सुदीर्घ काल तक नवनियुक्त साध्वीप्रमुखा निर्भिकता, विनय और समर्पण से संघ सेवा करती रहें: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सुदीर्घ काल तक नवनियुक्त साध्वीप्रमुखा निर्भिकता, विनय और समर्पण से संघ सेवा करती रहें: आचार्यश्री महाश्रमण

नवमनोनीत साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी का अभिनंदन समारोह

सरदारशहर, 16 मई, 2022
तेरापंथ धर्मसंघ की नवमी साध्वी प्रमुखा साध्वीश्री विश्रुतविभाजी का अभिनंदन समारोह। आप लाडनूं की तीसरी साध्वीप्रमुखाजी हैं। आप उम्र के सातवें दशक में बनने वाली प्रथम साध्वीप्रमुखा हैं। आपने लगभग 12 वर्ष समणी रूप में सेवाएँ दी हैं। विदेश यात्रा करने वाली आप प्रथम ग्रुप की समणी थीं।

आचार्यश्री महाश्रमण जी ने सरदारशहर प्रवास के अंतिम दिन

मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि शास्त्र में कहा गया है कि ज्ञानी का सार क्या है? सार है कि वह हिंसा न करे। अहिंसा के मार्ग पर चले। हम लोगों ने यह अहिंसा का पथ स्वीकार किया है। हमारा धर्मसंघ जो मुख्यतया आध्यात्मिकता पर आधारित संगठन है, जिसमें चारित्रात्माएँ भी हैं और श्रावक-श्राविकाएँ भी हैं। समणियाँ भी हैं। जहाँ वर्तमान युग का संगठन होता है, वहाँ व्यवस्था-अनुशासन की भी आवश्यकता होती है। अनुशासन तो व्यक्तिगत जीवन में भी होना चाहिए।
उस अनुशासन-व्यवस्था को संचालित करने के लिए अनेक प्रणालियाँ हैं। राजतंत्र प्रणाली व लोकतंत्र प्रणाली भी चलती है। प्रणाली का लक्ष्य है कि उसके सदस्य ठीक रहें, न्याय प्रणाली ठीक हो। हमारे धर्मसंघ में आचार्य तंत्र चलता है। सब कुछ आचार्य की निश्रा- अनुशासन में होता है। हमारे परम वंदनीय आचार्य भिक्षु इस आचार्य प्रणाली के प्रथम आचार्य हुए। उनसे संबद्ध हमारा धर्मसंघ है। संगठन को जमाना-चलाना विशेष कार्य हो सकता है। आचार्य तांत्रिक प्रणाली ऐसी कि आचार्य का निर्णय भी आचार्य ही करते हैं।
श्रीमद्जयाचार्य के समय में व्यवस्था आई है कि साध्वियों में भी तंत्र ठीक हो। पूज्य जयाचार्य ने सरदारांजी को साध्वियों में पहली मुखिया बनाया था। सरदारांजी का अपना इतिहास है। बाद में उत्तरवर्ती साध्वियाँ मुखिया भी हुई। आठवीं साध्वीप्रमुखा जी कनकप्रभाजी हुई थी। उनका मनोनयन गुरुदेव तुलसी ने साधिक पचास वर्ष पूर्व गंगाशहर में किया था। अनेक चारित्रात्माएँ उनकी साक्षी हैं। साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी ने तीन आचार्यों के काल में अपनी सेवा दी थी। उनको लंबा साध्वीप्रमुखा काल मिला। दो माह पहले दिल्ली में उनका महाप्रयाण हो गया था। कल मैंने उस रिक्त स्थान को भरने का प्रयास किया। चिंतन के बाद साध्वी विश्रुतविभाजी को साध्वीप्रमुखा नियुक्त किया। मुझे तो पूर्वाचार्यों द्वारा तैयार की हुई साध्वी मिल गई।
साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी हमारे धर्मसंघ में विभिन्न क्षेत्रों में सेवा करती रही हैं। साध्वीप्रमुखा की अपेक्षा लगी तो हमने चयन कर लिया। इनको दायित्व सौंपा गया है, वे अपनी खूब सूझबूझ के साथ खूब अच्छा काम करती रहें। हमारे धर्मसंघ के साध्वी समाज व महिला समाज में खूब विकास होता रहे। संघ का मानो भाग्य होता है कि अच्छे-अच्छे व्यक्ति धर्मसंघ में काम करने वाले होते हैं। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी, अपना खूब अच्छा कार्य करते रहें। आप तपस्या भी करती रहती हैं। स्वाध्याय का भी ध्यान रखें। जप-स्वाध्याय व प्रबंधन का कार्य खूब अच्छा चले।
साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी का साध्वी समुदाय में सर्वोच्च स्थान अधिकार है। सर्वोच्च सम्मान आपका है। प्रथम स्थान पर हो गई है। साध्वी समाज का सर्वोच्च दायित्व है। साध्वीवर्या दूसरे नंबर पर है। साध्वीवर्या भी सहयोग करती रहे। मुख्य मुनि भी हमारे साथ है। तीनों मेरे से सीधे जुड़े हुए हैं। तीनों आचार्य महाश्रमण द्वारा नियुक्त है।
कार्य तो आप कर ही रही थी, पर पद का महत्त्व होता है। पद मिलने पर वातावरण बदल सकता है। नवनियुक्त साध्वीप्रमुखाजी निर्भीकता, विनय व समर्पण भाव से सेवा करती रहे। सुदीर्घ काल तक आपकी सेवाएँ धर्मसंघ को मिलती रहें। साध्वी समाज के सर्वोच्च स्थान की गरिमा-महिमा बढ़ती रहे। सरदारशहर का इस बार के प्रवास का अंतिम दिन है। कई संस्थाएँ हैं, खूब अच्छा कार्य करते रहें। अनेक कार्यक्रम भी हो गए हैं। महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम भी हो गए हैं।

