अर्हम

अर्हम

वदनानंदन दे दो दर्शन, मत तरसाओ मेरे भगवन।
कर दो मेरी आशा पूरण, तुम ही हो मेरी दिल धड़कन।।

तुम दूज चाँद बनकर आए, सारी दुनिया पर तुम छाए,
जन-जन करता तेरा अर्चन।। मत तरसाओ...

चहरे पर तेज दमकता था, नयनों से नेह बरसता था,
चुम्बक-सा अद्भुत आकर्षण।।

तुमने कितनों को ज्ञान दिया, कितनों का ही निर्माण किया,
कितनों ने पाया संयम धन।।

तुमने कितने अवदान दिए, कितने-कितने संघान किए,
तूने चमकाया गण गुलशन।।

तुम भ्रम के परम पुजारी थे, तुम सचमुच उग्रबिहारी थे,
रोमांचक तब यात्रा वर्णन।।

‘मेरा जीवन-मेरा दर्शन’, भरता प्राणों में नव पुलकन,
निखरो निज कृति का संपादन।।

है अधर-अधर पर नाम तेरा, सब कहते तुलसी राम मेरा,
श्रद्धानत में चरणों शत वंदन।।

लय: हमने जग की अजब तस्वीर देखी---