युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

खुशियों की शुभ बेला आई, प्रभु को पा अवनि मुस्काई।
गूंज उठी शहनाई, सृष्टि गीत सुनाए, उतरा दिव्य सितारा।।

देवदुन्दुभि बज रही, पुष्पों की बौछार है
दशों दिशाएं झूम उठी, गगन धरा खुशहाल है
नेमा नंदन, झूमर-चंदन, गाता जग ये सारा।।

महासागर की लहरें ये गाएं तव पुण्याई
धीर, वीर, गंभीर तुम, हिमगिरि सी ऊंचाई
प्रभु की भक्ति,जागे शक्ति, तुम हो तारणहारा।।

हम हैं कितने सौभागी, महाश्रमण गणमाली
नयनों से करुणा बरसे, पीएं अमृत प्याली
श्रम के पुजारी, जुड़ी इकतारी, पाएं भव से किनारा।।

रहो सलामत युगपुरुष! जन-जन की आवाज है
जग तुझे निहार रहा, आशाएं बेअंदाज है
जुग-जुग जीओ, युग उन्नायक, सांसों का इकतारा।।