थोड़े लाभ के लिए ज्यादा हानि स्वीकार कर लेना मूढ़ता  की बात: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

थोड़े लाभ के लिए ज्यादा हानि स्वीकार कर लेना मूढ़ता की बात: आचार्यश्री महाश्रमण

कोचरों का चौक, बीकानेर,
13 जून, 2022
जिन शासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमण जी लाल कोठी-बीकानेर में विराज रहे हैं। आज का प्रवचन कोचरों के मोहल्ले (चौक) में हुआ, जहाँ प्रायः सभी परिवार मंदिरमार्गी हैं। आज चतुदर्शी भी थी। जिज्ञासा समाधान का कार्यक्रम भी रखा गया। मंगल देशना प्रदान करते हुए जिनवाणी के व्याख्याता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि एक चिंतन का महत्त्वपूर्ण विषय है कि कौन-सा कार्य करना चाहिए, जिसको करने से नुकसान कुछ नहीं है, लाभ ही होता है। दूसरा वैसा कार्य भी हो सकता है, जिसको करने में लाभ नहीं, नुकसान ही है। तीसरा कार्य ऐसा भी हो सकता है, थोड़ा लाभ है, ज्यादा नुकसान है। चौथा कार्य ऐसा भी हो सकता है कि थोड़ा नुकसान है, लाभ ज्यादा है। शास्त्रकार ने कहा है कि थोड़े लाभ के लिए ज्यादा नुकसान नहीं उठाना चाहिए। थोड़े लाभ के लिए ज्यादा हानि स्वीकार कर लेना मूढ़ता या नासमझी की बात हो सकती है।
आज चतुर्दशी है, इस दिन मर्यादा के बारे में हमारे यहाँ चर्चा की जाती है। प्रेरणा भी इस अवसर पर दी जा सकती है। कुछ कभी-कभी संवाद भी हो सकता है, कभी प्रश्नोत्तर भी हो सकते हैं। हम चारित्रात्माओं के लिए भी चिंतन का विषय है कि थोड़े के लिए बहुत को नहीं गँवाना चाहिए।
साधु के पास एक बड़ी संपदा शीलव्रत-संयम होती है। साधु के पाँच महाव्रत हैं। इन पाँच महाव्रतों को पाँच हीरे कहा जा सकता है। ये इतने अमूल्यवान हीरे हैं जिसके सम्मुख
संसार के गृहस्थों के हीरे बहुत ही अल्प महत्त्व वाले हैं। गृहस्थों के हीरे तो
ज्यादा से ज्यादा इस जीवन काल तक के हैं। साधु के पास जो हीरे हैं, वो आगे के लिए भी कल्याणकारी सिद्ध हो सकते हैं। ये पाँच हीरे साधु की बड़ी संपदा है। इनकी सुरक्षा करना साधु का कर्तव्य
होता है। गृहस्थ भी थोड़े के लिए बहुत खोने की सोच सकते हैं। पैसे के लिए ईमानदारी को गँवा देना किसी संदर्भ में थोड़े के लिए बहुत को खोना हो सकता है। गार्हस्थ्य में भी जितना हो सके संयम-साधना का प्रयास करते रहना चाहिए। जीवन में अहिंसा, ईमानदारी, संयम गृहस्थ के हो यह प्रयास रहना चाहिए।
थोड़ा कष्ट आ जाए तो भी सच्चाई को नहीं खोना चाहिए। यह एक दृष्टांत से समझाया कि जहाँ सच्चाई है, वहाँ लक्ष्मी का वास होता है। धन के रूप में लक्ष्मी रहे न रहे, पर लक्ष्मी का एक रूप है, आभा वो जीवन में रह सकती है। हम साधुओं ने सत्य महाव्रत को स्वीकार किया है, उसे पाँव पकड़कर भी रखना चाहिए। जाने नहीं देना चाहिए। संयम रत्न के लिए हाथ जोड़ी भी कर लेंगे पर उसे जाने नहीं देंगे और चीजें जाएँ तो जाएँ पर संयम रत्न हमारे पास रहे। गृहस्थ के लिए भी संयम की शक्ति बड़ी चीज होती है।
जैन शासन में अहिंसा-संयम का बड़ा सूक्ष्म विवेचन मिलता है। जैन शासन में तपस्याएँ भी होती हैं, ये भी एक आत्मा की संपदा होती है। ये आध्यात्मिक संपदाएँ हें। ये बड़ी चीज है, यह भी
एक दृष्टांत से समझाया कि भौतिक
रत्न से भी बड़ा संयम-अध्यात्म का रत्न है। पाँच-समिति व तीन गुप्ति की अच्छी आराधना हो। ये आठ प्रवचन माताएँ पाँच महाव्रतों की सुरक्षा करने वाली सिद्ध हो सकती हैं। हम अपने संयम रूपी रत्न सुरक्षा करते रहें, यह काम्य है। पूज्यप्रवर ने हाजरी का वाचन किया। मुनिश्री दिनेश कुमार जी एवं मुनि ध्रुव कुमार जी से लेख पत्र का वाचन करवाया। मुनि दिनेश कुमार जी स्वामी को 31 कल्याणक एवं मुनि ध्रुव कुमार जी को 11 कल्याणक बख्शीष करवाए। साधु-साध्वियों ने समुह में लेख पत्र का वाचन किया। जेठ शुक्ला चतुर्दशी को शासनमाता को भी पूज्यप्रवर ने याद किया। तीन माह पहले उनका महाप्रयाण हो गया था। आज उनकी मासिक तिथि है। आज ही के दिन एक माह पहले साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी का मनोनयन भी पूज्यप्रवर द्वारा किया गया था। जिज्ञासा-समाधान का कार्यक्रम रखा गया। साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ में जिस व्यक्ति ने प्रवेश पा लिया उसका बचपन, युवावस्था व वृद्धावस्था प्रफुल्लता से, आनंद से जीवन व्यतीत होता है। हमें ऐसे आचार्य प्राप्त हुए हैं, जो हमारी चिंता व देख-रेख करते हैं।
साध्वीवर्या जी ने कहा कि लोटे की तरह यदि आत्मा को रोज माँजा जाए तो उस पर कर्म रज जमा नहीं हो पाती है। स्वाध्याय-ध्यान से आत्मा को शुद्ध बना सकते हैं। हमारा कल्याण पूज्यप्रवर के प्रवचनों से हो सकता है। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में तेयुप अध्यक्ष भरत नौलखा, संजय बैद, प्रवीण सेठिया, जितेंद्र कोचर, सुषमा व टीम, सुरपत बोथरा, विजयचंद बोथरा, महिला मंडल व सुरेश बैद सभा मंत्री ने अपनी भावना अभिव्यक्त की।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि साधना द्वारा क्लेश से मुक्त हुआ जा सकता है।