यादें... शासनमाता की - (10)

यादें... शासनमाता की - (10)

16 मार्च, 2022, प्रातः लगभग 7 बजे

आचार्यप्रवर: कैसे हैं?
साध्वीप्रमुखाश्री: ठीक ही हैं। (इशारे से)
आचार्यप्रवर: अभी भी श्वास पर थोड़ा असर है।
साध्वी कल्पलता: पहले थोड़ा जोर से आ रहा था।
आचार्यप्रवर: अच्छा, और जोर से आ रहा था।
फिर आचार्यप्रवर ने साध्वीप्रमुखाश्री को कुछ समय के लिए मौन उपासना करवाई।
सायंकाल
आचार्यप्रवर: (मुनि दिनेश कुमार जी से) दसवीं ढाल।
रात की आलोयणा करवा दें। दो घंटा जाप-स्वाध्याय। कान नहीं पड़े तो निर्जरा पेटे मान लें।
साध्वी कल्पलता: रोज की आलोयणा तो अपने आप ही ले लेते हैं।
श्वासोच्छ्वास हो या नहीं, स्वाध्याय से उतार लेते हैं।
साध्वी सुमतिप्रभा: ध्यान भी बहुत जागरूकता से करवाते हैं।
आचार्यप्रवर: 10वीं ढाल में बताया है कि नवकार में सब शुद्ध आत्मा है। अर्हत् है तो वीतराग है, आचार्य है, उपाध्याय है, साधु हैµसभी साधना करने वाले हैं। नवकार पूरा अध्यात्ममय है। यह भौतिक नहीं है। देवी-देवता का नाम भी नहीं है, केवल वीतरागता, 14 पूर्वों का सार है। नवकार का जप अच्छी तरह करें तो अच्छी कर्म निर्जरा का मौका मिल जाए। इसमें केवल आत्मा के कल्याण की बात है। हालाँकि और भी लाभ मिल सकते हैं, लेकिन हो जब तक आत्मा के लिए करना चाहिए। कोई एक पद लेकर करना चाहे तो एक पद का जाप भी कर सकते हैं।
साध्वी कल्पलता: इसमें कुछ फर्क पड़ता है क्या? एक पद को करें या पूरे नवकार का करें?
आचार्यप्रवर: एक पद में कुछ सुविधा हो जाती है। मैंने एक बार इनको (साध्वीप्रमुखाश्री) बताया था कि णमो सिद्धाणं का अगर जप कर सकें तो करें। जिसमें मन लगे, वो जप करना चाहिए। वर्तमान में सिद्ध अपने सामने नहीं है, अर्हत् भी अपने देखे हुए नहीं है। आचार्य अपने सामने हैं। नवकार के भीतर आचार भी आ गया, ज्ञान भी आ गया और साधना भी आ गई।
आप सुखसाता रखावें, समता रखावें।
मंगलपाठ उच्चरित कर आचार्यप्रवर जब पुनः कक्ष से लौटने लगे तब शासनमाता ने पूज्यप्रवर को कृतज्ञभाव से प्रदक्षिणापूर्वक वंदन किया।

(क्रमशः)