चैतन्य-पथ के यायावर आचार्यश्री महाश्रमण

चैतन्य-पथ के यायावर आचार्यश्री महाश्रमण

साध्वी रक्षितयशा
जननी और जन्मभूमि का गौरव फर्श से अर्श तक प्रसिद्ध रहा है। कहा भी हैµ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’। अपार महिमा वैशाख शुक्ला नवमी के उस मंगलमय क्षण की जिस क्षण अखिल मानव जाति का कल्याण करने वाले महामानव का इस रत्न-गर्भा धरती पर अवतरण हुआ। गौरवमयी है वैशाख शुक्ला दशमी की वह शुभ वेला जिस समय एक छोटा सा बीज विशाल कल्पवृक्ष बन आज चतुर्विध धर्मसंघ को शीतल छाँव प्रदान कर पाप-ताप-संताप को दूर कर रहा है। धन्य बनी उस कालजयी व्यक्तित्व की पुरुषार्थ प्रसूत अहिंसा यात्रा। जिसमें इस युगनायक ने सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की अलख जगाकर इंसान को इंसानियत की पहचान कराई। सौभाग्यशाली है सरदारशहर की वह पुण्य वसुंधरा जहाँ पिता झूमरमलजी तथा माँ नेमा की कुक्षि से एक सुकुमार राजकुमार का जन्म हुआ। जिसने 12 वर्ष की अल्पायु में ही संयम रूपी चिंतामणी रत्न को प्राप्त कर लिया। जो विनम्रता, समर्पण, सेवा, साधना व अपनी बहुमुखी योग्यता के आधार पर तेरापंथ के सर्वेसर्वा नायक बनकर जन-जन में अध्यात्म की फसल तैयार कर रहे हैं। चैतन्य जागरण का पथ प्रशस्त कर रहे हैं। छोटे-छोटे नियमों से लाईफ स्टाइल सुधार रहे हैं।
तेरापंथ के अखिलेश! अर्हत वाङ्मय के ‘तिन्नाणं तारयाणं’, ‘निच्चं चित्त समाहिओ हवेज्जा’, ‘काले कालं समायरे’, ‘पुठवी समे मुणी हवेज्जा’ आदि स्वर्ण मुक्ताओं से आपश्री का जीवन समलंकृत बन रहा है। अध्यात्म का इंद्रधनुषी रंग आपश्री के हर श्वास में प्रतिबिंबित हो रहा है। शासन सम्राट्! आपश्री का क्मबपेपवद च्वूमतए च्ंजपमदबमए च्वेपजपअम ज्ीपदापदह ंदक च्मंबमनिस सपमि आदि अनुपम गुणों की सौरभ से संपूर्ण धर्मसंघ सुवासित हो रहा है। संघ शिरोमणे! देश-विदेश में नए-नए कीर्तिमानों का ध्वज फहराकर आपने जिनशासन की अभूतपूर्व विजय पताका फहराई है।
प्रभो! आपश्री की वरदाई शरण में सीप की हर बूँद मोती बनकर निखर रही है। आपश्री के जीवन की पुस्तक का एक-एक शब्द, एक-एक अक्षर, एक-एक पंक्ति, एक-एक पन्ना प्रखर प्रेरणादायी है। गुरुनानक देव ने ऐसे महामानव के लिए कहाµऐसे लोग विरले होते हैं, जिन्हें परखकर आत्म-मंदिर में विराजमान कर सकें। षष्टिपूर्ति के मंगलमय पुनीत क्षणों में तथा युगप्रधान अलंकरण पदाभिषेक समारोह में तेरापंथ के महासूर्य तथा मेरे जीवन के भाग्य-निर्माता की सहòों बार वर्धापना! अभ्यर्थना!! अभिवंदना!!!

षष्टिपूर्ति पर तुम्हें बधाएँ, ओ शासन सरताज!
तुम सा सक्षम गणमाली पा हमें भाग्य पर नाज।
स्वस्थ रहें और शतक मनाएँ अंतर्मन आवाज,
ज्योतिपुंज से रहे प्रकाशित तेरापंथ समाज।।