साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी के प्रति

साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी के प्रति

अर्हम्
 साध्वी राकेश कुमारी
जुड्यो महाश्रमण दरबार, आयो मनोनयन सुखकार।
साध्वीप्रमुखा ने बधावांजी, मंगल तिलक लगावांजी।।
समण श्रेणी री प्रथम दीक्षा, प्रथम नियोजिका बण्या थे।
समण श्रेणी री प्रथम यात्रा, देश-विदेश गया थे।
गुरुदृष्टि स्यूं कियो प्रचार, पायो जनता रो सत्कार।
श्रद्धा सुमन बिछावांजी, थांनै आज बधावांजी।।1।।

वर्धापण री मंगल घड़ियां, श्रमणी गण खुशहाल।
विनय समर्पण प्रबुद्ध साध्वी, है फुर्तीली चाल।
आई गण में नई बहार, करते वंदन बार हजार।
मौत्यां चौक पुरावांजी, मंगल तिलक---।।2।।

त्रयगुरु री दृष्टि आराधी, दिल में स्थान जमायो।
मुख्य नियोजिकाजी से, साध्वी प्रमुखा को पद पायो।
सरदारशहर की पुण्य धरा पर, खुशियाँ बाँटें मोदी परिकर
मंगल तिलक---।।3।।

महाप्रज्ञ वांङ्मय संपादन, जग में पहचाना बनाई।
स्वर्गा स्यूं शासणमाता दें आशीर्वर वरदाई।
स्वस्थ निरामय रहो शुभंकर, जीवन अभयंकर क्षेमंकर।
मंगलभावना भावांजी, थांनै आज बधावांजी।।4।।

साध्वी समाज रो कर विकास, नूतन इतिहास रचाओ।
गणगणपति रा बण सहयोगी गण री शान बढ़ाओ।
राकेश अंतर रा उद्गार, सुणलो श्रमणी गण सिणगार।
मंगल तिलक---5।।
लय: नीले घोड़े रा असवार---