यु दु:ख है। अहो! संसार में कितने दु:ख हैं। त्याग-संयम, भोगों को छोड़ देना दु:ख मुक्‍ति का उपाय है। हम इस उपाय को काम में लेते रहें तो आशा की जा सकती है कि दु:ख मुक्‍ति प्राप्त हो सकेगी।
आज राजस्थान के इस मेवाड़ संभाग के चित्तौड़गढ़ में आना हुआ है। पहले भी आना हुआ था। यहाँ के जैन-अजैन लोगों में खूब अच्छी भावना रहे। अब एकदम मेवाड़ दिखने लग गया है। अब मेवाड़ में लंबा प्रवास है। मुनि मोहजीत कुमार जी व मुनि रश्मि कुमार जी से आज मिलना हो गया है। मुनि धर्मचंदजी ‘पीयूष’ एवं मुनि सुखलाल जी स्वामी जो कुछ समय पहले दिवंगत हो गए उनके बारे में फरमाया। सहवर्ती संतों को भी शिक्षाएँ फरमाईं।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि जो महापुरुष होते हैं, वे घूम-घूमकर लोगों का संताप दूर करते हैं। आचार्यप्रवर ने सात वर्ष में 15-16 हजार किमी की यात्रा की है। जहाँ-जहाँ पूज्यप्रवर पधारते हैं, गाँव के लोगों में उल्लास छा जाता है।
मुनि मोहजीत कुमार जी, मुनि जयेश कुमार जी, मुनि रश्मि कुमार जी, मुनि प्रियांशु कुमार जी ने अपने मनोभाव पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में अर्पित किए। बाल मुनियों की भावना वास्तव में अनुमोदनीय थी। ऐसा विकास तेरापंथ में ही संभव हो सकता है।
पूज्यप्रवर के स्वागत-अभिवंदना में स्थानीय विधायक चंद्रभान, वरिष्ठ कांग्रेस सदस्य सुरेंद्र सिंह झालावत, सभापति नगर परिषद संदीप शर्मा, तेरापंथ सभा के मंत्री भूपेंद्र भुतावत, दिगंबर समाज से महेंद्र टोंगिया, महावीर मंडल से कमल बीकानेरिया, महिला मंडल, बी0एल0 खाब्या, टीपीएफ अध्यक्षा प्रियंका ढिलीवाल, सुनील ढिलीवाल, बीजेएस से हितैष श्रीश्रीमाल ने अपने भावों की अभिव्यक्‍ति दी।