ईमानदारी से व्यवहार में आदमी का सम्मान बढ़ सकता है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

ईमानदारी से व्यवहार में आदमी का सम्मान बढ़ सकता है: आचार्यश्री महाश्रमण

सवाई बड़ी, 17 मई, 2022
22 दिवसीय सरदारशहर प्रवास में अनेकों इतिहासों का सृजन कर परम पावन ने आज प्रातः लगभग 7ः15 पर तेरापंथ भवन से हजारों-हजारों की संख्या में उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं को मंगलपाठ सुनाकर कालू के लिए विहार किया। सभी श्रावक-श्राविकाओं के चेहरों पर उदासी व विदाई के भाव थे। पूज्यप्रवर ने इन 22 दिनों में सरदारशहर पर पूरी रिझवारी की। पूज्यप्रवर मार्ग में मंत्रीमुनि मगनलाल जी स्वामी एवं घोर तपस्वी मुनि सुखलाल जी स्वामी के समाधि स्थल पर पधारे। जगह-जगह पूज्यप्रवर जैन-अजैन सभी को मंगल आशीर्वाद फरमा रहे थे। आज तेरापंथ भवन रोड एकदम सुनी सी हो गई।
मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमण जी ने प्रेरणा पाथेय में फरमाया कि आदमी के जीवन में ईमानदारी का बहुत महत्त्व है। अंग्रेजी का प्रसिद्ध सूत्र है-भ्वदमेजल पे जीम ठमेज च्वसपबलण् ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है। ईमानदारी का पालन करने के लिए आदमी झूठ बोलने से बचे और चोरी करने से बचे। झूठ बोलना और चोरी करना पाप है। जैन धर्म में अठारह पाप बताए गए हैं। इनमें दूसरा मृषावाद और तीसरा अदत्तादान है। दोनों का मानो आपस में संबंध है। चोरी करने वाला झूठ न बोले, यह तो कोई-कोई कर सकता है। यह एक प्रसंग से समझाया कि जो संकल्प ग्रहण कर अपनी बात अच्छी तरह निभाता है, उसकी जुबान का सब विश्वास करते हैं और लोभ से रक्षक भी भक्षक बन सकता है। एक नियम लिया साधु के पास से झूठ नहीं बोलने का, उससे चोरी भी छूट गई और सामान्य आदमी से राजा के भंडार का अधीक्षक बन गया। ईमानदारी आत्मा के लिए अच्छी है, और व्यवहार में आदमी का सम्मान बढ़ सकता है। हमें अपने जीवन में ईमानदारी के प्रति रुचि-रुझान और व्यवहार रखना चाहिए। ताकि आत्मा हमारी अच्छी रहे। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।