युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

ज्योतिर्धर की आभा जिनवर सम उणिहारी रे
युगप्रधान गुरुराज अनुकम्पा अवतारी रे।।

भावितात्म अणगार जैसे संयम पर्यव उजले,
अनासक्त निर्लिप्त अकिंचन ज्योतिचरण विरले,
मस्त फकीरी में रमते योगी अविकारी रे।।

विरत बाहरी चकाचौंध से आत्मलीन अणगार,
जीव मात्र के प्रति बहे भीतर करुणा की धार,
आनंदो में वर्षति वर्षति से इकतारी रे।।

चरणों में जो सुकून मिलता वीतराग प्रतिमान,
जन-अन का आकर्षण है वो सौम्य वदन मुस्कान,
नैना बरसे अमृत वो तो तारणहारी रे।।

लय: विरतिधर नो देश प्यारो---