पाप साफ करने के लिए करें संयम रूपी जल से स्नान: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

पाप साफ करने के लिए करें संयम रूपी जल से स्नान: आचार्यश्री महाश्रमण

केशरदेशर, 1 जून, 2022
तपती धूप में पूज्यप्रवर बीकानेर के ग्रामीण अंचल में विहार करते हुए 13 किलोमीटर का विहार कर केशदेशर पधारे। मुख्य प्रवचन में पुण्य पुरुष, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि मानव शरीर में पाँच इंद्रियाँ होती हैं। एक विकसित कोटी का शरीर मनुष्य का शरीर होता है। शरीर तो अन्य जीव भी धारण करते हैं, पर पाँच इंद्रियाँ सब के नहीं होती। आदमी के पाँच इंद्रियों के साथ मन भी होता है। हमारी ये इंद्रियाँ ज्ञान की साधन भी बनती हैं। इंद्रियों से पदार्थों आदि का भोग भी हो जाता है। इंद्रियों का संयम रखना खास बात है। मन में अच्छा चिंतन करें कि मन-मंदिर में परमात्मा विराजमान हो जाए। ये मानव जीवन हमारी मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ाने वाला बन सकता है, अगर हम इंद्रियों का संयम रखें और कुछ साधना भी करें।
हम परमात्मा का स्मरण करते हैं। हमारा मन परम तत्त्व में लीन हो सके, नाम लेने से हमारी चेतना शुद्ध बने। भारत में अनेक धर्म-संप्रदाय हैं। सबके अपने-अपने विचार हैं। कितनी अच्छी-अच्छी शिक्षाएँ धर्मग्रंथों से मिल जाती है। शुद्ध भावना से राम को भी याद कर लिया तो निर्जरा हो सकती है। जैन दर्शन में राम एक परमात्म पद है। रा बोलते समय मुँह खुल जाता है, पाप बाहर निकल जाते हैं। म बोलते समय होठ बंद हो जाते हैं, पाप वापस नहीं आता है। गार्हस्थ्य में भी कुछ लोग साधु की तरह मिल सकते हैं। कमल पत्र की तरह व्यक्ति संसार में रहते हुए निर्लेप रहने का प्रयास करें। ज्यादा मोह न करें। उससे दूर रहें।
जो संसार में काँटा-काँचन से विरक्त है, वो साधु है, उसमें परमात्मा का अंश विशेष है। त्यागी संतों का गाँव में आना भी अच्छी बात होती है। उनके सदुपदेश को सुनकर जीवन में उतारना अच्छा है। साधु के तो दर्शन ही अपने आपमें पवित्र हैं। साधु तो चलते-फिरते तीर्थं हैं। संत जो त्यागी हैं, उनकी वाणी कल्याणी होती है। यह एक प्रसंग से समझाया कि स्नान करने से पाप साफ नहीं होते हैं। आत्मा रूपी नदी में संयम रूपी जल से स्नान करें। जीवन में संयम, सत्य, शील, दया की भावना अच्छी रखो तो आत्मा का कल्याण हो सकता है। दूसरों को दुःख देना पाप है और उपकार करना पुण्य है। दूसरों का आध्यात्मिक हित करना बहुत बड़ा धर्म है। जीवन में सत्य-ईमानदारी है तो बड़ी साधना है। जीवन में धर्म रहे, अच्छे रास्ते पर चलें। आत्मा का कल्याण हो, ऐसा प्रयास करें, अच्छा काम करें। दिवंगत साध्वी हुलासांजी की सहवर्ती साध्वियों ने पूज्यप्रवर के दर्शन किए और अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। साध्वियों का अच्छा विकास होता रहे। पूज्यप्रवर के स्वागत में स्कूल की प्रिंसिपल वीणा गहलोत, केशर देशर से जुड़े शिविर की महिलाओं ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।