आज का अभिनंदन आचार्यप्रवर की शक्ति का अभिनंदन - साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा

साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि गुरुदेव अभिनंदन हो रहा है, वो आपका ही हो रहा है। जो शक्ति संपन्न होता है, उसका अभिनंदन होता है। आचार्यप्रवर की शक्ति का अभिनंदन है। आपकी शक्ति मुझे भी प्राप्त हो रही है। जिस व्यक्ति को ऊर्जा-शक्ति प्राप्त हो जाती है, उसके लिए कार्य करना व विकास करना भी सुगम हो जाता है। मुझे गुरुदेव तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी व आपकी सन्निधि में रहने का अवसर मिला है।
साध्वीवर्याजी की अभिवंदना में मुनि धर्मरुचि जी, मुनि कुमार श्रमण जी, मुनि रजनीश कुमार जी, मुनि अक्षयप्रकाश जी, मुनि गौरव कुमार जी, मुनि योगेश कुमार जी, मुनि ध्रुवकुमार जी, मुनि आकाश कुमार जी, मुनि जितेंद्रकुमार जी, मुनि मनन कुमार जी, मुनि नयकुमार जी, साधुवृंद, मुनि कीर्तिकुमार जी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। साध्वीवृंद की ओर से समुह गीत, सरदारशहर साध्वीवृंद ने समुह गीत की प्रस्तुति दी। साध्वी मुदितयशाजी, साध्वी श्रुतयशाजी, साध्वी सुमतिप्रभाजी, साध्वी हिमांशुप्रभाजी, साध्वी ऋजुप्रभाजी, साध्वी प्रफुल्लप्रभाजी, साध्वी विशालयशाजी, साध्वी जिनप्रभाजी, साध्वी मैत्रीयशाजी, साध्वी गुप्तिप्रभा जी, साध्वी प्रज्ञावतीजी, साध्वी विधिप्रभाजी, साध्वी भव्ययशाजी, साध्वी वीरप्रभाजी, साध्वी मेघप्रभाजी, साध्वी संकल्पश्रीजी, साध्वी कारुण्ययशाजी, साध्वी प्रसन्नयशाजी, साध्वी संगीतप्रभाजी, शासन गौरव साध्वी कल्पलता जी, साध्वी चारित्रयशाजी ने अभिवंदना में अपनी भावना अभिव्यक्त की। साध्वी मानकुमारीजी, साध्वी साधनाश्रीजी, साध्वी कनकश्रीजी, साध्वी पावनप्रभाजी आदि साध्वियों ने भी गीत की प्रस्तुति दी।
साध्वी ऋषिप्रभाजी, साध्वी उदितयशाजी, साध्वी शुभ्रयशाजी, साध्वी विमलप्रज्ञाजी, साध्वी सुषमाकुमारी जी, साध्वी तन्मयप्रभाजी, साध्वी ख्यातयशाजी ने भी अभिवंदना में अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। समणी निर्मलप्रज्ञा जी, समणी निर्वाणप्रज्ञाजी, समणी मंजुप्रज्ञाजी, समणी अक्षयप्रज्ञाजी, समणी मधुरप्रज्ञा जी, समणी नियोजिका जी, समणी अमलप्रज्ञाजी ने भी अपनी भावना व्यक्त की। मुमुक्षु बहनों ने गीत की प्रस्तुति दी। मोदी परिवार की बहनों एवं व्यवस्था समिति के अध्यक्ष बाबूलाल बोथरा ने भी भावना अभिव्यक्त की। ध्वज हस्तांतरण से पूर्व छापर चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष माणकचंद नाहटा ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। पूज्यप्रवर ने ध्वज हस्तांतरण से पहले मंगलपाठ सुनाया। सरदारशहर व्यवस्था समिति के सदस्यों ने छापर चातुर्मास व्यवस्था समिति को ध्वज हस्तांतरण किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।