युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

युग की नब्ज पकड़कर जिसने युगधारा को पहचाना।
जन सेवा में अर्पित सांसें युगाधार तुमको माना।।

वज्रमयी संकल्प लिए तुम पहुंचे ढ़ाणी गांव नगर
श्रम के धाराधर से सिंचित ऋणी बना धरती अंबर
नए बीज बो रहे निरंतर कण-कण में अंजलि भर-भर
नूतन फसलों की सौरभ लेने मंडराते हैं मधुकर
देख रहा जग विस्मित होकर बंजर भू का सरसाना।।

शांतिदूत तुम किंतु शांति में छिपी क्रांति की चिनगारी
मुस्कानों के नाजुक धागों से बंधती दुनिया सारी
जोड़ रहे आगम सुक्तों से दिल से दिल की इकतारी
करुणा का संसार बसाने आए बनकर अवतारी
युगप्रधान युग पुरुष तुम्हारा जगत बना है दीवाना।।

समय प्रबंधन की स्याही से जीवन का हर पृष्ठ भरा
जागृत वर विवेक से रहता अधरों पर सच का पहरा
आत्म दीप जल रहा निरंतर मानो रवि का रथ उतरा
कुदरत खुद ही चकित तुम्हारा नूर सलौना जो संवरा
महाप्राण जग की आस्था ने भगवत् रूप तुम्हें ही जाना।।