संघर्ष में समत्व का भाव रखना महापुरुष का लक्षण: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

संघर्ष में समत्व का भाव रखना महापुरुष का लक्षण: आचार्यश्री महाश्रमण

नैतिकता के शक्तिपीठ में आचार्यश्री तुलसी का 26वां महाप्रयाण दिवस

नैतिकता का शक्तिपीठ, गंगाशहर, 17 जून, 2022
आषाढ़ कृष्णा तृतीया आज से 25 वर्ष पूर्व तेरापंथ के नवम् अधिशास्ता गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी का गंगाशहर के तेरापंथ भवन में महाप्रयाण हो गया था। जिस पावन जगह पर उनका अंतिम संस्कार किया गया था, वह स्थान है-नैतिकता का शक्तिपीठ, आचार्य तुलसी समाधि स्थल। आज उनका 26वाँ पुण्य दिवस संपूर्ण तेरापंथ धर्मसंघ आयोजित कर रहा है। आचार्य तुलसी के परंपरा पट्टधर, वर्तमान के तुलसी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने महती कृपा बरसाते हुए अपने दोनों पूर्वाचार्यों-आचार्यश्री तुलसी एवं आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का जिस दिन जहाँ महाप्रयाण हुआ था वहीं पर वह वार्षिक दिवस आयोजित करवाया है। सरदारशहर में अध्यात्म के शांतिपीठ पर वैशाख कृष्णा एकादशी को आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का 13वाँ महाप्रयाण दिवस का आयोजन हुआ था तो आज यहाँ नैतिकता के शक्तिपीठ पर गुरुदेव तुलसी का 26वाँ महाप्रयाण दिवस आयोजित हो रहा है।
नैतिकता के शक्तिपाठ परिसर में नैतिक क्रांति के पुरोधा, जन-जन को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अपने दादा गुरु का पुण्य स्मरण-गुणगान करते हुए फरमाया कि आज आचार्यश्री तुलसी का 26वाँ महाप्रयाण दिवस है। संभवतः यह पहला ही प्रसंग है कि मूल दिन जो महाप्रयाण का है, उस दिन तेरापंथ के आचार्य गुरुदेव तुलसी के समाधि स्थल के परिपार्श्व में महाप्रयाण की पुण्यतिथि का कार्यक्रम मना रहे हैं। इससे पहले न आचार्यश्री महाप्रज्ञजी यहाँ विराजे, न मैं कभी आया। इस बार भी आना तो नहीं होने वाला था, परंतु यह शक्तिपीठ की जो टीम है, उनका चिंतन-श्रम रहा आखिर मेरे से स्वीकृति ले ली। सरदारशहर में भी पहला अवसर था कि वार्षिकी तिथि पर मैं आचार्य महाप्रज्ञजी की समाधि स्थल पर था। सन् 2022 का ऐसा वर्ष आया है कि दोनों गुरुओं के मूल महाप्रयाण दिवस पर उनके समाधि स्थल में आने का मुझे अवसर प्राप्त हुआ।
आचार्य तुलसी एक विशिष्ट व्यक्तित्व के धनी थे। बाल्यावस्था में ही आचार्यश्री कालूगणी के पास दीक्षित हो गए थे। ग्यारह वर्षों का काल उनका विद्यार्थी-शिक्षक के रूप में था। होनहार साधु के रूप में रहे और मात्र 22 वर्ष की अवस्था में वे हमारे धर्मसंघ के युवाचार्य बन गए, आचार्य बन गए। जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ की ये अद्वितीय घटना है। इतने बड़े धर्मसंघ का इस छोटी उम्र में आचार्य बनना विरल बात है। छोटी उम्र के आचार्य लंबे काल तक धर्मसंघ को संभाल सकते हैं। मगन मुनि ने तो उन्हें उस