व्यक्ति व्यस्त रहे परंतु अस्त-व्यस्त ना रहे: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

व्यक्ति व्यस्त रहे परंतु अस्त-व्यस्त ना रहे: आचार्यश्री महाश्रमण

भीनासर, 11 जून, 2022
जैन जगत के उज्ज्वल नक्षत्र आचार्यश्री महाश्रमण जी लगभग 15 किमी का इस भीषण सूर्य के आतप में विहार करते हुए पलाणा से भीनासर पधारे। भीनासर गंगाशहर से पुराना श्रद्धा का क्षेत्र है। समय-समय पर पूज्यवरों का जब भी गंगाशहर-बीकानेर पधारना हुआ है, तो भीनासर को भी अपनी चरण रज से पवित्र किया है। विशाल जनमेदिनी को पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए धर्मज्ञाता ने फरमाया कि हम सब मनुष्य हैं, और मनुष्य जन्म को प्राप्त करना भी एक विशेष बात होती है। चौरासी लाख जीव-योनियाँ बताई गई हैं। उनमें से मनुष्य जन्म मिलना कठिन भी है और महत्त्वपूर्ण भी है। मनुष्य ही ऐसा प्राणी होता है, जो मोक्ष को प्राप्त कर सकता है इस जन्म के ठीक बाद। अन्य किसी जन्म से मोक्ष नहीं प्राप्त किया जा सकता, यह मान्यता, सिद्धांत है। कई-कई जन्मों तक जीवों को तपस्या-साधना करनी होती है, तब जाकर मनुष्य जन्म पाकर मोक्ष की प्राप्ति वह कर सकता है। यह एक प्रसंग से समझाया। भगवान महावीर ने भी पिछले जन्मों में कितनी तपस्या-साधना की होगी, आखिरकार वे महावीर के भव से मुक्ति को प्राप्त हो गए। मानव जीवन में तपस्या-साधना, वैराग्य वृद्धिंगत हो, आदमी मुक्ति की दिशा में आगे बढ़ सकता है।
भारत में ऋषियों की परंपरा है। अतीत में कितने ऋषि-महर्षि हुए हैं, आज भी हैं। पुराने संतों की जो उपलब्धियाँ-तपस्या थी, उतनी आज न भी हो। जहाँ संतों का विहरण होता है, वो क्षेत्र भी अपने आपमें भाग्यशाली है। संतों की वाणी से जनता को भी अच्छा लाभ मिल सकता है। साधना से युक्त साधुओं की कल्याणी वाणी हो, उस वाणी का अपना महत्त्व होता है। हम प्रवचन में तीन बातें सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की बात बताया करते हैं। गृहस्थों का जीवन कैसे अच्छा रहे? आत्मा भी अच्छी हो सके, उसके लिए ये तीन बातें समझाते हैं।
अणुव्रत और प्रेक्षाध्यान में भी अहिंसा-समता की बातें बताई गई हैं। हम व्यस्त भले हो जाएँ, पर हमारा दिमाग अस्त-व्यस्त न हो। कर्म के साथ धर्म जुड़ जाए। धर्म दो प्रकार के हैंµउपासनात्मक और आचरणात्मक। दोनों में एक को चुनना हो तो आचरणात्मक धर्म को चुनो। जीवन में अहिंसा, संयम, मैत्री रखो तो कल्याण हो जाएगा।
मुसल की चोरी कर सूई का दान देने से पाप नहीं धुलता है। सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति जीवन में होती है, तो जीवन अच्छा और शांतिमय रह सकेगा। भीनासर से अनेक साधु-साध्वी, समणी संघ को प्राप्त हुए हैं। भीनासर की जनता में खूब धर्म की चेतना रहे। मंगलकामना। साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि चलते रहोगे तो कुछ पाओगे। आचार्यप्रवर की यह यात्रा महानिर्जरा की यात्रा हो रही है। आतप एक भीषण परिषह है। जिसके मन में लोक-कल्याण व संघ-विकास की भावना रहती है, वह परिषहों को सहन करते हुए आगे बढ़ता रहता है। जिस संघ में श्रद्धा होती है, वह प्राणवान संघ होता है। हमारे धर्मसंघ में साधु-साध्वियों की ही नहीं, श्रावक-श्राविकाओं की श्रद्धा भी बेजोड़ है। जिसके मन में संघ व गुरु के प्रति श्रद्धा होती है, वह बहुत कुछ पा सकता है।
साध्वी ललितकला जी जिनका आगामी चातुर्मास भीनासर में ही होने वाला है, ने अपनी भावना पूज्यप्रवर के चरणों में अर्पित की। समणी मधुरप्रज्ञाजी जो भीनासर की ही हैं, उन्होंने भी पूज्यवर के स्वागत में अपने भाव अभिव्यक्त किए। पूज्यप्रवर की अभिवंदना एवं स्वागत में तेरापंथ महिला मंडल गीत एवं अध्यक्षा मौनिका सेठिया, ज्ञानशाला, तेयुप अध्यक्ष ऋषभ डागा, सभा मंत्री महेंद्र बैद, अभातेयुप अध्यक्ष पंकज डागा, तेरापंथ सभाध्यक्ष पानमल डागा, उपासिका पुष्पा नवलखा, कुशल-अक्ष बैद, पूजा पटवा एवं सप्तमंडल ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि जो गर्मी-ताप, अनुकूलता-प्रतिकूलता में सम रहता है, वह आत्मा का कल्याण कर सकता है।