युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

सम

आकर्षित जिनसे आसन हैं, जिनकी सन्निधि प्रतिपल पाए।
महाश्रमण विभु चरण शरण में, सद्गुण भी निज भाग्य सराए।।
रवि आतप को सहकर तुमने मेरा सम्मान बढ़ाया है,
आंधी तूफां हो या ठण्डी मुझ सहवास सुहाया है।
संघर्षों की राहें चलते मेरा साथ सदा अपनाए,
महाश्रमण विभु चरण शरण में, समता गुण निज भाग्य सराए।।

शम

शांति थिरकती सदा वदन पर, आत्मसाधना से आप्लावित,
उपशम युत संयत है वाणी, सत्य भावना से है भावित।।
मुस्काती मुद्रा के सम्मुख, कहो कषाय कैसे टिक पाए,
महाश्रमण विभु चरण शरण में, उपशम गुण निज भाग्य सराए।।

श्र्रम

पौरुष मंदिर, पौरुष पूजा, वही भक्ति है वही भगवान,
समयं गोयम मा पमायए, बना वीर वचन वरदान।।
अनुत्तर श्रमदान तुम्हारा, महातपस्वी अमिधा पाए,
महाश्रमण विभु चरण शरण में, श्रम गुण निज भाग्य सराए।।

श्रामण्य

करुणा का बहता निर्झर हो, सत्यवादिता है अलबेली,
प्रामाणिकता ब्रह्मचारिता, अनासक्त है जीवनशैली।
महिमामंडित आत्मगुणों से, वर युगप्रधान पद पाए
महाश्रमण विभु चरण शरण में, श्रामण्य निज भाग्य सराए।।