समय 82 वर्ष का बताया था। उनकी बात सही भी हुई। गुरुदेव तुलसी 82 वर्ष की अवस्था में ही कालधर्म को प्राप्त हो गए थे। आज का दिन आया तब गुरुदेव तुलसी 83वें वर्ष में चल रहे थे। युवावस्था कार्य करने के लिए अच्छी उम्र हो सकती है। कोलकाता और दक्षिण भारत की लंबी यात्राएँ कीं। उनका विरोध भी हुआ, संघर्ष की स्थितियाँ भी आईं। संघर्षों में समत्व का भाव रखना महापुरुषों का एक लक्षण होता है। संघर्ष में भी हर्ष बना रहे, यह बड़ी बात है।
परमपूज्य आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन किया जो आचार्य तुलसी और तेरापंथ को व्यापक रूप देने का एक बड़ा आधार बना था। अणुव्रत का कार्य मानव जाति के उत्थान का कार्य था। प्रेक्षाध्यान, जीवन-विज्ञान चला। समण श्रेणी की स्थापना हुई। अनेक संस्थाएँ उनके आचार्य काल में स्थापित हुई। उन्होंने इन संस्थाओं में प्राण प्रतिष्ठा स्थापित करने का भी कार्य किया।
आचार्य तुलसी समाधि स्थल पर ध्यान भी किया था। संस्था का अवलोकन भी किया था। संस्था के कार्यकर्ताओं में अच्छी स्फूरणा, सेवा-भावना रहे। अन्य संस्थाएँ भी अपनी धार्मिक, आध्यात्मिक गतिविधियों को गतिमान करते रहें। आज के दिन को विसर्जन दिवस के रूप में भी प्रतिष्ठा दी गई है। आचार्य तुलसी ने अपने पद का विसर्जन किया था, यह हमारे धर्मसंघ की विरल घटना है।
परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी ने अपने जीवन में कितनों को आगे बढ़ाया था। आगम संपादन का कार्य भी आचार्य तुलसी के वाचनाप्रमुखत्व में हुआ था। अनेक रूपों में उन्होंने अपनी सेवाएँ दी थीं। साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी कुछ अंशों में आचार्य तुलसी की ही कृति थी। उन्होंने उन्हें दीक्षित, शिक्षित और विकसित भी किया था। पद से आदमी शोभित होता है, तो पद भी आदमी से शोभित हो सकता है।
आचार्य तुलसी ने साध्वी झमकु जी, साध्वी लाडाजी और साध्वी कनकप्रभाजी को तीन-तीन साध्वियों को साध्वीप्रमुखा पद पर स्थापित किया था। मैंने साध्वी विश्रुतविभाजी को सरदारशहर में साध्वीप्रमुखा पद पर स्थापित किया है। वे भी अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। परमपूज्य आचार्यश्री तुलसी ने अध्यापन के क्षेत्र में भी कार्य किया था। कितनों को वे पढ़ाया करते थे। प्रवचन करने के साथ-साथ वे ज्ञानदाता भी थे। वे महान रचनाकार, साहित्यकार भी थे। उपासक श्रेणी के सदस्य बैठे हैं। गुरुदेव तुलसी के साथ में उपासक का कार्य शुरू हुआ था। उपासक श्रेणी भी आगे बढ़ी। ये श्रेणी आगे से आगे भी प्रगति करती रहे। कई उपासकों में ज्ञान भी अच्छा है। कई उपासक तो कितना समय लगाते हैं। मानो उनका गार्हस्थ्य थोड़ा कमजोर पड़ गया होगा, उपासक्त्व बलवान बन गया होगा। उपासक श्रेणी भी खूब विकास करती रहे, अच्छी सेवा देती रहे।
