युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

हे युगद्रष्टा! युगप्रधान तव चरणों में रम जाऊं।
वत्सलता पूरित नयनों से शुभाशीष मैं पाऊं।।

गणसेवक गादी का चाकर बना रहूं मैं संघ पुजारी,
गुरु इंगित आराधन करके खिले सदा जीवन फुलवारी,
चएज्ज देहं न हु धम्मसासणं पल-पल में मैं ध्याऊं।।

संयम सौरभ से सुरभित यह मिला भिक्षु गण उपवन,
महाश्रमण की सुखद शासना मृदु अनुशासित शासन,
अप्पा खलु सययं रक्खियव्वो रोम- रोम से गाऊं।।

ध्यान योगी स्वाध्यायी प्रभु पापभीरू वैरागी,
महातपस्वी मितभाषी है आध्यात्मिक अनुरागी
समयं गोयम! मा पमायए जीवन मंत्र बनाऊं।।