युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

मेधा के उत्तुंग शिखर, श्री महाश्रमण का अभिनंदन।
युगप्रधान शुभ मंगल वेला, श्रद्धा का सुरभित-चंदन।।

अष्ट मांगलिक लिए हाथ में, अष्ट सिद्धियां करती वंदन,
नव निधियां और शासन सेवी, देव-देवियां करते अर्चन,
महाप्रभावक आचारज तुम, भरो संघ में नूतन स्पंदन।।

शिखर पुरुष अध्यात्म जगत के, तुम हो नवयुग निर्माता,
महायशस्वी हे गणनायक, श्रमण संस्कृति के उद्गाता,
अतिशय धारी, महिमा प्यारी, प्रबल प्रतापी नेमानंदन।।

प्रतिभा और पराक्रम से तुम, सरज रहे हो नव-नव चिंतन,
बढ़े संघ में ओज-तेज इसलिए, निरंतर अमृत सिंचन,
आध्यात्मिक आभा से अभिनव, है व्यक्तित्व सरस मनभावन।।

मन मधुवन में पुलकन नूतन, पाया हमने तेरा शासन,
तव इंगित पर बढ़े संघ में, निजपर-शासन फिर अनुशासन,
हंसता-खिलता और महकता, रहे सदा यह गण नन्दनवन।।