शांति के लिए संसाधनों की नहीं अपितु साधना की अपेक्षा: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

शांति के लिए संसाधनों की नहीं अपितु साधना की अपेक्षा: आचार्यश्री महाश्रमण

हंसा रिसोर्ट-रायसर, 19 जून, 2022
शांत सौम्य मूर्ति, आध्यात्मिक शांतिप्रदाता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में शांति का बहुत महत्त्व है। आदमी शांति और सुख से जीना चाहता है। शांति एक ऐसा तत्त्व है, जो पैसे से नहीं मिलता है। सुविधा तो संसाधनों से मिल सकती है, पर शांति साधना से मिलती है। साधना ही शांति का आधार है। राग-द्वेष और चारों कषाय कितने प्रतनू पड़े वह शांति है, यह एक प्रसंग से समझाया कि कठोर जीवन जीने वाले साधु प्रसन्न रहते हैं, पर सुख-सुविधा में रहने वाले राजकुमार प्रसन्न नहीं रहते हैं। वर्तमान में जीने वाला और संतोष से जीने वाला सुखी रह सकता है। संयम-त्याग से शांति प्राप्त हो सकती है। लालसा से मुक्त रहने वाला, कल की चिंता न करने वाला शांति को प्राप्त कर सकता है। यह भी एक प्रसंग से समझाया कि कल की चिंता आज मत करो। चिंता करने वाला इससे बोध ले सकता है।
गृहस्थ के जीवन में भी इच्छा परिमाण हो। उपभोग, परिभोग की सीमा करें। संतोष धारण करते हैं तो शांति मिलती है। भय, गुस्सा, चिंता अशांति के कारण हैं। अभय की साधना हो। शांति की साधना से आत्मा निर्मल रहती है, मोक्ष की दिशा में आदमी आगे बढ़ सकता है। आदमी के भीतर जो भाव हैं, वो बाहर प्रकट हो जाते हैं। योग-ध्यान, अध्यात्म ऐसे तत्त्व हैं, जिससे चेतना की निर्मलता रह सकती है। आत्मा शुद्ध रह सकती है। अणुव्रत-प्रेक्षाध्यान अध्यात्म की साधना के प्रकल्प हैं। जप-स्वाध्याय से भी मन एकाग्र रहता है, चित्त की निर्मलता रहती है। इन सबसे आदमी शांति के दरिये में बह सकता है। त्यागी संतों की वाणी से भी प्रेरणा मिल सकती है। वे पथदर्शन देकर मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं, आदमी की दशा और दिशा बदल सकती है।
त्यागमूर्ति, क्षमामूर्ति, समतामूर्ति संतों का समागम होना, उनकी वाणी सुनना अच्छी बात है। गृहस्थ के जीवन में भी त्याग का जितना हो सके प्रयोग करना चाहिए। दिनचर्या में कुछ समय साधना में लगाने का प्रयास होना चाहिए। भारत का भाग्य है कि यहाँ अतीत में भी संत हुए हैं और वर्तमान में भी हो रहे हैं। प्राचीन ग्रंथ भी भारत के पास बहुत हैं। यहाँ अनेक धार्मिक पंथ भी हैं। भौतिकता के साथ आध्यात्मिकता भी चाहिए। देश में नैतिकता और आध्यात्मिकता का भी विकास हो। आर्थिक और शैक्षिक विकास भी चाहिए। अध्यात्म भारत की विशेष संपत्ति है। साधना प्राप्ति के लिए शांति का विकास हो।
आज हंसराज डागा के रिसोर्ट में आए हैं। यहाँ कोई ध्यान-योग करना चाहे तो अच्छा आनुकुल्य रह सकता है। इनके परिवार में खूब धार्मिक संस्कार हों। अच्छी सेवा करते रहें। पूज्यप्रवर के स्वागत में हंसराज डागा, रजनी नाहटा, शारदा डागा, धमेन्द्र डागलिया ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। परमपावन ने महत्ती कृपा कर फरमाया कि छापर चातुर्मास के बाद बायतू जाने से पूर्व आचार्य भिक्षु समाधि संस्थान, सिरियारी में जाने का भाव है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि हमें हंस वृत्ति अपनानी चाहिए।