गुरु और ग्रंथ से मिले ज्ञान से अच्छा विकास हो सकता है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

गुरु और ग्रंथ से मिले ज्ञान से अच्छा विकास हो सकता है: आचार्यश्री महाश्रमण

राजेरा, 27 मई, 2022
भीषण गर्मी में अपनी वाणी से शीतलता प्रदान करने युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी 12 किमी विहार कर राजेरा गाँव पधारे। मुख्य प्रवचन में शांत सौम्यमूर्ति युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि शास्त्रकार ने पुनर्भव यानी पुनर्जन्म की बात बताई है। सिद्धांत यह है कि हर आत्मा ने अनंत-अनंत बार जन्म ग्रहण कर लिया है। प्रश्न होता है कि पुनर्जन्म क्यों होता है? शास्त्रकार ने बताया है-हम पुनर्जन्म को एक वृक्ष मान लें। उसके जो मूल हैं, उनको सींचन देने वाला कषाय है। चार कषाय से पुनर्जन्म का वृक्ष हरा-भरा रहता है। यह पुनः जन्म, पुनः मरण का चक्कर चलता रहता है। अध्यात्म की साधना का प्रयोजन है-यह पुनर्जन्म की परंपरा समाप्त हो जाए। आत्मा मोक्ष में विराजमान हो जाए। हो सकता है कोई आदमी पुनर्जन्म में विश्वास न भी करे। नास्तिक आदमी पुनर्जन्म, पुण्य-पाप का फल, स्वर्ग-नरक व मोक्ष को नहीं मानता है। अपना-अपना आस्था का विचार है। आस्तिक विचारधारा में पुनर्जन्म की बात को प्रतिपादित किया गया है। जैन धर्म में तो बहुत ही दृढ़ता के साथ, विस्तार के साथ पुनर्जन्म के सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया है।
पुनर्जन्म की पृष्ठभूमि में आत्मवाद का सिद्धांत है। पाँव हैं, तो आगे का शरीर ठीक चलता है। पुनर्जन्म के दो पाँव हैं-आत्मवाद और कर्मवाद। आत्मा है, तो पुनर्जन्म है और कर्मवाद है, तो पुनर्जन्म है। कषाय भी कर्मवाद की ही चीजें हैं। पुनर्जन्म के आधार पर अपनी जीवनशैली रखनी चाहिए कि पुनर्जन्म का सिद्धांत सही हो सकता है। मृत्यु होने पर शरीर निष्क्रिय हो जाता है, तो पहले कौन सा तत्त्व था जिसके कारण आदमी सक्रिय था। वो तत्त्व है, आत्मा। पुनर्जन्म के सिद्धांत के आधार पर ही यह साधुपन लिया जाता है। एक प्रसंग से समझाया कि विचारधारा एक होने से आदमी से स्नेह का भाव हो जाता है। पर नास्तिक आदमी आगे-पीछे कुछ नहीं मानता। पर साधुपन है, तो शांति का जीवन है। साधु तो पुनर्जन्म के सिद्धांत को मानते हैं। आस्तिकवाद का सिद्धांत सही है, तो फिर नास्तिकवाद का क्या होगा? पुनर्जन्म है, इस सिद्धांत पर जीवन जीना चाहिए। अच्छा जीवन जीएँ, पापों से बचें। परलोक में संदेह होने पर भी अशुभ काम को तो छोड़ देना चाहिए। धर्म के मार्ग पर जितना संभव हो सके चलने का प्रयास करना चाहिए। गार्हस्थ्य में भी पापों से बचने का प्रयास करना चाहिए। झूठ-कपट, धोखा-छलना से बचें। ईमानदारी पर चलें। जीवन में सरलता-सच्चाई है। अहिंसा पर आस्था रहे। धर्म के मार्ग पर चलें, यह सुख, कल्याण और भलाई का मार्ग है। हमारी गुरु परंपरा चलती आ रही है। हमारे गुरुओं ने कितना ज्ञान देने का प्रयास किया है। कितनों ने साहित्य सृजन किया है, तत्त्ववेत्ता हुए हैं। गुरु के प्रवचन से प्रेरणा पथ-दर्शन मिलता है। प्रवचन नवनीत हो सकता है। कई बार ग्रंथों के पढ़ने से जो बात समझ न आए वो बात ज्ञानी पुरुषों के प्रवचन सुनने व चर्चा-वार्ता करने से ज्ञान की स्पष्टता हो सकती है।
ग्रंथों का भी हमें बड़ा सहयोग मिलता है, पर ग्रंथ निर्जीव है। साथ में सजीव ज्ञानी-पुरुषों का संयोग मिल जाए तो कहना ही क्या? ग्रंथ और गुरु से ज्ञान को समझा जा सकता है। हमें जीवन में आस्तिकवाद, नास्तिकवाद, पुनर्जन्म व नव तत्त्वों की बातों को आत्मसात करने का, अच्छी तरह बौद्धिकता से समझाने का यथाजीवन प्रयास करना चाहए। आज राजेरा आए हैं। जैन-अजैन कोई हो। हमने तीन प्रतीज्ञाएँ बताई हैं-सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति। राजेरा के लोगों को ये तीन संकल्प स्वीकार करवाए। पूज्यप्रवर के स्वागत में राजेरा के सरपंच महेंद्र गोदारा, विजय आसकरण, मुकेश, सुरेश, पुगलिया ने गीत, महिला ग्रुप, महिला मंडल, मुन्नी देवी, मोणुराज शारस्वत ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।