जीवन शांतिमय बनाने के लिए पाएँ संतों से सद्ज्ञान: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जीवन शांतिमय बनाने के लिए पाएँ संतों से सद्ज्ञान: आचार्यश्री महाश्रमण

देशनोक, 9 मई, 2022
शक्ति स्वरूपा करणी माता का स्थान। दूर-दूर से लोग आस्था से यहाँ आते हैं। यह मंदिर काबा (चूहों) के लिए प्रसिद्ध है।
वात्सल्य मूर्ति ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी के जीवन में आचार का भी महत्त्व है और ज्ञान का भी महत्त्व है। सम्यक् ज्ञान प्राप्त हो जाता है, तो सम्यक् आचार का मार्ग भी प्रशस्त हो सकता है। ज्ञान गुरु से, त्यागी संतों से, शिक्षकों से मिल सकता है। अनेक प्रकार के गुरु हो सकते हैं। अध्यात्म विद्या का भी अपना ज्ञान है। लौकिक विद्या का अपना ज्ञान है। किताबों से भी कई तरह के ज्ञान प्राप्त किए जा सकते हैं। ज्ञान प्राप्ति के लिए कुछ परिश्रम अपेक्षित हो सकता है। स्वाध्याय से ज्ञान प्राप्त हो सकता है। अच्छा ज्ञान मिलने से व्यक्ति एकाग्रचित्त बन सकता है। एकाग्रचित हो जाने पर आदमी अच्छे मार्ग में स्थित हो सकता है। स्वयं सन्मार्ग में स्थित होकर दूसरों को भी मार्ग में लाने का प्रयास कर सकता है। सत्संगति से भी ज्ञान मिल सकता है, दिशा और दशा बदल सकती है। यह एक दृष्टांत से समझाया कि अभय होना भी एक अच्छी स्थिति हो सकती है। आदमी परिवार के लिए पाप करता है, पर जब पाप का फल मिलता है, तब कोई साथ नहीं देता, स्वयं को ही फल भोगना पड़ता है। साधु की संगत से अंतर की आँखें खुल सकती हैं, व्यक्ति सन्मार्ग पर चल सकता है। ज्ञान सही होता है, तो जीवन और आचार का मार्ग भी प्रशस्त बन सकता है। भारत में संत भी हैं, तो देवी-देवताओं के आस्था के स्थान भी अनेक हैं। आज हम करणी माता के क्षेत्र देशनोक में आए हैं। हमारी साध्वी हुलासांजी भी लंबे काल तक यहाँ रही हैं। पर हमारे आने से पहले आगे चली गई। संतों के तो दर्शन भी अपने आपमें पवित्र होते हैं। भारतीय साहित्य में संत की महिमा बताई गई है। संतों से प्राप्त सद्ज्ञान जीवन के व्यवहार में अवतरित हो जाएँ तो आदमी का जीवन शांतिमय बन सकता है। यह जीवन ही नहीं, आगे का समय भी प्रशस्त रह सकता है। हमें वर्तमान को देखना चाहिए और भविष्य पर भी ध्यान देना चाहिए। आदमी का आगे जीवन भी अच्छा रहे, उसके लिए आदमी धर्म के पथ पर, त्याग-संयम के पथ पर चले। त्याग-संयम कल्याणकारी होता है। हमारे जीवन की गाड़ी में ज्ञान की लाईट और संयम का ब्रेक चाहिए तो यह जिंदगी की कार अच्छी तरह चल सकती है। गंतव्य तक अच्छी तरह पहुँच सकती है। हम ज्ञान-बुद्धि के द्वारा दूसरों का भला भी कर सकते हैं। हमारी बुद्धि शुद्धि-युक्त हो। भावात्मक शुद्धि-बुद्धि को शुद्ध बना सकती है। बुद्धि अपने आपमें बल है। मैं व्यक्तिगत रूप से बुद्धि का सम्मान करता हूँ। बुद्धि से आदमी कितने बढ़िया काम कर सकता है। अणुव्रत व प्रेक्षाध्यान से हमारे राग-द्वेष कमजोर पड़ सकते हैं। संतों की जो अच्छी वाणी है, उनको पढ़ने का, जानने का प्रयास हो व जीवन में उतारने का प्रयास हो तो ये वाणी हमारे लिए कल्याणकारी हो सकती है।
हमारे जीवन में सम्यक् ज्ञान, सम्यक् आचार हो। ज्ञान के प्रकाश व संयम से आगे का जीवन भी अच्छा बन सकता है। साध्वी हुलासांजी की सहवर्ती साध्वियाँ हमें मिल गई हैं। तीनों साध्वियाँ खूब समाधि में रहें, खूब अच्छा काम करती रहें। साध्वीप्रमुखाजी ने कहा कि संत के घर में आगमन से लोहा भी सोना बन जाता है। व्यक्ति का जीवन बदल जाता है। प्रवाह बदल जाता है। संत जहाँ जाते हैं, कल्याण का कार्य करते हैं। सज्जन व्यक्तियों का संग जिसे उपलब्ध हो जाता है, उसे सब कुछ मिल जाता है। साधु कल्पवृक्ष कामधेनू और चिंतामणी रत्न के समान होते हैं।
पूज्यप्रवर के स्वागत में साध्वी समन्वयप्रभाजी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। तेरापंथ महिला मंडल, कन्या मंडल, जीतमल बांठिया (सभाध्यक्ष), ज्ञानशाला, तेयुप अध्यक्ष ऋषभ आंचलिया, नगरपालिका चेयरमैन ओमप्रकाश मूंदड़ा, हनुमानमल, आनंदमल, अंकुर लूणिया, भरत नाहर, लक्ष्य नाहर, करणी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष बादल सिंह, किरण सिपानी, नयनतारा नाहर, विद्यालय से लादुलाल ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए।