आचार्यश्री महाश्रमण जी का भीलवाड़ा में चातुर्मासिक मंगल प्रवेश  - अहिंसा और नैतिकता विद्यमान रहे व्यक्‍ति के जीवन में : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आचार्यश्री महाश्रमण जी का भीलवाड़ा में चातुर्मासिक मंगल प्रवेश - अहिंसा और नैतिकता विद्यमान रहे व्यक्‍ति के जीवन में : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 18 जुलाई, 2021

 भैक्षव शासन तेरापंथ के एकादशम महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आज प्रात: अपनी धवल सेना के साथ जी-हाईस्कूल से तेरापंथ आदित्य नगर में चतुर्मास-2021 प्रवेश हेतु मंगल प्रस्थान किया। लगभग प्रात: 9 बजकर 21 मिनट पर परम पावन पूज्यप्रवर का चतुर्मास स्थल में मंगल प्रवेश हुआ।
जैन धर्म तेरापंथ धर्म के एकादशम अधिशास्ता ने मंगल पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि एक प्रश्‍न होता है कि दुनिया में उत्कृष्ट मंगल क्या है? आदमी के मन में मंगल की कामना रहती है। वह स्वयं का भी मंगल चाहता है और दूसरों के लिए भी मंगलकामना अभिव्यक्‍त करता है। मंगल पाठ सुनने से मंगल की आकांक्षा रहती है। मंगल के लिए प्रयास भी किया जाता है।
ज्योतिष के अनुसार शुभ मूहुर्त देखा जाता है। यह भी एक मंगल की प्राप्ति का प्रयास है। मंगल के संदर्भ में गुड़ आदि चीजें ली जाती हैं। मंत्र पाठ भी करते हैं, परंतु शास्त्र में बड़ी महत्त्वपूर्ण बात कही गई कि उत्कृष्ट मंगल क्या है। उत्कृष्ट मंगल हैधर्म। धर्म हमारे साथ में है, तो मंगल हमारे साथ में है।
प्रश्‍न होता है, धर्म क्या है? शास्त्रकार के अनुसार श्‍लोक के एक चरण में तीन प्रकार बता दिए‘अहिंसा संजमो तवो’। ऐसा लगता है कि कितने-कितने ग्रंथों का सार इस एक चरण में समाहित कर दिया है। अहिंसा, संयम और तप धर्म है। ये तीनों जीवन में हैं, तो धर्म है, मंगल है।
अहिंसा एक ऐसा तत्त्व है जो सबके लिए क्षेमंकरी-कल्याणकारी है। अहिंसा भगवती है। अहिंसा को परम धर्म कहा गया। एक साधु के लिए तो अहिंसा धर्म आचरणीय होता ही है। साधु तो दयामूर्ति, क्षमामूर्ति, समतामूर्ति होना चाहिए। साधु के लिए कोई शत्रु नहीं।
आप लोग गृहस्थ हैं, उनके लिए भी अहिंसा सेवनीय है, अनुपालनीय है। अहिंसा एक नीति है। जहाँ जनता है, वहाँ शासनतंत्र भी चाहिए। लोकतंत्र में जनता का शासन होता है। भारत में धर्म निरपेक्षता के साथ पंथ निरपेक्षता होनी चाहिए। राजतंत्र हो या लोकतंत्र, अनुशासन तो सब जगह उपयोगी है।
लोकतंत्र में कर्तव्य निष्ठा न हो, अनुशासन न हो तो यह लोकतंत्र का देवता भी विनाश को प्राप्त कर सकता है। अहिंसा एक ऐसा तत्त्व है, जो समाज नीति का, राजनीति का, धर्मनीति का प्राण तत्त्व बने।
हम मैत्री-अहिंसा में विश्‍वास करने वाले हैं। चलाकर आक्रमण नहीं करते। एक हिंसा है, आरम्भजा हिंसा। एक हिंसा प्रतिरोधजा हिंसा। एक है संकल्पजा हिंसा। आरम्भजा हिंसा और प्रतिरोधजा हिंसा तो आवश्यक हिंसा है। संकल्पजा हिंसा न हो। यह हिंसा त्याज्य है।
