कल्याणकारी होती है त्यागी और ज्ञानी साधु की संगत : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कल्याणकारी होती है त्यागी और ज्ञानी साधु की संगत : आचार्यश्री महाश्रमण

सलुंडिया, 3 जून, 2022
मोरखाणा में एक रात्रि का प्रवास संपन्न कर आचार्यप्रवर 15 किलोमीटर का विहार कर सलुंडिया ग्राम पधारे। मुख्य प्रवचन में परम आचारकुशल आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि शास्त्र में बताया गया है-चार परम अंग, चार महत्त्वपूर्ण चीजें प्राणी के लिए दुर्लभ होती हैं। पहली चीज है-मनुष्यत्व। मनुष्य जन्म मिलना कठिन होता है। मनुष्य जन्म मोक्ष का द्वार है। दूसरा ऐसा कोई जन्म नहीं है कि वहाँ से मोक्ष में जाया जा सके। चाहे देव गति, तिर्यंच गति या नरक गति हो। जो साधना-आराधना, केवलज्ञान मनुष्य कर सकता है और कोई प्राणी नहीं कर सकता। दूसरी दुर्लभ चीज है-श्रुति- सुनना। धर्म की बात को सुनना। जिनको त्यागी संत से धर्म की बात सुनने का मौका मिलता है, वे क्षण सौभाग्य के होते हैं। तीसरी बात दुर्लभ है-श्रद्धा। धर्म की बात सुनकर उस पर श्रद्धा हो जाना और दुर्लभ है। चौथी दुर्लभ बात है-संयम से पराक्रम। साधु बन जाना बड़ा मुश्किल है। कोई-कोई धन्य भाग्य होते हैं, जिनमें साधु बनने की भावना जागती है। कोई अणुव्रती बन जाता है।
गुरुदेव तुलसी ने जीवन के बारहवें वर्ष में एवं परमपूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने जीवन के ग्यारहवें वर्ष में मुनि दीक्षा स्वीकार कर ली थी। संयम में पुरुषार्थ जागना और भी मुश्किल है। हम सब भाग्यशाली हैं कि हमें मनुष्य जन्म प्राप्त हो गया। कईयों को वो प्राप्त भी नहीं हैं साधु की संगत ही कल्याणकारी होती है। साधु त्यागी और ज्ञानी है, साथ में ज्ञान की बात बताता है, उसका बड़ा महत्त्व है। विद्वता को साधुता का मंच मिल जाए तो ऊँची बात हो जाती है। देवों के लिए भी साधु वंदनीय है। हम मानव जीवन का अच्छा उपयोग करें। श्रुति श्रद्धा, धर्म में पराक्रम, संयम में पराक्रम हो जाए तो कल्याण होना आसान हो सकता है। आज सलुड़िया आए हैं। गाँव के लोगों को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संकल्पों को समझाकर स्वीकार करवाए। पूज्यप्रवर के स्वागत में सलुंडिया के सरपंच रामस्वरूप विश्नोई, सिद्धराज विश्नोई, ओमप्रकाश मीणा (प्रिंसिपल- स्थानीय विद्यालय), जोरावरपुरा महिला मंडल, विमला देवी मालू, भीनासर तेरापंथ महिला मंडल, देवकिशोर ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि हमारे में अपनत्व-सद्भावना रहनी चाहिए।