ज्ञानशाला का उपक्रम भी गुरुदेव तुलसी के समय शुरू हुआ था। वह भी अच्छा क्रम प्रतीत हो रहा है। और आगे विकास होता रहे। गुरुदेव तुलसी के समय चतुरंगीणी अंतरंग धर्म परिषद चलती थी। हमारे साधु-साध्वियाँ व समणियाँ गुरुदेव तुलसी के अवदानों को आगे बढ़ाने का प्रयास करते रहें।
उनका कितना उपकार हम पर है। उनके उपकारों से उऋण होना मुश्किल है। मैं गुरुदेव तुलसी का बार-बार स्मरण श्रद्धा के साथ कर रहा हूँ कि उनकी आत्मा जैसा हो संभालती रहे। किसी रूप में पथदर्शन-प्रेरणा देती रहे। हम भी अपनी अध्यात्म की दिशा में विकास करते रहें। मंगलकामना। पूज्यप्रवर ने - जय तुलसी, तुलसी नाम---का जाप जप करवाया।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि आषाढ़ कृष्णा-3 गुरुदेव तुलसी के स्मरण का दिन है। 25 वर्ष बीत गए। उन्होंने धर्मसंघ को ऊँचाइयाँ दी। वे सहिष्णु थे। हृदय की कोमलता भी थी तो वज्र से अधिक कठोर भी थे व फूलों से अधिक कोमल थे। वे व्यक्ति दुर्लभ होते हैं, जो छोटी उम्र में अपने घर-परिवार को छोड़ देते हैं और पूरे धर्मसंघ का दायित्व ग्रहण कर लेते हैं। जनकल्याण के लिए उन्होंने पुरुषार्थ किया। छोटे-छोटे साधुओं का उन्होंने निर्माण किया था। साध्वीवर्याजी ने कहा कि दो प्रकार के पुरुष होते हैं-आग्नेय पुरुष और पारखी पुरुष। आग्नेय पुरुष-श्रेष्ठ गुण संपन्न होते हैं। ऐसे व्यक्ति विरले होते हैं। गुरुदेव तुलसी उनमें से एक थे। वे जागृत दृष्टा महापुरुष थे। उन्होंने दृष्ट स्वप्नों को पूरा किया। विरोधों के बावजूद आगे बढ़ते रहे। उन्होंने साध्वियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया। जैन धर्म का विदेशों में प्रचार-प्रसार करने हेतु समण श्रेणी का अवदान दिया।
मुख्य मुनिप्रवर ने कहा कि आचार्य तुलसी का बाह्य और आभ्यंतर व्यक्तित्व आकर्षक था। उन्होंने जो संकल्प किया वो स्वप्न बनकर साकार हो गया। उन्होंने चिंताग्रस्त मानव को शांति का संदेश दिया। उन्होंने युगीन समस्याओं का समाधान अणुव्रत आंदोलन से दिया। उन्होंने कहा था-पहले इंसान इंसान फिर हिंदू या मुसलमान। वे मानवता के मसीहा थे। आचार्य तुलसी को हम आचार्यश्री महाश्रमण में देख सकते हैं। मैं दोनों महापुरुषों को वंदन करता हूँ। आप मानव जाति को नैतिकता का पथ दिखाते रहे और आपका आध्यात्मिक नेतृत्व हमें मिलता रहे।
गणाधिपति गुरुदेवश्री तुलसी को अपनी भावांजलि अर्पित करते हुए मुनि राजकुमार जी, मुनिवृंद, साध्वीवृंद एवं समणीवृंद ने गीत के माध्यम से अपने भावों को अभिव्यक्ति दी। उपासक श्रेणी ने भी गीत से अपनी भावांजलि दी। राजस्थान सरकार के मंत्री बी0डी0 कल्ला, नोखा विधायक बिहारीलाल बिश्नोई, शांति प्रतिष्ठान से महावीर रांका, तेरापंथ महिला मंडल, तेरापंथ कन्या मंडल, सुशील खटेड़, रोहित बैद, अणुव्रत समिति से जंवरीलाल गोलछा, शिवावस्ती महिला मंडल, हंसराज डागा एवं शांति प्रतिष्ठान के न्यासीगण ने अपनी भावांजलि दी।
रात्रि में धम्म जागरणा का आयोजन पूज्यप्रवर की सन्निधि में हुआ। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।