युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी के प्रति

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी के प्रति

आज बधाएँ, तिलक लगाएँ, महाश्रमण गणताज है।
दसों दिशाएँ, मंगल गाएँ, तुम पर हमको नाज है।। आं।।

धन्नधस सरदारशहर की माँ नेमा मन हरसाई।
झूमरकूल के ध्रुवतारे की महिमा चिहुंदिश में छाई।
सहज सर्पण, ऋजुता, मृदुता से गुरुवर दृष्टि पाई।
मोहन से मुनि मुदित महाश्रमण की यात्रा वरदाई।
महातपस्वी के चरणों में नतमस्तक सकल समाज है---

नई सदी के महासूर्य का करता गण सम्मान है।
तेरापंथ के शुभ भविष्य पर हम सबको अभिमान है।
जिस सूरत को श्री तुलसी ने अपने हाथ संवारा है।
प्रज्ञ की शैली ने जिसको गुरु ने खूब निखारा है।
वह व्यक्तित्व सभी से सुंदर लगता प्यार-प्यार है।
सदा चलेंगे साथ तुम्हारे तारण-तरण जहाज है---

भैक्षव शासन बगिया चमके महाश्रमण अवदानों से।
एक नया इतिहास बनेगा अभिनव कीर्तिमानों से।
जय-जय नंदा जय-जय गूँजे मंगल गीत है।
सदा बढ़ेगी शोभा गण की सबको पूर्व प्रतीत है।
महाश्रमण का पाया साया खुशियाँ बे अंदाज हैं।

लय: आओ बच्चो तुम्हें दिखाएँ---