यादें... शासनमाता की

यादें... शासनमाता की

साध्वी स्वस्तिक प्रभा

17 मार्च, 2022 परमपूज्य आचार्यप्रवर का अनुकंपा भवन में सूर्योदय के कुछ समय पश्चात् पावन पदार्पण, शासनमाता के कक्ष में पहुँचकर भूमि पर आसीन होकर वंदना।
साध्वियाँ: (साध्वीप्रमुखाजी से) गुरुदेव पधारे हैं।
आचार्यप्रवर: साध्वीप्रमुखाजी के सुखसाता है?
साध्वीप्रमुखाश्री ने संभवतः सिर हिलाकर स्वीकृति दी। वे पूज्यप्रवर को निहार रही थीं।
आचार्यप्रवर ने मंगलपाठ सुनाया। पूज्यप्रवर का मंगलपाठ सुनते-सुनते आँखें मूँद लीं।
आचार्यप्रवर: हम आपके पास आए हैं।
साध्वीप्रमुखाश्री: प्रत्युत्तर में कुछ बोल नहीं पाईं।
साध्वी सुमतिप्रभाजी : रात में स्वास्थ्य में बहुत उतार-चढ़ाव रहा। सुबह साढ़े चार-पाँच बजे से ही टसकने की आवाज आने लग गई, जो अब तक चल रही है।
आचार्यप्रवर: रात में चेतना कैसी थी?
साध्वी कल्पलताजी: जब हम कुछ बोल रहे थे, तब तो आँखें खोल रहे थे। पल्स को नियंत्रित करने के लिए सूर्योदय के बाद जो गोली दी, वह भी ली थी। डॉ0 ने रात में ही देने के लिए कहा था, किंतु साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने रात में दवा लेने से मना कर दिया।
साध्वी सुमतिप्रभाजी: (साध्वीप्रमुखाश्री जी से) नेत्र खोलें। (साध्वीप्रमुखाश्री जी ने पलकें झपकीं, लगा वे नेत्र खोलना चाहती हों)। आचार्यप्रवर आपको कुछ त्याग कराएँ?
साध्वीप्रमुखाश्री प्रत्युत्तर नहीं दे सकीं।
मुख्य नियोजिकाजी, मुख्य मुनिश्री, साध्वीवर्याजी (समवेत निवेदन)µअभी जब आचार्यप्रवर पधारे तब साध्वीप्रमुखाश्री को निवेदन किया कि आचार्यप्रवर पधार गए हैं, तब उन्होंने हाँ के रूप में स्वीकृति दी थी।
साध्वी शशिप्रभाजी: गुरुदेव आपको दस मिनट का त्याग कराएँ?
साध्वीप्रमुखा ने हल्के से नेत्र खोले।
साध्वीवर्याजी: साध्वीप्रमुखाश्री जी (महाराज) ने नेत्र थोड़े खोले हैं।
आचार्यप्रवर: (साध्वियों से) समसामाचारी में तो पहले ही आ गए ना?
साध्वियाँ: तहत्, समसामाचारी में आ गए हैं।
आचार्यप्रवर ने भिन्न सामाचारी के प्रायश्चित्त रूप ‘तस्स मिच्छामि दुक्कड़ं’ का उच्चारण किया। ज्ञातव्य है कि कल सायंकाल आचार्यप्रवर ने साध्वीप्रमुखाजी को सूर्योदय तक की चिकितसा की आलोयणा अग्रिम रूप में दे दी थी, जिसे उन्होंने स्वीकार भी किया और रात्रि में साध्वियों ने उनको जाप सुनाकर बता भी दिया था कि आपका प्रायश्चित्त उतर गया है।
आचार्यप्रवर: (साध्वीप्रमुखाश्री जी की ओर उन्मुख होकर कुछ तेज स्वर में)µ‘साध्वीप्रमुखाजी! आपको अब सागारी संथारा कराने का चिंतन है।’
साध्वीप्रमुखाजी की ओर से कोई संकेत प्राप्त नहीं हुआ।
आचार्यप्रवर: (नमस्कार महामंत्र एवं मंगलपाठ के उच्चारण के पश्चात् प्रातः 7ः27 पर) यदि आप मेरी बात को स्वीकार कर रहे हैं तो आपको सागारी रूप में तीनों आहार के त्याग हैं। खूब समता-शांति, आत्मस्थता रहे।
साध्वियाँ: (आचार्यप्रवर से) तिविहार संथारा पूरी तरह से कराने की कृपा कराएँ।
आचार्यप्रवर: जब तक साध्वीप्रमुखाजी स्वयं स्पष्ट रूप में संकेत न करें, तब तक सागारी रूप में ही संथारा पचखाया जा सकता है।
पूज्यप्रवर कुछ समय के लिए समीपस्थ कक्ष में पधारे। साध्वियों आदि ने जप शुरू कियाµ
अरहंते सिद्धे साहू धम्मं सरणं तु पवज्जामि।
विघ्नहरण मंगलमय सिद्धि, शरण सदा अंतर्यामी।।
कुछ समय पश्चात् आचार्यप्रवर का पुनरागमन, करीब 8ः13 पर साध्वीप्रमुखाजी ने आँखों खोलीं। सामुहिक जप का क्रम गतिमान।
आचार्यप्रवर: साध्वीप्रमुखाजी! सुखसाता हैं? अब पूरा संथारा करा दें क्या?
साध्वीप्रमुखाश्री ज्ञात रूप में कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पाईं।
आचार्यप्रवर द्वारा उच्चरित शरण सूत्र का सामुहिक जप के रूप में क्रम चलता रहा। साध्वीप्रमुखाश्री के श्वास की गति क्रमशः मंद पड़ने लगी। साधु-साध्वियों से परामर्श के पश्चात
आचार्यप्रवर: साध्वीप्रमुखाजी चौविहार संथारा करवाएँ क्या? आपकी इच्छा हो तो संकेत करें। भले आप धीमे से बोल देंµहाँ। (उच्च स्वर में नमस्कार महामंत्र, मंगलपाठ, ¬ भिक्षु, जय तुलसी, जय महाप्रज्ञ की उच्चारण कर करीब प्रातः 8ः29 पर) यदि आप स्वीकार कर रहें तो आपको यावज्जीवन सागारी रूप में चारों आहार का त्याग है।् 