जहाँ हिंसा है, अशांति है, उसका सही समाधान होना चाहिए। युद्ध विराम युद्ध करने से पहले ही कर लेना चाहिए। हिंसा अंतिम समाधान नहीं है। अहिंसा धर्म है और मंगल है। इसी तरह संयम धर्म है और मंगल है। आदमी के खान-पान, वाणी का संयम हो। विचार और मन का, इंद्रियों का संयम हो।
बहुत ऊँची सेवा का साधन राजनीति है। राजनीति गंदी नहीं है। राजनीति करने वाले के विचार गंदे हो सकते हैं। राजनीति में अहिंसा-नैतिकता बनी रहे। सेवा में निस्वार्थ भाव बना रहे। सत्ता पा लेना बड़ी बात है, पर सत्ता सुख भोगने के लिए नहीं, सेवा करने के लिए है। राजनीति में आकर सेवा नहीं की तो राजनीति में आना बेकार है, जैसे बकरी के गले के स्तन।
हम भगवान महावीर से जुड़े जैन श्‍वेतांबर तेरापंथ से जुड़े हुए हैं। उसके प्रथम अनुशास्ता आचार्य भिक्षु स्वामी हुए हैं। उन्होंने कहा था छोटे जीवों की भी हिंसा न हो। भारत का मानो सौभाग्य है कि भारत में संत-संपदा, ग्रंथ संपदा और पंथ-संपदा है। भारत समृद्ध देश है। संत-संपदा से सन्मार्ग मिलता रहे। ग्रंथ संपदा से ज्ञान मिलता रहे। पंथ-संपदा से पथदर्शन मिलता रहे तो बड़ा लाभ मिल सकता है।
जीवन में तपस्या हो। आदमी सुविधावादी न हो। राजनीति भी एक प्रकार की तपस्या हो सकती है, जहाँ स्वार्थ न हो, जनता की सेवा हो। वहाँ मंगल है। जैन धर्म में तो खाना छोड़ना भी तपस्या है। अब चतुर्मास भी लग रहा है। संत चार महीने एक जगह रहते हैं। इन चार महीनों में आम तौर से यात्रा नहीं की जाती है।
इस बार हमने भीलवाड़ा-मेवाड़ में चतुर्मास करने के लिए आज यहाँ प्रवेश किया है। इसमें जनता को जितना संभव हो सके, लाभ मिले। भीलवाड़ा का चतुर्मास अच्छा रहे, उपलब्धिकार रहे। राज्यपाल महोदय का आगमन हुआ है। दो सौ से ज्यादा साधु-साध्वियाँ यहाँ भीलवाड़ा में इकट्ठे हो गए हैं। एक संत-समागम हो गया है। अनेक संत यहाँ पधारे हैं। कई साध्वियाँ भी आई हैं। वृद्ध व रत्नाधिक संतों को देखने का मौका मिला है। सबमें खूब साता-आनंद रहे। अच्छी हमारी साधना चले। गुरुदेव तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ जी की कृपा हम पर बनी रहे। मंगलकामना।
इस अवसर पर साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि अहिंसा यात्रा के अंतर्गत प्रलंब यात्रा करते हुए परम पूज्य आचार्यप्रवर आज मेवाड़ की औद्योगिक नगरी, वस्त्र नगरी, भीलवाड़ा में चतुर्मास के प्रवास करने के लिए पधारे हैं। भीलवाड़ा वासियों का सौभाग्य है कि लगभग 261 वर्ष पश्‍चात परमपूज्य ने कृपा की और चतुर्मास होने जा रहा हैं। नए इतिहास का सृजन होने जा रहा है।
बदनौर रियासत के कंवर साहब वी0पी0 सिंह जो पंजाब के गवर्नर हैं ने पूज्यप्रवर की सेवा उपासना की। पंजाब के गवर्नर वी0पी0 सिंह ने पूज्यप्रवर का स्वागत-अभिवादन किया। प्रकाश सुतरिया अध्यक्ष प्रवास व्यवस्था समिति ने भी पूज्यप्रवर का स्वागत किया। व्यवस्था समिति द्वारा आगंतुक मेहमानों का मोमेंटो व साहित्य से सम्मान किया गया।
भीलवाड़ा प्रवासी, सरदारशहर निवासी मीनाक्षी आंचलिया ने पूज्यप्रवर से 31 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।