हम अपनी आत्मा को पापों से बचाने का प्रयास करें: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

हम अपनी आत्मा को पापों से बचाने का प्रयास करें: आचार्यश्री महाश्रमण

रुणीया बड़ाबास 28 मई, 2022
संयम सुमेरु युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी शेरेरा से 9 किलोमीटर का विहार कर रुणीया बड़ाबास पधारे। मुख्य प्रवचन में भवसागर तारक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में तीन प्रवृत्ति के साधन हैं। शरीर हमारे पास है, वाणी है और मन भी है। शरीर के द्वारा चलना-फिरना आदि कार्य किए जाते हैं। वाणी से बोला जाता है। मन के द्वारा अतीत की स्मृति, कल्पना और चिंतन कर लेते हैं। प्रवृत्ति आवश्यक भी हो जाती है। आदमी ध्यान दे कि प्रवृत्ति पापकारी न हो। हम अपनी आत्मा को पापों से बचाने का प्रयास करें। हम अपनी आत्मा के नाथ बन जाएँ। हम आत्मा की रक्षा करें। अरक्षित आत्मा संसार में भ्रमण करती है। सुरक्षित आत्मा सब दुःखों से मुक्त हो जाती है। शरीर और वाणी से हम उतनी प्रवृत्ति नहीं करते हैं, जितनी मन से करते हैं। मन हमारा मतिमान रहता है। मन बड़ा चंचल है। साधु-सज्जन पंखे के समान होते हैं, जो स्वयं घूमते हुए दूसरों का ताप हरते हैं। मन की चंचलता को हम कम करने का प्रयास करें। अशुभ चिंतन तो करें ही नहीं।
गृहस्थ में भी सज्जन मिल सकते हैं। धर्म साधना करने वाले मिल जाते हैं। परंतु मन में विचार आ सकते हैं। मन की चंचलता को एक प्रसंग से समझाया कि मन धर्म साधना में भी भटकता रहता है। विचार हमारे चंचल हैं, पर आत्मज्ञ उनको जान सकता है। मन हमारा अनावश्यक चंचलता में न जाएँ। मन से भी आदमी पाप कर सकता है। ज्यादा पाप मन वाला प्राणी करता है। मनुष्य और तिर्यंच सातवीं नरक तक जा सकते हैं। मन में संताप भी होता है। ज्यादा धर्म की साधना भी मन वाला प्राणी ही कर सकता है। साधु मन वाला प्राणी ही बनेगा। आगे मोक्ष या ऊँचे देवलोक तक जा सकता है। मन अच्छा और बुरा दोनों काम कर सकता है। हम प्रयास करें, हमारा मन सु-मन बन जाए। मन सु-मन बनने से आत्मा की आगे की गति अच्छी हो सकती है। जप-स्मरण से भी हमारा मन सु-मन बन सकता है। धार्मिक साधना से मन चंचलता, मन की मलीनता कम हो सके, ऐसा प्रयास करें।
हमारे आद्यप्रवर्तक आचार्य भिक्षु ने एक तत्त्व दिया। एक साधना का पथ स्वीकार किया। गुरुदेव तुलसी ने अणुव्रत और आचार्य महाप्रज्ञ जी ने प्रेक्षाध्यान जैसे अवदान दिए हैं। इनसे हमारा मन और आचरण अच्छा बन सकता है। आज रुणीयाबास में आना हुआ है। छोटे गाँवों में श्रद्धालु परिवार हैं, इनसे भी मिलना हो जाता है। यहाँ के लोगों में धार्मिक प्रवृत्ति रहे। जीवन आदमी का अच्छा बने। शनिवार की 7 से 8 की सामायिक होती रहे। मन सु-मन रहे, ऐसा प्रयास रहे। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में अजीत भादाणी, महिला मंडल (लुणियासर), अंशिका-खुशी, तेरापंथ समाज, कन्या मंडल, भादाणी परिवार, पूर्व मंत्री राजस्थान सरकार वीरेंद्र बेणीवाल ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।