साध्वीप्रमुखा मनोनयन पर

साध्वीप्रमुखा मनोनयन पर

गुरुराज ने नव सृजन के स्वस्तिक उकेरे
करूँ अर्चा में समर्पित भाव मेरे
दृश्य दुर्लभ इस द्रष्टा ने दिखाया
तुलसी का युग पुनः शासन में है आया।।

सन्निधि के सुखद पल स्मृतियों में अंकित
काश! साक्षी चयन की मुझको बनाते
या लगते पंख मेरे इस तनु पर
उड़ान ऊँची भर पहुँचती द्वार तेरे
करूँ अर्चा में समर्पित भाव मेरे!!

चयन क्षण में चमन की हर कली मानो खिल गई है।
रिक्तता ममता की थी वो आज फिर से भर गई है।।

सब अंकों में नौं का अंक अखंड कहाए
1 + 9 + 8 (198) दिन तक सन्निधि वीरला पाए
वो सुखद सुख भूलना तो है असंभव
ममतामयी आशीष का दो विपुल वैभव!!

‘दर्शिका’ ‘दर्शित’ बनकर तव चरणों में आई
जीने की विशद कलाएँ तुमने मुझे सिखाई
कभी अवसर हो तो शीतल छाँव में फिर से रखाना
अध्यात्म की तेजस्विण का पुनः पाऊँ मैं सजाना
अनगिनत उपकार मुझ पर है तुम्हारे
करूँ अर्चा में समर्पित भाव मेरे।।