(पुनः जप रूपी पाठ आचार्यप्रवर द्वारा आरंभµअरहंते सरणं---) कुछ ही समय में साध्वीप्रमुखाजी के श्वास का क्रम टूटने लगा और अंततः रुक गया।
डॉ0 मोनिकाजी: (परीक्षण के बाद)µअब भी भीतरी स्पंदन चल रहा है। कुछ समय बाद डॉ0 हीरालाल नौलखा भी उपस्थित हो गए। पुनः स्वास्थ्य का निरीक्षण कर दोनों डॉक्टर्स ने भारी मन से आचार्यप्रवर से निवेदन किया कि साध्वीप्रमुखाजी नहीं रहे।
आचार्यप्रवर के निर्देशानुसार साध्वी जिनप्रभाजी आदि कुछ साध्वियों एवं मुनि धर्मरुचिजी ने अपने-अपने तरीके से जाँच करने के बाद ऐसा ही निवेदन किया। डॉ0 से साध्वीप्रमुखा के महाप्रयाण की सूचना लिखित रूप में प्राप्त कर कक्ष से बाहर पधारकर आचार्यप्रवर ने एक लिखित संदेश का वाचन कियाµ
चिकित्सकीय निर्णय और चारित्रात्माओं की जाँच के आधार पर मैं यह सूचना दे रहा हूँ कि जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ की साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी का आज प्रातः लगभग 8ः45 बजे के आसपास महाप्रयाण (देहावसान) हो गया है। उस कालधर्म प्राप्त आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना।
अनुकंपा भवन, अध्यात्म साधना केंद्र, दिल्ली
µ आचार्य महाश्रमण

