गण को शिखर चढ़ाओ तुम

गण को शिखर चढ़ाओ तुम

साध्वीप्रमुखा विश्रुत विभा का दिल से है वर्धापन।
चार तीर्थ सब मिलकर करते सतीवर का अभिवादन।
गण का सुयश बढ़ाओ तुम।
गण को शिखर चढ़ाओ तुम।।

समणी गण में नियोजिका सतीयों में मुख्य नियोजिका।
साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा से, सीखा नया सलीका।
हुई कृपा गुरु महाश्रमण की, बन गई प्रमुखा तत्क्षण।।

शासनमाता कनकप्रभा से मिली संपदा सारी।
अर्पण भाव समर्पण गुरु प्रति वो है परमोपकारी।
कल्पतरु चिंतामणि सम है, पावनतम गण उपवन।।

दीक्षा दिवस गुरु महाश्रमण का युवकों ने है पाया।
मुखिया साध्वीप्रमुखा बन पाई तब सौभाग्य सवाया।
महाश्रमण गुरु आराधन में, बीते हर पल हर क्षण।।

नौ का अंक पूर्णता पाए नौका पार लगाए।
साध्वीप्रमुखा नवमी बन गई, तुमको आज बधाएँ।
मुनि चैतन्य ‘अमन’ कामना, मिले सफलता क्षण-क्षण।।

लय: मायन-मायन---