अत्यंत भावुक वातावरण में करीब 9ः34 पर आचार्यप्रवर साध्वीप्रमुखाजी की पार्थिव देह के निकट पधारे, नमस्कार महामंत्र का उच्चारण कर फरमायाµ‘साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी हमारे धर्मसंघ में परमपूज्य गुरुदेव तुलसी के उपपात में पहुँची थीं, साध्वी बनीं, साध्वीप्रमुखा बनाई गईं। हमारे धर्मसंघ की उन्होंने महान सेवा की। आज मैं उनके पार्थिव देह को जैन श्वेतांबर तेरापंथ समाज, दिल्ली को सौंप रहा हूँ। वोसिरामि-वोसिरामि।
तदुपरांत उस कक्ष के बाहरी भाग में विराजमान हो आचार्यप्रवर ने अपने इस लिखित संदेश का वाचन कियाµ
आज अनुकंपा भवन, अध्यात्म साधना केंद्र महरौली में चिकित्सकीय निर्णय और चारित्रात्माओं की जाँच के आधार पर यह बताया जा रहा है कि जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ की साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी का आज दिनांक 17-3-2022 को प्रातः लगभग 8ः45 बजे के आसपास महाप्रयाण (देहावसान) हो गया है।
शासनमाता साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी के महाप्रयाण के संदर्भ में जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ में पंचदिवसीय आध्यात्मिक अनुष्ठान की आराधना की घोषणा करता हूँ। तद्नुसार आज फाल्गुन शुक्ला चतुर्दशी से चैत्र कृष्णा चतुर्थी यानी 17 मार्च से 22 मार्च, 2022 के प्रातः सूर्योदय तक जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के सदस्य नमस्कार महामंत्र आदि का जप, कालधर्म प्राप्त साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी की स्मृति सभा आदि का यथासंभवतया आयोजन करें और मध्यस्थ भावना और आध्यात्मिक मंगलकामना का प्रयोग करें।
अनुकंपा भवन, अध्यात्म साधना केंद्र, दिल्ली
µ आचार्य महाश्रमण
पूज्यप्रवर सायं 4 बजे से कुछ पूर्व शासनमाता की पार्थिव देह के पास मंच पर (अंतिम यात्रा से पहले) पधारे। बैकुंठी के निकट खड़े होकर ‘लोगस्स व मंगलपाठ’ उच्चरित किया। फिर मंगल उद्गार व्यक्त करते हुए फरमायाµ
हमारे धर्मसंघ की शासनमाता, महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी ने साधिक पचास वर्षों तक साध्वीप्रमुखाजी के रूप में अपनी विराजमानता रखीं, धर्मसंघ को सेवा दी और तीन-तीन आचार्यों को अपना योगदान दिया। उनके कार्यकाल में साध्वीप्रमुखा के रूप में रहीं। ऐसी हमारी असाधारण साध्वीप्रमुखाजी आज हमसे विदा हो गईं। हम भी मानो मंगलकामना के साथ उन्हें विदाई दे रहे हैं। खूब मंगलकामना अलविदा। विदाई-विदाई।
कालजयी कर्तृत्व का आलेख रच, परमपूज्य आचार्यप्रवर से समाधि-शुद्धि का मंगलकारी पाथेय प्राप्त कर गुरुदृष्टि को देखते-देखते गुरुचरणों में अपना अंतिम श्वास अर्पित करने वाली असाधारण साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी के बारे में इतना ही कहना पर्याप्त होगाµ
स्वर्णिम कल से जुड़ा आज यह, कल-परसों श्री ‘कनक’ रहेगा।
हिमगिरि की पुत्री का पानी, अविकल यूँ ही सदा बहेगा।।
कृतज्ञता: विशेष कृतज्ञता साध्वी स्वस्तिकप्रभाजी के प्रति जिन्होंने शासनतामा साध्वी कनकप्रभाजी के जीवन के अंतिम क्षणों को ‘यादें शासनमाता की---’ के रूप में प्रस्तुत किया। इसके माध्यम से साधु-साध्वियों एवं श्रावक समाज को दूर रहकर भी निकटता का अहसास हुआ। (समाप्त)